ताकि खुशहाल रहें हमारे बुजुर्ग

Kushal Mishra | May 19, 2018, 10:14 IST

जहां मैं केरल में पैदा हुआ था, वहां सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज (सीडीएस) के डॉ. इरुदाया राजन कुम्बानद,पथानामथिट्टा जिले में बुजुर्गों की स्थिति पर अध्ययन कर रहे थे।

हां मैं केरल में पैदा हुआ था, वहां सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज (सीडीएस) के डॉ. इरुदाया राजन कुम्बानद,पथानामथिट्टा जिले में बुजुर्गों की स्थिति पर अध्ययन कर रहे थे।

इन्होंने अपने अध्ययन में ये स्पष्ट किया कि केरल के कई गाँवों में बुजुर्गो की स्थिति अच्छी नहीं है, यहां बुजुर्गों की एक बड़ी जनसंख्या बुढ़ापे में अकेले ही जीवन व्यतीत करती है। उनके साथ उम्र के इस पड़ाव में उनके बच्चों की जगह पालतू जानवर जैसे कुत्ते और बिल्लियां ही होते हैं, जो उनके अकेलेपन को दूर करने का एकमात्र सहारा बनते हैं। कारण है पढ़ाई के बाद बच्चों का नौकरी की तलाश में विदेश जाने की होड़, जिससे माता-पिता उस समय अकेले रह जाते हैं, जब उन्हें बच्चों की सबसे ज्यादा जरुरत होती है। यह भी पढ़ें: सिर्फ बड़ी बिल्डिंगों में बैठकर नीतियां बनाने से नहीं बढ़ेगी किसानों की आय हालांकि इस उद्देश्य को पूरा करने में एक बड़ी कठिनाई है युवाओं का बुजुर्गो की देखभाल के लिए न मिलना क्योंकि युवाओं की एक बड़ी आबादी निश्चित समय के बाद काम की तलाश में पलायन करते हुए राज्य या फिर देश से बाहर चले जाते हैं। जिस कारण बहुत कम युवा इस कार्य के लिए मिल पाते हैं। ऐसे में कुछ सौभाग्यशाली लोगों को ही घर पर उनकी देखभाल के लिए कोई मिल पाता है। इनमें से 58- 70 साल के बीच के कई लोग ऐसे भी हैं, जो अभी भी काफी सक्रिय हैं और अगर उन्हें थोड़ा प्रोत्साहन दिया जाए तो वो आज भी सामाजिक और घरेलू स्तर पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

केरल के मल्लापुरम जिले को छोड़कर अन्य सभी जिलों में वृद्धों को भारी उपेक्षा का सामना करना पड़ता हैं, मल्लापुरम जिले में डॉ. सुरेश ने पास-पड़ोस के लोगों के साथ मिलकर वृद्धों की देखभाल के लिए नेबरहुड पैलिएटिव केयर की स्थापना की। बुजुर्गों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था हेल्प ऐज इंडिया ने अपनी रिर्पोट में इस बात पर प्रकाश डाला है कि 53 प्रतिशत बुजुर्गों का मानना है कि वे सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव का शिकार होते हैं। केरल में कई लोग घर में दुर्व्यवहार की शिकायत करते हुए कहते हैं कि अपने ही देश में हमें लगता है कि यहां वृद्ध लोगों के लिए कोई जगह नहीं है।
गहराई से इस वाक्य की ओर ध्यान देंगे तो मालूम होगा कि इस वाक्य को कहने के पीछे कई कारण हैं, जो बुजुर्गों को इस बात का अहसास कराते हैं कि समाज उन्हें खुद से अलग समझ रहा है। आवश्यकतानुसार कई सार्वजनिक स्थानों पर आने-जाने के लंबे रास्तों में, डॉक्टरों से मिलने के लिए लगने वाले लंबी कतारों में, अस्पतालों में किसी भी प्रकार का चेकअप कराने के लिए यहां- वहां भागने के क्रम में, कई जगहों पर लिफ्ट तो कई जगहों पर वील चेयर का न होना, उन्हें इस क्रम में परेशान तो करता ही है। यह भी पढ़ें: सफलता की ओर करवट लेती किसान राजनीति मानसिक रूप से इसका प्रभाव ये पड़ता है कि अधिकतर मामलों में इस समस्या के डर से वो इलाज कराने के लिए डॉक्टरों के पास जाना भी नहीं चाहते जिसका बुरा प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। अन्य सार्वजनिक स्थानों जैसे शौचालयों के उपयोग करने से लेकर यातायात के साधनों बसों, ट्रेनों में भी उन्हें इसी प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ता है। इस बारे में एक अन्य व्यक्ति से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि आवश्यक देखभाल और समर्थन की कमी के कारण उन्हें उपेक्षा का अहसास होता है। कई लोगों का मत था कि बुजुर्गों की देखभाल को एक विषय के रूप में स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। बड़े पैमाने पर समाज, बच्चों और सामान्य सेवा प्रदाताओं सहित बुजुर्गों की ज़रूरतों के प्रति जागरूक और संवेदनशील होना चाहिए।

इन स्थितियों के निदान के लिए राज्य से लेकर केंद्रीय स्तर पर प्रयास जारी हैं। साल 2000 से कई स्वास्थ्य मोर्चों पर प्रभावशाली प्रगति की गई है। सतत विकास के लक्ष्य की ओर देखने पर हमें मालूम होता है कि सभी उम्र के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने के क्रम में सभी तक आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाओं तक उनकी पहुंच बनाना और सुरक्षित और प्रभावी स्वास्थ्य सुविधा देने के साथ- साथ सभी आवश्यक दवाओं को उपलब्ध कराना मुख्य लक्ष्य रखा गया है।
या कुल मिलाकर ये कहें कि स्वास्थ्य से संबधित हर छोटी और बड़ी इकाई को लचीले रूप में सभी तक उपलब्ध करवाकर स्वास्थ्य क्षेत्र को स्वस्थ बनाने का जो लक्ष्य तय किया गया है, साल 2030 तक इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत और रचनात्मक विचारों के क्रियान्वयन की भरपूर आवश्यकता है। विशेषकर इसमें पहली प्राथमिकता वृद्ध लोगों को दी जाए तो संपूर्ण देश के वृद्धों को राहत मिलेगी। राज्य स्तरीय कई तरह की योजनाएं इस मुद्दे के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने और उन्हें इसके प्रति संवेदनशील बनाने के लिए काम कर रही है। विशेषकर केरल में गर्ल चाइल्ड अभियान, स्वच्छ भारत अभियान और पीपुल्स प्लानिंग अभियान कुछ अच्छे उदाहरण हैं, जिनका उपयोग उम्र के अनुकूल काफी अच्छे तरीके से किया जा रहा है। इसी प्रकार संपूर्ण देश में वृद्धों से जुड़ी हर छोटी बड़ी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचता रहे तो केरल ही नहीं देश में बढ़ती उम्र के लोगों के लिए समस्याएं नहीं, बल्कि खुशहाली लेकर आएगी। (चरखा फीचर्स) (लेखक हेल्प ऐज इंडिया के सीईओ मैथ्यू चेरियन हैं और यह उनके निजी विचार हैं) यह भी पढ़ें: सफलता की ओर करवट लेती किसान राजनीति यह भी पढ़ें: बच्चों को बच्चा ही रहने देने में भलाई है
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