चार लाख पुलिसकर्मियों के पद ख़ाली हैं, किसी को फिक्र नहीं

रवीश कुमार | Apr 20, 2017, 10:54 IST
लखनऊ
मेरा हमेशा से मानना रहा है कि सरकारें बेरोज़गारों को बढ़ावा देती हैं। इसलिए किसी भी सरकार ने आज तक ऐसा सिस्टम नहीं बनाया जिससे कोई भी जान सके कि किस महीने कितने लोगों को रोज़गार मिला है। सरकारी और प्राइवेट नौकरी, स्थायी, अस्थायी और ठेके पर मिलने वाले काम का कोई डेटा नहीं होता है। इतने सारे आलतू-फालतू एेप बनते रहते हैं मगर रोज़गार की संख्या, भर्ती के बारे में कोई एेप नहीं है।

युवा तैयारी ही करते रहते हैं, पता नहीं करते कि वेकैंसी का क्या हुआ। अगर रोज़गार प्रथम मुद्दा होता तो सरकारें रोज़गार के मामले में डरतीं। कितने ही राज्यों में शिक्षकों को ठेके पर रखकर सरकारें लाठी से पिटवा रही हैं। वे जब भी स्थायी किए जाने की मांग करते हैं, लाठी खाते हैं। लेकिन चुनाव आते ही, वो अन्य भावुक मुद्दों के बहाव में चला जाता है। हम सब अधिकृत रूप से कभी नहीं जान पाते कि कितनी नौकरियां निकलीं, भरी गईं।


कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने पुलिसकर्मियों की भर्तियों के मामले में छह राज्यों के बड़े अफ़सरों को रोडमैप के साथ हाज़िर करने का आदेश दिया है। 21 अप्रैल के दिन यूपी, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के अफसरों को अदालत में बताना पड़ेगा कि पुलिसकर्मी की भर्ती के लिए वे क्या करने वाले हैं। अगर देश के युवा इन पर नज़र रखते, इन्हीं की बात करते तो भयंकर जनदबाव बन सकता है। इससे बड़ी संख्या में युवाओं को रोज़गार मिल सकता हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि इन राज्यों में 2013 से मामला लंबित है मगर अभी तक कुछ नहीं हुआ। अब कोर्ट इस मामले की निगरानी करेगा और भर्तियों पर नज़र रखेगा।

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि इतने पद खाली हैं तो आप लोगों को रोज़गार क्यों नहीं देते हैं। उनकी ये टिप्पणी तमाम अन्य विभागों में खाली पड़े पदों पर बहाली का रास्ता खोल सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में 1,51,679, बिहार में 34,000, झारखंड में 26,303, कर्नाटक में 24,399, तमिलनाडु में 19,803 और बंगाल में 37325। अकेले यूपी में डेढ़ लाख नौजवानों को रोज़गार मिल सकता है।


मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि कानून व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए पुलिस के सभी पदों पर नियुक्तियां जरूरी हैं। जस्टिस खेहर ने कहा कि 2015 का रिकाॅर्ड बताता है कि देश में 4 लाख 33 हजार पुलिसकर्मियों की कमी है।

देश भर के युवाओं को अगर रोज़गार पाना है तो रोज़गार को मुद्दा बनाना पड़ेगा। चार लाख से अधिक सिपाही के पद खाली हैं। किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है। यह कैसे हो सकता है। 2014 में छतीसगढ़ का कहना था कि उनके यहां 3800 पद खाली हैं और अब सरकार बता रही है कि 10000 पुलिसकर्मियों की नियुक्ति होनी है। यानी इतने साल तक कितने नौजवान चयन के लिए ज़रूरी उम्र सीमा से बाहर हो गए होंगे। देश में करीब 50 फीसदी पुलिसकर्मियों की कमी है और पुलिसवालों के लिए आवास और अन्य सुविधाएं भी नहीं हैं। इसकी वजह से कानून व्यवस्था को बनाए रखने में दिक्कत हो रही है।

मैं कोशिश करूंगा कि जहां भी रोज़गार की कमी का समाचार मिलेगा, उसे कस्बा पर लिखूंगा। मैं भी देखना चाहता हूं कि आख़िर कब तक देश का युवा रोज़गार के सवाल को अनदेखा कर नारे लगाता है। सिपाही से लेकर आई ए एस तक की ज़रूरत है, मगर भर्ती पर बात ही नहीं हो रही है। उसके अलावा सारी बातें हो रही हैं।

(लेखक एनडीटीवी में सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

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