राजस्थान: ओरण की प्राकृतिक विरासत बचाने के लिए छटपटा रहे जैसलमेर के पर्यावरण प्रेमी और स्थानीय लोग

गांवों-मंदिरों के आसपास की वो जमीन जिसे खेती से मुक्त कर दिया गया था, उसे ओरण नाम दिया गया। ये ओरण जैव विविधता की खान हैं। लेकिन राजस्थान में सोलर कंपनियों और पवन चक्कियों के बढ़ते दवाब में ये प्राकृतिक वन कम हो रहे हैं। स्थानीय लोग इन्हें बचाने के लिए ओरण यात्राएं निकाल रहे हैं।

Kamal Singh SultanaKamal Singh Sultana   27 July 2021 1:54 PM GMT

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राजस्थान: ओरण की प्राकृतिक विरासत बचाने के लिए छटपटा रहे जैसलमेर के पर्यावरण प्रेमी और स्थानीय लोग

जैसलमेर में पिछले एक साल में अब तक स्थानीय लोगों के द्वारा चार ओरण यात्राएं निकाली जा चुकी हैं।  सभी फोटो- सुमेर सिंह सांवता 

जैसलमेर (राजस्थान)। पेड़ पौधे और पानी की कीमत रेगिस्तान के लोगों से बेहतर कौन समझ सकता है। जैसलमेर के लिए पर्यावरण लोक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। प्रकृति से उनका लगाव कितना समृद्ध इसका अंदाजा यहां की परंपराओं से भी लगाया जा सकता है। ओरण इन्हीं में एक हैं।

सालों की प्रक्रिया के बाद मंदिरों और देवस्थानों के नजदीक की जमीन को खेती इत्यादि से मुक्त कर उसे ओरण घोषित किया गया। ओरण, संस्कृत के शब्द अरण्य से बना है, जिसका अर्थ वनक्षेत्र या वनभूमि से है। देश के कई हिस्सों में लोक नायकों के नाम पर भूमि का कुछ हिस्सा सामान्य जन-जीवन के लोक प्रभाव से परे छोड़ दिया गया।

पशु-पक्षियों के लिए वरदान हैं ओरण

ओरण की भूमि पर न तो खेती की जाती है और न ही इन स्थानों पर पेड़ों की कटाई की जाती है। इन स्थानों को पूर्णतः मुक्त रखा जाता है जहां पशु स्वछंद विचरते हैं। ओरण पक्षियों के लिए भी वरदान सरीखे हैं।

ओरण की सबसे प्रमुख विशेषता यही है कि न तो इसके लिए कोई लिखित कानून है और न ही कोई प्रशासन का हस्तक्षेप होता है। लेकिन प्रकृति को सौंदर्य, पशु-पक्षियों को आसरा देने वाले ये ओरण पिछले कुछ वर्षों से खतरे में हैं। वनों को काटकर, झाडियों को उजाड़ कर पावर प्लांट, पवन चक्कियां लगाई जा रही हैं। विकास के ये योजनाएं यहां के पशु-पक्षियों के लिए भारी पड़ रही हैं।

26 जुलाई को जैसलमेर में देगराय ओरण के रासला संवाता इलाके एक चिंकारा की बिजली के तारों की चपेट में आ से मौत हो गई। इससे पहले 3 जुलाई को इसी ओरण में ऊंट पालक और ओरण बचाने के लिए यात्राएं निकालने वाले सुमेर सिंह सांवता के एक ऊंट ने बिजली के तारों की चपेट में आकर दम तोड़ दिया था।

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जैसलमेर में ऊंटों का एक टोला जिसे स्थानीय भाषा मे बग्ग कहा जाता है। इन ऊंटों के लिए जिंदा रहने के लिए ओरण अनिवार्य हैं। फोटो सुमेर सिंह सांवता

निजी कंपनियों ने ओरण क्षेत्र में पैदा किया आतंक

स्थानीय लोगों का आरोप है कि विकास के नाम पर जो ओरण क्षेत्रों में निजी कंपनियों ने संयंत्र व सोलर प्लांट के जरिए जो आतंक पैदा किया है वह बेहद भयावह है। इन ख़ूबसूरत वनों में टहलते हुए अब पशु और पक्षियों को डर लगता है, क्योंकि जगह-जगह पर हाईटेंशन विद्युत वायर बिछे हैं, जिनसे हर वक्त हादसे का डर बना रहता है।

