0

पाकिस्तान में मुस्लिम-हिन्दू दंगे नहीं होते, तो भारत में क्यों

India
कैराना से हिन्दुओं का पलायन एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा बन गया है। इसके पहले जनवरी में माल्दा के कालीचक में साम्प्रदायिक उपद्रव देखा गया था। पाकिस्तान भी उसी भारत का अंग था जिसका हमारा देश था लेकिन वहां कैराना और कश्मीर जैसे हिन्दू मुस्लिम दंगें नहीं होते। बंटवारे के पहले वहां भी उतना ही धार्मिक तनाव था जितना हमारे यहां। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली खान और भारत के जवाहर लाल नेहरू ने अपने-अपने राष्ट्रों की नींव डाली। लियाक़त अली के देश में मुस्लिम-हिन्दू दंगे नहीं होते लेकिन नेहरू के भारत में लगातार दंगे होते रहते हैं। लियाकत अली ने ऐसा क्या किया कि दंगे समाप्त हो गए और नेहरू ने ऐसा क्या किया कि दंगे भारत के गले पड़ गए। शायद नेहरू की नीतियों का अंजाम डॉ. अम्बेडकर जानते होंगे इसलिए उन्होंने उनकी नीतियों का विरोध किया था।

पाकिस्तान में हिन्दुओं की संख्या बंटवारे के समय कम नहीं थी। लाहौर में मुसलमानों की आबादी पांच लाख थी और हिन्दुओं की भी पांच लाख तथा सिक्खों की आबादी एक लाख थी। लाहौर में पहले मुस्लिम हिन्दू दंगे हुए होंगे लेकिन अब दंगे सुनाई नहीं पड़ते, यही हाल कराची का है। सवाल हिन्दू, मुस्लिम का उतना नहीं है जितना दंगों का है। भारत क्या करे कि यहां भी दंगे न हों। आज भी माल्दा के कालीचक में आगजनी, कश्मीर के पंडितों का पलायन, केरल में मालाबार तट में खून-खराबा, उत्तर प्रदेश के कैराना से पलायन, गोधरा रेल कांड बताते हैं कि भारत में हालात ठीक नहीं हैं।

भारत में मुसलमानों की अलग पहचान इतनी प्रगाढ़ कर दी गई है कि मुस्लिम कालोनी में यदि अकेला हिन्दू मकान होता है तो वह बेचकर चला जाता है और इसी तरह यदि हिन्दू कालोनी में अकेला मुस्लिम परिवार होता है तो देर सबेर वह भी मकान बेच देता है। पिछले 68 साल में हमारे राजनेताओं ने अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के नाम पर समाज में जिन्ना के सोच को खूब मजबूत किया है। हमारे नेताओं ने मुसलमानों की आइडेन्टिटी यानी पहचान की चिन्ता तो की है, बाकी कुछ नहीं। अलग पहचान के नाम पर राजनैतिक दल मुस्लिम समाज को गोलबन्द करने में लगे रहते हैं।

मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों की अलग पहचान की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा था हिन्दू और मुसलमानों के हीरो अलग-अलग है, खान-पान और तौर-तरीके भी अलग हैं इसलिए वे एक साथ नहीं रह सकते। आज भी यदा कदा जिन्ना की आवाज सुनाई पड़ती है। भारत में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी की एक ही पहचान है हिन्दुस्तानी होने की पहचान। पूजा और इबादत अलग-अलग है परन्तु पहचान सब की एक ही है। हमारे नेताओं ने ऐसा माना नहीं।

पचास के दशक में जवाहर लाल नेहरू ने भारत में हिन्दू कोड बिल बनाया और मुसलमानों की पहचान को नहीं छेड़ा। तब के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था, मना करने का कारण तो पता नहीं लेकिन लगता है यह प्रावधान सारे देश के लिए एक समान होता चाहे जिस नाम से, तो सेकुलर कहा जाता। अलग पहचान का अहसास कराते समय राजनेता भूल जाते हैं कि यह सेकुलर के खिलाफ़ है।

मुस्लिम समाज अपने धर्म के लिए विशेष संवेदनशील है और दुनिया के किसी कोने में यदि उनके धर्म के खिलाफ़ कोई बात होती है तो भारत का मुसलमान सड़कों पर आ जाता है चाहे कश्मीर की हज़रत बल मस्जिद की बात रही हो या डेनमार्क के कार्टूनिस्ट का मसला, हिन्दू का गुनाह नहीं होता फिर भी चपेट में हिन्दू भी आते हैं। हमारे नेता भारत को सेकुलर देश कहते तो हैं लेकिन व्यवहार में नहीं लाते। ऐसे हालात में हिन्दू मुस्लिम दंगों का समाधान निकालना आसान नहीं। एक समाधान जो पाकिस्तान ने निकाला और अपने देश को मुस्लिम देश बना लिया वहां दंगे नहीं होते, पूरी आबादी को अपनी सीमाएं पता हैं।

दूसरा समाधान है ईमानदारी से सेकुलरवाद के पालन का, जिसका मतलब होगा नास्तिक भारत। एक तीसरा विकल्प है वर्तमान व्यवस्था में आवश्यक सुधार करके इसे न्यायसंगत बनाने का। ऐसा करने पर कानून मज़हबी आधार पर नहीं होंगे, किसी प्रान्त का विशेषाधिकार नहीं होगा, दस प्रतिशत से कम आबादी को ही अल्पसंख्यक माना जाएगा और शिक्षा का पाठ्यक्रम सभी का एक होगा। सही अर्थों में सर्वधर्म समभाव होने से दंगे होने की सम्भावना घटेगी। प्रधानमंत्री के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है।

Tags:
  • India

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.