दाल उगाने वालों की आखिर कब गलेगी दाल

गाँव कनेक्शन | Jun 28, 2018, 08:22 IST
दाल उगाने वाले किसानों को उन्नत बीजों के नाम पर मंडी से खरीद कर साधारण बीज दिए जाते हैं, कृषि मंत्रालय को भी इसकी जानकारी है। दूसरी तरफ सरकार विदशों से दाल आयात करने में खुश है।
#दाल किसान
कृषि मंत्रालय की ढेरों स्कीमों और योजनाओं के बाद भी भारत में दालों का उत्पादन गिर रहा है। अफसोस की बात है कि भारत के पास चावल की कटाई के बाद उसी खेत में दालें, हरे और काले चने उगाकर इनका उत्पादन दोगुना करने का अनूठा अवसर है इसके बावजूद देश में बाहर से दालें आयात करने का चलन बन गया है।

इससे भी बड़े अफसोस की बात है कि 38 लाख हेक्टेयर के कुल क्षेत्र का 78 फीसदी पर सिर्फ अरहर की दाल ही बोई जाती है जिसका उपज में 476 किलो प्रति हेक्टेयर से 728 किलो प्रति हेक्टेयर तक का फर्क पाया जाता है। आईएआरआई (इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट), आईआईपीआर (इंडियन इंस्टिट्यूट फॉर पल्स रिसर्च), राज्य में स्थित कृषि विश्वविद्यालय, आईसीआरआईएसएटी (इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टिट्यूटफॉर सेमी एरिड टॉपिक्स) जैसे कुशल संस्थानों के होते हुए यह स्थिति है, जबकि इन पर अरहर संबंधी शोध और उसकी संकर प्रजातियां विकसित करने की जिम्मेदारी है और ये संस्थान इसमें कुशल भी हैं। ये सभी संस्थान मिलकर कुछ ऐसा नहीं कर पाए जिसका असर जमीनी स्तर पर महसूस किया जा सके।

यह भी देखें:वो फसलें जिनके भाव कम या ज्यादा होने पर सरकारें बनती और बिगड़ती रही हैं

RDESController-899
RDESController-899


ऐसा नहीं है कि भारत में अरहर की उन्नत, मौसम की मार सहने वाली संकर प्रजाति की कमी है। यह भारत की बीज प्रणाली की विफलता है कि वह उच्च गुणवत्ता वाले, उन्नत प्रजाति के प्रामाणिक संकर बीजों को राष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों के जरिए किसानों को मुहैया नहीं करा पा रही है। इन एजेंसियों को इसके लिए कृषि मंत्रालय से ग्रांट मिलती है। असलियत यह है कि भारत में बीज माफिया ने देश में पूरी बीज व्यवस्था को अपने कब्जे में कर लिया है। देश की बीज अवश्यकताओं को पूरा करने के लिए टेंडर निकाल कर नकली बीजों की खरीद की जाती है। ऐसे में हम यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि दालों की उत्पादकता में सुधार होगा और उनकी कमी दूर पाएगी।

जरूरत है कि समय पर बेहतर किस्म के या संकर प्रजाति के बीजों की आपूर्ति हो, किसानों से लाभकारी मूल्य पर अनाज खरीदा जाए, उचित भंडारण की व्यवस्था हो ताकि उससे बफर स्टॉक बन सके और मुसीबत के समय किसान को औने-पौने दामों में अपनी उपज न बेचनी पड़े। कृषि मंत्रालय को अपनी पुरानी सोच से बाहर आकर हर एक मिशन के पीछे भागना और पैसा बर्बाद करने पर रोक लगानी होगी। बल्कि इसकी जगह उसे दाल उगाने वाले किसानों की जरूरतें पूरी करनी चाहिए ताकि वे दाल उत्पादन के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बना सकें।

यह एक जानामाना तथ्य है किसानों की पहुंच आनुवंशिक रूप से शुद्ध, वैज्ञानिकों से अनुशंसित और उन्नत किस्मों के बीजों तक नहीं है। यह भी किसी से छिपा नहीं है किसानों को अक्सर नकली बीज दिए जाते हैं। इनमें से अधिकतर बीजों को खुली मंडियों से खरीदकर उनपर सर्टिफाइड का लेबल लगा दिया जाता है। यही बीज टेंडर के जरिए सरकारी एजेंसियां खरीदती हैं और सरकारी योजनाओं के तहत इन्हें ही किसानों को बांट दिया जाता है। यह सब कुछ कृषि मंत्रालय की जानकारी में हो रहा है दूसरी तरफ भारत सरकार बाहर से दाल आयात करने में खुश है। अगर वह अपने देश के किसानों को प्रोत्साहित करे तो भारत के हर नागरिक की थाली में दाल हो और देश स्वस्थ रहे।

सबसे बड़ा सवाल अभी बाकी है कि पारंपरिक और गैर-पारंपरिक इलाकों में रबी पूर्व, रबी, खरीफ, गर्मी, वसंत इन विविध ऋतुओं में दाल की सघन खेती का प्रारूप कौन तैयार करेगा, ताकि दाल पहले से मौजूद प्रणाली में समायोजित हो सके। कौन अगले 3-4 बरसों में दालों की खेती को नए इलाकों में पहुंचाएगा ताकि दालों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सके और हमारा देश विदशों से दाल आयात करने के झंझट से मुक्त हो सके।

(डॉ. एम. एस. बसु आईसीएआर गुजरात के निदेशक रह चुके हैं। ये उनके अपने विचार हैं।)

यह भी देखें:विदेश से फिर दाल मंगा रही सरकार : आख़िर किसको होगा फायदा ?

Tags:
  • दाल किसान
  • दाल आयात
  • सघन खेती

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.