अलविदा कुलदीप नैय्यर: 'जिस धज से कोई मक़्तल को गया'

Hridayesh Joshi | Aug 23, 2018, 07:11 IST
इमरजेंसी के दौर में तमाम बड़े पत्रकारों ने हथियार डाल दिए थे लेकिन नैय्यर की आवाज़ सबसे बुलंद थी। नैय्यर उस दौर में जूनियर पत्रकारों को सत्तापक्ष की ज्यादतियों के खिलाफ लिखने बोलने को प्रोत्साहित कर रहे थे।
#कुलदीप नैय्यर
अपनी आत्मकथा 'बियोंड द लाइन्स' की शुरुआत में ही कुलदीप नैय्यर कहते हैं– "मैं पत्रकारिता में इत्तिफाक से आया। मैं वकालत करना चाहता था और मैंने लाहौर यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री ली थी"

RDESController-808
RDESController-808


लेकिन इत्तेफाक से पत्रकारिता में आए कुलदीप नैय्यर उस दौर की सबसे मुखर आवाज़ों में रहे जिसे आज़ाद भारत के इतिहास में एक काला अध्याय कहा जाता है। मेरी मुलाकात कुलदीप नैय्यर साहब से 2015 में हुई जब एनडीटीवी इंडिया में मेरे संपादक ने इमरजेंसी के 40 साल पर मुझे एक विशेष कार्यक्रम बनाने का जिम्मा सौंपा। मैं अपनी सहयोगी केतकी आंग्रे के साथ नैय्यर से मिलने गया। नैय्यर शारीरिक रूप से काफी कमज़ोर हो गए थे और व्हील चेयर पर अपने कमरे में आए जहां हम उनका इंतज़ार कर रहे थे।

इमरजेंसी की बातें बताते वक्त उनकी आखों में एक चमक और स्वर में एक संतोष था। जिस दौर में तमाम बड़े पत्रकारों ने हथियार डाल दिए थे नैय्यर की आवाज़ सबसे बुलंद थी। खुशवंन्त सिंह जैसे पत्रकारों ने इमरजेंसी के पक्ष में लिखा और विनोबा भावे ने आपातकाल को अनुशासन पर्व तक कहा लेकिन नैय्यर उस दौर में जूनियर पत्रकारों को सत्तापक्ष की ज्यादतियों के खिलाफ लिखने बोलने को प्रोत्साहित कर रहे थे। उस दिन उन्होंने न केवल हमें एक बेबाक इंटरव्यू दिया बल्कि अपनी आत्मकथा की एक प्रति भी भेंट की।

पत्रकार विजय त्रिवेदी नैय्यर से बातचीत के आधार पर एक किस्सा सुनाते हैं।

"जिस दिन इमरजेंसी लगी उस दिन नैय्यर साहब ने इन्दिरा सरकार के मन्त्री जगजीवन राम को फोन लगाया। जगजीवन राम का फोन व्यस्त आ रहा था और नैय्यर ने उनके घर का रुख किया। जगजीवन राम ने फोन उठा कर रख दिया था ताकि किसी से बात न करनी पड़े। कुलदीप नैय्यर ने उनसे कहा कि अब तो इन्दिरा जी आपको प्रधानमंत्री भी बना सकती हैं। नैय्यर बोले, "जगजीवन राम ने कहा कि वह मुझे तो नहीं लेकिन अगर किसी और को बनाना हो तो कमलापति त्रिपाठी को पीएम बनायेंगी"

ये सर्वविदित है कि बाद में जगजीवन राम और इन्दिरा गांधी के रिश्तों में तल्खी आ गई और बीजेपी आज तक कांग्रेस पर इसे लेकर हमले करती रहती है। नैय्यर की आत्मकथा कई पहलुओं पर रोशनी डालती है। इनमें से एक पहलू जेपी आंदोलन औऱ जनसंघ के रिश्तों को लेकर भी है।

अपनी जीवनी में नैय्यर ने लिखा है कि संघ अपनी हिन्दुत्व की छवि को सुधारना चाहता था। वह जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़कर जेपी की सेक्युलर इमेज का फायदा उठाना चाहता था हालांकि जेपी के आन्दोलन में किसी संकीर्ण क्षेत्रीय और साम्प्रदायिक सोच के लिए जगह नहीं थी।

नैय्यर लिखते हैं कि जेपी एक भावुक इंसान थे और जब आरएसएस नेताओं ने उन्हें भरोसा दिलाया कि जनसंघ का उनसे कोई रिश्ता नहीं रहेगा तो वह मान गए। नैय्यर के मुताबिक यह जेपी की सबसे बड़ी भूल थी।

कुलदीप नैय्यर पाकिस्तान के सियालकोट में पैदा हुए थे और अपनी जन्मभूमि से उनका गहरा लगाव रहा। उन्होंने भारत-पाक रिश्तों में बेहतरी के लिए कई कोशिशें की। जब भी मानवाधिकारों के लिए आवाज़ उठी तो नैय्यर काफी आगे रहे।

नैय्यर अब नहीं हैं लेकिन उस दिन इंटरव्यू के बाद नैय्यर ने कई शायरों को उद्धृत किया और मुझे बड़ी खुशी हुई जब उन्होंने आखिर में फैज़ अहमद फैज़ का वह शेर कहा जो मेरे दिल के भी बेहद करीब है-

"जिस धज से कोई मक्तल को गया

वो शान सलामत रहती है

इस जान का यारो क्या कहना

ये जान तो आनी जानी है।"

Tags:
  • कुलदीप नैय्यर
  • बियोंड द लाइंस
  • वरिष्ठ पत्रकार
  • इमरजेंसी
  • जयप्रकाश नारायण
  • आरएसएस

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.