राशिफल बताते समय चेतावनी लिखें, गलत भी हो सकता है

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किसी मनुष्य, समाज अथवा देश में जब भाग्यवाद और अंधविश्वास बढ़ता है तो उसके आत्मविश्वास को लकवा मार जाता है। हमारे देश को भाग्यवादी मानसिकता ने कब और कैसे ग्रसित कर लिया, कहना कठिन है। यह वही देश है जिसे कर्मयोगी कृष्ण ने ललकारा था ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ और मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कहा था ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा’ परन्तु इसे क्या हो गया जो तथाकथित ज्योतिषियों के चक्कर लगाने लगा। अखबार में भाग्यफल छापते और टीवी पर दिखाते समय संवैधानिक चेतावनी अनिवार्य होनी चाहिए कि यह गलत भी हो सकता है।

भाग्यवाद और प्रारब्ध में आस्था पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। परन्तु आपत्ति की बात यह है कि कुछ लोग पूजा पाठ करके विधाता द्वारा रचित प्रारब्ध को बदलने का दम भरते हैं। प्रोबेबिलिटी (सम्भावना) पचास प्रतिशत तो रहती ही है। आज हालत यह है कि टीवी पर भोर होते ही राशिफल बताने का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। हम कभी नहीं अजमाते कि कितनी भविष्यवाणियां सही निकलीं और कितनी गलत। उन चैनलों पर जहां देश-दुनिया के समाचार आने चाहिए वहां आता है, क्या कहते हैं तारे। यही हाल अखबारों का है जो सप्ताह में एक दिन तो राशिफल जरूर छापते हैं, लोग पढ़ते भी हैं। कुछ लोग तो इसी फलित ज्योतिष के आधार पर अपना दैनिक कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। बच्चों के दिमाग में जाने-अनजाने अंधविश्वास के बीज बो दिए जाते हैं।

कुछ समय पहले भविष्यवक्ताओं ने दिन, महीने और वर्ष बताते हुए घोषणा कर दी कि प्रलय आएगी और यह संसार नष्ट हो जाएगा। रेलगाड़ियो‍ं के तमाम डिब्बें खाली चले गए, देश का करोड़ों का नुकसान हुआ और भविष्य बताने वालों से किसी ने यह भी नहीं पूछा कि भविष्यवाणी के नाम पर तुमने यह अफवाह क्यों फैलाई। ऐसे में समाचार माध्यमों की विशेष जिम्मेदारी बनती है कि ऐसी अफवाहों को भविष्यवाणी कह कर प्रचारित न करें। हमारे देश के कानून में यह प्रावधान होना चाहिए कि यदि बताया गया राशिफल या भविष्यवाणी गलत निकले तो प्रभावित व्यक्ति द्वारा कानूनी कार्यवाही की जा सके।

सड़क किनारे तमाम कार्ड लेकर बैठा हुआ तथाकथित भाग्य बताने वाला अपने तोता से भोले भाले लोगों के भाग्य का कार्ड निकालने को कहता है और लोग उस कार्ड पर लिखे भाग्य पर विश्वास भी करते हैं। कुछ लोग तो मस्तक पर बनी ब्रह्मा की लकीरें (सूचर लाइन्स) पढ़ लेने का दावा करते हैं तो कुछ हाथ की रेखाएं देखकर भाग्य बताने का दम भरते हैं। जन्मकुण्डली देखकर लोग मनुष्य के जीवनभर का भाग्य ही नहीं बल्कि पिछले जन्म का हाल और होने वाली सन्तानों की संख्या तक बताते हैं। ध्यान रहे अब तो मन चाहे समय पर ऑपरेशन द्वारा सन्तान को जन्म दिलाया जा सकता है, मनचाही कुंडली बन सकती है।

भाग्यवादी मानसिकता तब स्पष्ट सामने आती है जब चुनाव के बाद सरकार बनाने की घोषणा हो जाती है और मंत्रिमंडल इसलिए शपथ नहीं ग्रहण करता कि भाग्यशाली दिन दूर होता है। तब तक प्रतीक्षा होती है और सरकारी कामकाज बन्द रहता है, देश और समाज को होने वाली हानि की चिन्ता नहीं होती किसी को। इतनी सावधानी के बाद भी जब सरकार गिर जाती है तब भी वे लोग मुहूर्त की जान नहीं छोड़ते।

किसान को तो भाग्यवाद और अंधविश्वास की मानो घुट्टी पिला दी गई है। यात्रा करने के लिए विचार होता है कि मंगल और बुध को उत्तर दिशा में नहीं जाना है, सोमवार और शनिवार को पूर्व की यात्रा वर्जित है और वृहस्पति को दक्षिण दिशा को नहीं जाना। रविवार को बीज नहीं बोया जाता, मंगल को मकान नहीं बनता और बुध को खाट नहीं बुनी जाती। स्कूल में बच्चा फेल हो जाए अथवा गाँव में बीमारी फैल जाए तो दोष भाग्य का होता है। प्रगतिशील किसानों ने सिंचाई के साधन जुटाकर और ग्रीनहाउस बनाकर फसल के कमजोर होने या नष्ट होने से बचने के तरीके निकाल लिए हैं।

ऐसा नहीं कि भारत की परम्परा हमेशा भाग्यवादी रही है। यहां के विद्वानों ने बहुत पहले स्पष्ट कहा था कि “उद्यमेन हि सिद्धन्ति कार्याणि, न मनोरथेन, सुप्तस्य सिंहस्य मुखे न प्रविशन्ति मृगाः” अर्थात उद्यम से ही कार्य सिद्ध होते हैं चाह से नहीं, सोते हुए सिंह के मुंह में हिरन प्रवेश नहीं करते। फिर भी पता नहीं क्यों हम अपने पूर्वजों की बातें अपने बच्चों को नहीं बताते।

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