जमीनी हकीक़त: किसानों की आय बढ़ानी है तो मंडियों को जोड़ना होगा 

Devinder SharmaDevinder Sharma   22 Feb 2017 1:54 AM GMT

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जमीनी हकीक़त: किसानों की आय बढ़ानी है तो मंडियों को जोड़ना होगा devendra sharma+zamini haqeeqat

11 फरवरी को चुनावी अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही कि उत्तर प्रदेश, देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक क्षेत्र है फिर भी केवल तीन प्रतिशत ही किसानों से सीधा प्राप्त होता है।

हां, आपने सही सुना , केवल तीन प्रतिशत ही किसानों से प्राप्त होता है, ऐसा प्रधानमंत्री जी ने कहा। बीजेपी ने इस कथन को ट्वीट में स्वीकारा भी ।

मुझे इस बात पर हैरानी है कि अगर केवल तीन प्रतिशत गेहूं की फ़सल की सीधी प्राप्ति होती है तो जाटलैंड के सभी किसान नेता क्यों स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट को लागू करना चाहते हैं , जो उत्पाद की कीमत पर 50 प्रतिशत का लाभ देने की बात कहती है। यह समझने की ज़रूरत है कि 50 प्रतिशत लाभ केवल उन किसानों को दिया जाएगा जो अपना उत्पाद को एपीएमसी मंडियों में लाने में सक्षम होंगे । केवल वो जिनको न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिलता है , और ये तभी संभव है यदि वे अपना उत्पाद एपीएमसी मंडी में लाएं तभी वे स्वामीनाथन कमीशन रिपोर्ट के सुझाव अनुसार , 50 प्रतिशत अपने लाभ की रक़म पा सकते हैं ।

हर बड़े से बड़ा राजनेता किसानों का बकाया कर्ज़ माफ करने का वादा कर रहा है लेकिन किसानों के भविष्य से जुड़ी कृषि संबंधी समस्याओं के समाधान पर चुप्पी साधे हैं। किसानों के कर्ज़ माफ करना एक थोड़े समय की राहत है, ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि कृषि उद्योग को लाभकारी बनाने के लिए दूरदर्शिता रखी जाए। ये महत्वपूर्ण सोच है कि ऐसे समय में जबकि बेरोज़गारी फैली है तब कृषि उद्योग को लाभकारी उद्योग बना कर ग्रामीण युवा की बेचैनी को शांत किया जा सकता है ।

स्वामीनाथन कमीशन रिपोर्ट की असफलता उत्तर प्रदेश के किसान समुदाय के लिए सामान्य तौर पर परेशानी भरा है पर मुझे समझ नहीं आता कि अगर स्वामीनाथन कमीशन रिपोर्ट लागू कर दी जाती है तो नियंत्रित एपीएमसी मंडी नेटवर्क के बिना किसानों को लाभ कैसे मिलेगा? सच्चाई ये है कि कई वर्षों से फसल की कटाई के समय से गेहूं उत्तर प्रदेश से धीरे- धीरे पड़ोसी राज्य हरियाणा की मंडियों तक पहुंचता है। मुझे याद आता है , पिछले साल हरियाणा ने पड़ोसी राज्यों से गेहूं के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। मंडियों के जुड़े न होने के कारण शायद ही कोई ऐसा फ़सल का मौसम होगा जब बिचौलियों ने किसान का शोषण न किया हो या धोखे में न रखा हो ।

इसका मतलब ये है कि किसान नेता जो कई वर्षों से स्वामीनाथन कमीशन रिपोर्ट लागू करने की मांग कर रहे हैं , वो नहीं जानते कि ये काफ़ी हद तक गेहूं और चावल के उत्पादकों के लिए लाभकारी नहीं है? इससे जुड़ा एक और सवाल उठता है कि क्या हम ये कहें कि उत्तर प्रदेश का अधिकतम किसान ये नहीं जानता कि स्वामीनाथन कमीशन रिपोर्ट उनके लिए लाभकारी नहीं है ? क्या वे केवल वही मांग कर रहे हैं जो उनके नेता मांग रहे हैं ?