गोडावण (Great Indian bustard) जैसे पक्षियों के अक्सर पर (पंख) कट जाते हैं और प्रशासन इसकी सुध तक नहीं लेता। पर्यावरण के लिए आवाज़ उठाने वाले पर्यावरण एक्टिविस्ट और ऊंट पालक सुमेर सिंह सांवता (50 वर्ष) कहते हैं, "प्रशासन ने आंखें मूंद ली हैं और सौर कंपनियां भीमसर, भोपा, सवाता, रसाला गांवों में पैनल और ओवरहेड लाइनों का जाल बिछा रही हैं। वन विभाग ने पक्षियों को बचाने के प्रयास छोड़ दिए हैं। हमने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है ताकि यहां हो रहे सौर और उर्जा संयंत्रों पर काम पर रोक लगाई जा सके।"

जैसलमेर में ओरणों के बीच अब बिजली के तारों का ऐसा जाल आम हो चुका है।

डूंगरपीर ओरण में रेललाइन बिछ जाने से बढ़ीं मुसीबतें

जैसममेर जिले में ही मोकला गांव में गौ रक्षक डूंगरजी पीर का 800 साल पुराना ओरण हैं, जो पहले तो विशाल भूभाग में फैला था, लेकिन वर्तमान उसका क्षेत्रफल 12-15 हजार एकड़ के आसपास बचा है और इसकी परिधि करीब 40 किलोमीटर है। जिसके अंदर 80 के आस-पास पवन चक्कियां लगी हुई हैं।

इसके साथ ही यहां रेलवे लाइन निकलने के बाद हाइवे का काम चल रहा है, जिसके लिए भी ओरण में ठेकेदार द्वारा मिट्टी के लिए खुदाई हो रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा ही रहा तो कुछ वर्षों में ये ओरण खत्म हो जाएगा।

निजी कंपनियां क्यों करती हैं इतनी मनमानी?

ओरण बचाने के लिए आवाज़ उठा रहे लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि जैसलमेर ही नहीं राजस्थान में भी महज कुछ ही ओरण क्षेत्रों के नाम पर जमीन रजिस्टर्ड है। यानि कानून तौर पर वो जमीन लिखा-पढ़ी में नहीं है। जिसके चलते ओरण को कानूनी संरक्षण नहीं मिल पाते हैं। जैसलमेर के हर गांव में छोटे से लेकर बड़े-बड़े ओरण हैं लेकिन एक आध को छोड़ दें तो कोई भी ओरण ओरण भूमि के नाम से दर्ज नहीं है।

ऐसे में स्थानीय लोग ही ओरण बचाने के लिए आवाज़ उठा रहे हैं, पदयात्रा निकाल रहे हैं, सरकारी अधिकारियों और नेताओं को ज्ञापन दे रहे हैं। साल 2021 में जैसलमेर जिले में छोटी बड़ी चार ओरण यात्राएं निकाली जा चुकी हैं। गौ रक्षक डूंगरुपीर ओरण के संरक्षण और जमीन उसके नाम रजिस्टर्ड कराने के उद्देश्य से बीते 23-24 जून को दो दिवसीय यात्रा निकाली गई। मोकला गांव व आसपास के भी बहुत से लोग शामिल हुए।

जैसलमेर में एक ओरण यात्रा

ग्रामीणों ने निकाली है कई ओरण यात्राएं

जैसलमेर के सलखा गांव का ओरण संघर्ष आज का नहीं है, जब से ग्रीन एनर्जी के नाम पर ओरणों को हथियाने शासन-प्रसाशन और निजी पॉवर प्लांट कम्पनियां जैसलमेर आई हैं तभी से जैसलमेर के बड़े-बड़े ओरण क्षेत्रों पर इनकी बुरी नजर रही हैं, जिसमें सलखा गांव का भी ओरण शामिल हैं।

सलखा गांव के जागरूक ग्रामीणों ने अपनी जमीन और अपने जंगल के लिए लम्बा संघर्ष किया है। वीरवर आला जी जुंझार के नाम से आरक्षित सलखा गांव की ओरण भूमि 15-20 हजार बीघा में फैली हुई है, 16वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक दिन जुंझारों ने जैसलेमर को आबाद रखने के लिए अपनी कुर्बानी दी थी, उनके नाम पर बसे ओरण पर कुछ कंपनियों और सरकार की नजर है। सालखा गांव के लोग भी ओरण यात्रा निकाल चुके हैं।

