बजट 2018-19 लक्ष्य बेहतर, मैकेनिज्म अस्पष्ट

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बजट 2018-19 लक्ष्य बेहतर, मैकेनिज्म अस्पष्टप्रतीकात्मक तस्वीर।

सामान्य तौर पर हम यानि हम ‘भारत के लोग’ जिस नजरिए से बजट को देखते हैं, जरूरी नहीं कि सरकार ने भी उसी उद्देश्य या नजरिए से बजट बनाया हो। यही वजह है कि आम जन की अपेक्षाओं और सरकार की नीतियों में जो संयोजन बजट के जरिए दिखना चाहिए, वह प्रायः नहीं दिखता। अहम बात ये है कि प्रायः वित्त मंत्रियों के लक्ष्य परस्पर विरोधाभासी होते हैं। एक तरफ उन्हें सरकार का खजाना भरने के लिए पैसा जुटाना होता है और देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना को विकसित करने तथा अन्य कार्यों हेतु अपने सहयोगी मंत्रियों की परिव्यय मांगों को पूरा करना होता है।

इसके साथ ही उस यह जिम्मेदारी होती है कि वह संतुलित, समावेशी और तीव्र विकास को दिशा प्रदान करे, लेकिन शर्त यह है कि सार्वजनिक वित्त की सेहत दुरुस्त बनी रहे। यदि एनडीए सरकार के चारों बजटों पर ध्यान दें तो पहले बजट में वित्त मंत्री इन समस्याओं से जूझते नजर नहीं आए थे बल्कि वे बेहद आशावादी थे, लेकिन जैसे-जैसे वक्त आगे बढ़ा वे इन इन चुनौतियों से घिरते हुए दिखे और बजट आशावाद से यथार्थवाद की ओर बढ़ता दिखा। वर्ष 2018-19 के लिए संसद में पेश किए गये उनके बजट में ऐसा ही यथार्थवाद मोटे तौर पर दिखायी दे रहा है।

बजट से दो दिन पहले ही आयी वर्ष 2017-18 की आर्थिक समीक्षा ने यह संकेत दे दिया था कि बजट की दिशा क्या होगी और यह भी बता दिया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था किस दिशा में चलने वाली है। दो शब्दों में कहें तो ‘ग्रोथ विद् ग्रेट चैलैंजेज’, हमारी अर्थव्यवस्था इसी सूत्र-वाक्य पर आगे बढ़ेगी। हालांकि वित्त मंत्री ने समीक्षा के विपरीत अपने बजट भाषण में उन चीजों को स्वीकारने से बचने की कोशिश की है, जो उनके लिए चुनौती की तरह हैं।

उन्होंने संसद को बताया कि आर्थिक सुधारों की उनकी सरकार की यात्रा चुनौतीपूर्ण तथा परिणामोत्पादक रही है। सरकार के सुधारात्मक उपायों के परिणास्वरूप देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि हुयी है, व्यवसाय करना पहले से आसान हुआ है, प्राकृतिक संसाधानों के आवंटन में पारदर्शिता आने लगी है, जीएसटी लागू करने से अप्रत्यक्ष कर प्रणाली अधिक आसान हो गयी है और उच्च मूल्य की मुद्रा के विमुद्रीकरण से भारत में नकद मुद्रा एवं परिचालन की मात्रा में कमी आयी है। इससे कराधान का आधार व्यापक हुआ है तथा देश में अर्थव्यवस्था के डिजिटाइजेशन में तेजी आयी है। शोधन अक्षमता तथा दिवालियापन कोड को लागू किए जाने से ऋणी-ऋणदाताओं के बीच सम्बंध बदला है।

इसमें कोई संशय नहीं कि वित्त मंत्री ने बजट भाषण में जो बातें कहीं वे सही हैं, लेकिन क्या वित्त मंत्री ने कुछ बातों को गौर रखकर अपनी आगे की यात्रा को व्याख्यायित नहीं किया? यहां पर पहला मसला उच्च मूल्य के विमुद्रीकरण का है जिसमें 500 और 1000 रुपए के नोटों को विमुद्रीकृत किया गया लेकिन इसके स्थान पर 2000 और 500 रुपये के नोट पुनः उतार दिए गये, इसलिए यह पूर्णतः विमुद्रीकरण नहीं माना जाएगा।

इससे डिजिटाइजेशन बढ़ा लेकिन इससे कितने लघु उद्यम बंद हुए, कितने बेरोजगार हुए, कृषि की विकास दर घटकर 1.6 पर आ गयी, जो किसान पहले से ही आत्मनिर्भरता की परिधि के किनार या उससे बाहर थे वे भुखमरी की स्थिति में आ गये, इस पर फोकस नहीं किया गया। इन प्रयासों के दूसरे पहलू को भी सरकार को स्वीकार करना चाहिए था, तब शायद वह और अच्छा आर्थिक प्रयास कर पाती।

कृषकों के लिए यह बजट आशावादी कहा जाएगा, हालांकि वहां भी अभी खास मैकेनिज्म नहीं दिख रही है जिससे आश्वस्त हुआ जा सके कि बजट का विज़न पूरी तरह से जमीन पर उतर सकेगा। अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने किसानों के कल्याण और कृषि नीति तथा कार्यक्रमों के संदर्भ में संकल्पनात्मक बदलाव की बात की है।

उन्होंने वर्ष 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने का आह्वान किया है और किसानों तथा भूमिहीन परिवारों के लिए उत्पादक तथा लाभकारी आन-फार्म एवं नॉन-फार्म रोजगार सृजित करने पर बल देने की बात कही है। लेकिन यह सब कैसे होगा, इस पर प्रकाश नहीं डाला गया है। अपने पिछले संकल्प पत्र से पीछे हटते हुए सरकार ने बजट में यह घोषणा करने का साहस किया है कि सरकार आगामी खरीफ से सभी अधिघोषित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना करेगी। किसानों की आय को दोगुना करना और एमएसपी को डेढ़ गुना करना, अपने आप में विरोधाभासी तथ्य है।