मेरे पास कोई कारण नहीं है कि मैं ये मानूं कि ये सच है । आखिरकार किसान इतना भी अंजान नहीं है लेकिन मैं अभी भी ये नहीं समझ पा रहा हूं कि किसानों को उनके उत्पादन से 50 प्रतिशत अधिक लाभ दिया जाना कितना तर्कसंगत है जबकि 97 प्रतिशत गेहूं की पैदावार उत्तर प्रदेश सीधा किसान से ले ही नहीं रहा । या फिर क्या ये है कि मंडियों के किसानों से जुड़े न होने के कारण ये कोई बाहरी रास्ता है उस गन्ना राजनीति का जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है ?

खैर जो भी कारण हो , इससे एक और बड़ा सवाल खड़ा होता है । कैसे पिछले 60 वर्षों में जब से एमएसपी शुरू की गई 1965-66 में , यूपी , एपीएमसी मंडियों को जोड़ने में असफ़ल रही ? अब जब यूपी में अगले कुछ सप्ताह तक मतदान हो रहे हैं , मैं देख रहा हूं कि सारा चुनाव अभियान इस साल और पांच साल पहले 2012 में भी , जब मंडियों को जोड़ने की सख्त ज़रूरत थी पॉलिटिकल रडार में है ही नहीं ।

खैर जो भी कारण हो , इससे एक और बड़ा सवाल खड़ा होता है । कैसे पिछले 60 वर्षों में जब से एमएसपी शुरू की गई 1965-66 में , यूपी , एपीएमसी मंडियों को जोड़ने में असफ़ल रही ? अब जब यूपी में अगले कुछ सप्ताह तक मतदान हो रहे हैं , मैं देख रहा हूं कि सारा चुनाव अभियान इस साल और पांच साल पहले 2012 में भी , जब मंडियों को जोड़ने की सख्त ज़रूरत थी पॉलिटिकल रडार में है ही नहीं । यहां तक कि प्रधानमंत्री ने भी मंडियों को जोड़ने का कोई वादा नहीं किया , पंजाब और हरियाणा की तरह प्रमुख योजना नहीं बनाई जिससे अगले पाँच वर्षों में किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए ।

मुझे हैरानी होती है कि बहन मायावती भी मतदाताओं को ये याद दिलाने में असफल रहीं कि कैसे बीएसपी सरकार ने किसानों को सुनिश्चित मुनाफ़ा दिलाने के लिए सही निवेश किए थे। ये उन्होंने अपना शासनकाल समाप्त होने के समय 2011 में बनाया था जिसमें मंडियों को जोड़ने का काम और अगले चार वर्षों में 2,105 मंडियों को जोड़ने की योजना थी । मुझे नहीं पता कि कितनी प्रस्तावित मंडियों को पूरा किया गया या आर्थिक सहायता दी गई लेकिन 2,105 मंडियों को जोड़ना अपने में बड़ा निवेश था । वो अपने ग्रामीण मतदाता को विश्वास दिला सकती थीं कि उन्हें निश्चित मुनाफ़ा मिलेगा ।

हर बड़े से बड़ा राजनेता किसानों का बकाया कर्ज़ माफ करने का वादा कर रहा है लेकिन किसानों के भविष्य से जुड़ी कृषि संबंधी समस्याओं के समाधान पर चुप्पी साधे हैं। किसानों के कर्ज़ माफ करना एक थोड़े समय की राहत है, ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि कृषि उद्योग को लाभकारी बनाने के लिए दूरदर्शिता रखी जाए। ये महत्वपूर्ण सोच है कि ऐसे समय में जबकि बेरोज़गारी फैली है तब कृषि उद्योग को लाभकारी उद्योग बना कर ग्रामीण युवा की बेचैनी को शांत किया जा सकता है ।

किसानों की आय को दोगुना करने के लिए एक निश्चित मार्केटिंग नेटवर्क उपलब्ध कराना ज़रूरी है। बजाय इसके कि मंडियों को निजी क्षेत्रों के हाथ में दे दिया जाए , जिस पर कि नीति आयोग और कृषि मंत्रालय ज़ोर दे रहे हैं । पूर्ण रूप से व्यवस्थित , बिना किसी राजनैतिक दख़ल के ऐसा तरीका अपनाना जो मंडी के ढांचे को बेहतर और प्रभावशाली बना सके । मैं मानता हूं कि बहुत से भ्रष्ट तरीके हैं जो एपीएमसी पर हावी हो गए हैं , उन्हें जल्द से जल्द सही किया जाना चाहिए लेकिन खरीद के तरीके को पूरी तरह से हटा देना कृषि तनाव को और बढ़ा देगा ।

(लेखक प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक हैं, ये उनके निज़ी विचार हैं।)

            

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