बीती 11 जुलाई को आला मन्दिर से ओरण की परिक्रमा शुरू हुई जो 12 जुलाई को दोपहर 2 बजे जिला कलेक्ट्रेट पहुंची और अपना मांग पत्र जिला कलेक्टर महोदय को सौपा गया।

11 जुलाई को निकाली गई आलाजी ओरण यात्रा।

चितिंत हैं स्थानीय लोग

जैसलमेर में रामगढ़ गांव के निवासी चतर सिंह जाम (65 वर्ष) कहते हैं, 'परम्परागत ओरण,गोचर,तिड़ व खडीन होने से स्थानीय वनस्पतियों को संरक्षण मिलता था। यहां कुल्हाड़ी लेकर चलना अपराध था, शिकार की कल्पना करना अपराध था और जनसामान्य में धारणा थी कि ओरण में देवता का निवास होता है इसीलिए यदि कोई उसमें अनजाने में लकड़ी काट लेते थे तो सहर्ष गलती स्वीकार कर लेते और लकड़ी से बना औजार औरण भूमी में देव स्थान पर चढ़ा दिया जाता था।"

वो आगे कहते हैं, "ओरण में सभी प्रकार के जीव जन्तु, वनस्पति, राहगीर सभी आराम करते हैं, उन सब की भूख-प्यास शांत होती हैं। गोचर में गायों के चारागाह भूमि हेतू आरक्षित थी। तिड़ जल स्रोतों में कुआं, बेरी, टोबा, तलाई का सम्बन्ध उपरोक्त्त स्थानों से हैं। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में इनकी उपयोगिता बढ़ गई है।"

चतर सिंह जाम ओरण बचाने के लिए स्थानीय लोगों और युवाओं के प्रसायों की सराहना करते हैं, उसे अच्छा संकेत मानते हैं लेकिन सरकारी प्रयासों के प्रति नाराजगी भी साफ झलकती है। "ये ओरण देसी ही नहीं विदेशी पक्षियों के लिए शरण स्थली बन रही हैं। इसके लिए तो सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है। वन विभाग, आफरी, काजरी, कृषि अनुसंधान और न जानें कितने प्रशिक्षण और गोष्ठियां करती हैं। लेकिन वास्तव में ओरण को महत्व कोई ठीक से समझना नहीं चाहता।"

जर्मनी की डॉ इलशे ने भी ओरण खत्म होने की स्थिति पर जताया दुःख

पिछले लगभग तीस सालों से ऊंटों पर रिसर्च कर रही डॉ इलसे जर्मनी से पिछले 30 वर्ष से भारत आती जारी रही हैं। देगराय ओरण से वो भी काफी दुखी हैं। उन्होंने कहा–"यह देखना दुःखद है कि इतने भव्य पर्यावरणीय क्षेत्र को विकास के नाम पर समाप्त किया जा रहा है। सरकार को इस क्षेत्र में प्रयास तेज करने चाहिए। ऊंटों के लिए इस ओरण में जल और घास के साथ एक उपयुक्त स्थान है किंतु इसे यदि समाप्त किया जाता है तो दुःखद है। इससे न केवल प्रकृति और इको सिस्टम प्रभावित होगा बल्कि मानव भी अछूते न रह पाएंगे।"

इसी वर्ष जैसलमेर में ही तनोट राय ओरण को बचाने के लिए दीधू आसकंद्रा गांव में ओरण यात्रा निकाली गई। जिसमें शामिल हुए पूर्व विधायक सांग सिंह भाटी ने कहा, "ओरण की भूमि के लिए शीश कटा देंगे हम।"

आमतौर पर नेता इन ओरण यात्राओं से दूर ही रहे हैं। सामान्य लोग ही 50-60 किलोमीटर तक कि यात्राएं करते रहे हैं लेकिन पोकरण की इस यात्रा जैसलमेर के वरिष्ठ भाजपा नेता पूर्व विधायक सांग सिंह भाटी शामिल हुए। इससे पहले सलखा गांव की ओरण यात्रा में कांग्रेस की नेत्री व पूर्व जिला प्रमुख अंजना मेघवाल शामिल हुई। पोकरण की इस ओरण की सरहद उतर में भदरिया-बारु,दक्षिण में अजासर, पूर्व में बाधा छायण व पश्चिम में सेवड़ा-सत्याया लगती हैं। ओरण की 50-60 किलोमीटर में फैली सरहद पर ट्रैक्टरों से परिक्रमा की गई।