एक अच्छी बात यह है कि सरकार ने वादा किया है कि वह हमारे 86 प्रतिशत से अधिक लघु और सीमांत किसानों के लिए, जो हर बार एपीएमसी में या अन्य थोक बाजारों में सीधे अपने उत्पादों को बेचने की स्थिति में नहीं होते थे, उनके लिए मौजूदा 22000 ग्रामीण हाटों को ग्रामीण कृषि बाजारों के रूप में विकसित किया जाएगा। इससे किसानों को स्थानीय स्तर पर ही बाजार से जुड़ने का अवसर मिल जाएगा जिससे वे बाजार मैकेनिज्म में एक निर्णायक फैक्टर बन सकते हैं। हालांकि सरकार ने इसके लिए केवल 2000 करोड़ रुपये की स्थायी निधि बनाने का ही प्रस्ताव रखा है, जो कुछ कम है।

इसके अतिरिक्त संगठित कृषि एवं सम्बद्ध उद्योग को सहायता उपलब्ध कराने के लिए 200 करोड़ रुपये की राशि का प्रस्ताव किया गया है और खाद्य प्रसंस्करण के लिए पिछले बजट के 715 करोड़ रुपए के मुकाबले वर्ष 2018-19 के बजट में 1400 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। सरकार का ‘ऑपरेशन ग्रीन’ के रूप में एक और सराहनीय कदम है जो उसने ‘ऑपरेशन फ्लड’ यानि दुग्ध क्रांति की तर्ज पर शुरू किया है। इसके तहत किसान उत्पादक संगठनों, कृषि संभारतंत्र, प्रसंस्करण सुविधाओं तथा व्यवसायिक प्रबंधन को अपनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा। 42 मेगा फूड पार्कों में अत्याधुनिक परीक्षण सुविधाएं, कृषि जिन्सों को निर्यात योग्य बनाने में सहायता कर सकती हैं, जिससे भारत का वैश्विक कृषि निर्यात 100 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

सरकार ने इस बजट में बांस पर विशेष फोकस किया है। बांस ‘हरित सोना’ (ग्रीन गोल्ड) के रूप में जाना जाता है। इस बजट में वित्त मंत्री ने बांस क्षेत्र को सम्पूर्ण रूप में बढ़ावा देने के लिए 1290 करोड़ के परिव्यय और एक पुनर्गठित राष्ट्रीय बांस मिशन शुरू करने का प्रस्ताव रखा है। इस मिशन को अगर सही ढंग से मैकेनाइज किया गया तो उत्तर प्रदेश, मध्य-प्रदेश, बिहार जैसे राज्य अपनी आय में वृद्धि कर सकेंगे और पूर्वोत्तर के राज्य इकोनॉमिक हब बनने की ओर बढ़ सकेंगे। यानि भारत में ग्रीन गोल्ड इकोनॉमी एक बड़े घटक के रूप में स्थापित हो सकती है। सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए संस्थागत ऋण की राशि को वर्ष 2018-19 के लिए 10 लाख करोड़ से बढ़ाकर 11 लाख करोड़ करने का निर्णय लिया है। इससे कृषि के वित्त पोषण में सुविधा मिलेगी जो अंततः उत्पादक को बढ़ाने में काम आएगी।

समृद्ध भारत के लिए आवश्यक है भारत स्वस्थ हो, इस दिशा में सरकार की ‘आयुष्मान भारत योजना’ उसी प्रकार से एक हस्ताक्षर साबित हो सकती है जैसे यूपीए की मनरेगा हुयी। इसके तहत सरकार 10 करोड़ गरीब परिवारों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल योजना में पांच लाख रुपये की हॉस्पिटलाइजेशन की सुविधा प्रदान करेगी। 50 करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष इलाज के लिए सालाना 5 लाख रुपये दिए जाएंगे। इस तरह से सरकार ने ग्रामीण भारत से लेकर जनजातीय भारत तक को समेकित करने की कोशिश की है लेकिन भारत के आम जन के लिए सबसे अहम पक्ष होता है आय कर, जिस पर सरकार ने ‘टैक्स स्लैब’ में कोई बदलाव नहीं किया है।

सरकार यह बताने की कोशिश कर रही है कि उसने आम आदमी के कर व्यवहार में परिवर्तन किया है और इसका आधार अधिक से अधिक लोगों को कर व्यवस्था से जुड़ना, ना कि कर देना। इस कारण से सरकार टैक्स स्लैब में परिवर्तन नहीं कर रही लेकिन यह मध्यम वर्ग के साथ अन्याय है। यदि खुदरा दरों में मुद्रा स्फीति की औसत दर 5 से 7 प्रतिशत के बीच रहती है तो सरकार को कम से कम इसके अनुपात में टैक्स स्लैब तो बढ़ाना ही चाहिए। हालांकि सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स में उदारता दिखाने की कोशिश की है जिससे उसे वर्ष 2018-19 में 7,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान। वेतनभोगी करदाता को केवल 40,000 रुपए की मानक कटौती का लाभ दिया जाएगा और वरिष्ठ नागरिकों को विभिन्न जमाओं पर मिलने वाले 50,000 रुपये तक के ब्याज पर कर छूट मिलेगी, जो पहले 10,000 रुपये थी। कुल मिलाकर बजट दृष्टि बेहतर है लेकिन बजट मैकेनिज्म अस्पष्ट और सरकार के खर्चों के अनुरूप आय में संतुलन का अभाव।

 

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