इस ओरण वाहन यात्रा में शामिल होते हुए सांग सिंह ने कहा कि "तनोटराय ओरण हमारे पूर्वजों की धरोहर हैं। यहां जल व वन्य जीव सरंक्षण सभी प्रकृति के हित में हो रहा था। ओरण भूमि को सरकारें निजी हाथों में देकर जैसलमेर की जनता पर कुठाराघात कर रही हैं। अगर ओरण को किसी को भी कंपनी को आवंटित किया गया तो हम शीश चढ़ा देंगे।"

जैसलमेर के एक ओरण में सोलर प्लांट के लिए पेड़ों और झाड़ियों पर चल रही जेसीबी।

700-800 साल पुराने कई ओरण

ओरण क्षेत्र में बहुरंगी पेड़-पौधे हैं तो कई देशी-विदेशी पक्षी इसे समृद्धता प्रदान करते हैं। भारतीय मरु बिल्ली या इंडियन डेजर्ट कैट, कुरजां, फ्लेमिंगों के चूजे ओरण में अक्सर पाए जाते हैं।जैसलमेर की देगराय ओरण तो करीब लगभग 800 वर्ष पुराना बताया जाता है। लुद्रवा के निकट रूपसी गांव में भी ओरण है, दामोदरा से छत्रैल की तरफ जलमार्गों के साथ ओरण मौजूद हैं। जैसलमेर में झलोड़ा गांव के मूल निवासी और पर्यवारण कार्यकर्ता भोपाल सिंह (30 वर्ष) कहते हैं, जैसलमेर में करीब 100 ओरण हैं, जिनमें से कई 700-800 वर्ष तक पुराने हैं। जानरा की मालण बाई ओरण का इतिहास तो जैसलमेर की स्थापना से भी पुराना है।

इसके अतिरिक्त यहां पर भादरीयाराय ओरण, देगराय ओरण, आशापुरा ओरण देवीकोट, पाबूजी ओरण, कालडूंगर राय ओरण, पन्नोधर राय ओरण, आइनाथजी ओरण, हडबू जी ओरण, नागणेची ओरण, नागणाराय ओरण,सोहड़ा जी की ओरण, विशन जी ओरण और डूंगरपीर जी ओरण मुख्य हैं।

जैसलमेर के लगभग हर क्षेत्र में कोई न कोई ओरण है। सोनू गांव में स्थित बिकांसी जी के 13वीं सदी के ओरण में तो उनके पालतू कुत्ते और घोड़े के पूजनीय स्मारक भी मौजूद हैं। मालूम हो कि हाल ही में बीकानेर के कोलायत के पूर्व विधायक की अगुवाई में लोगों ने चंदा ओरण भूमि को सरंक्षित करने के उद्देश्य से 40 किलो लंबी दीवार की निर्माण शुरु कराया है।जिससे कि इसे अतिक्रमण से बचाकर सुरक्षित किया जा सके। यह दीवार चीन की दीवार के बाद सबसे बड़ी दूसरी दीवार है।

देगराय ओरण में अक्सर पाई जाती है दुर्लभ पक्षी प्रजातियां

जैसलमेर के रासला व सांवता देगराय ओरण में अक्सर देशी व विदेशी प्रजाति के पक्षी घूमते हुए मिलते हैं। लगभग 60 हजार एकड़ के क्षेत्रफल में फैला यह ओरण बगुला जैव विविधता से भरपूर हैं। बगुले की लिटिल इग्रेट प्रजाति का पूरे भारत मे पहला मेलनिस्टिक किस्म का बगुला यहां देखा गया। देगराय उष्ट्र संरक्षण व दुग्ध विपणन सेवा समिति के सुमेर सिंह ने इसे देखा था, जिसकी पुष्टि दिल्ली में गुरुगोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के पर्यावरण विषय के सह आचार्य डॉ सुमित डूकिया ने की थी। जैसलमेर के पार्थ जगाणी के अनुसार यह विशेष प्रकार का बगुला है,किसी विशेष आनुवांशिकी बदलाव के कारण सफेद रंग की जगह काले-भूरे रंग का है।

लेखक- कमल सिंह सुल्ताना स्नातक के छात्र हैं। ये उनके निजी विचार हैं।

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