वेस्ट मैनेजेमेंट सिस्टम के अभाव में कौन लेगा सफ़ाई कर्मचारियों के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी?

Swati Subhedar | Nov 28, 2018, 06:37 IST
इस जगह पर न कानून का पालन होता है न ही मानव अधिकारों का। नियम के अनुसार शहरों में कचरा फेकने वाली जगह और रहवासी इलाको में 5०० मीटर का अंतर होना चाहिए। लेकिन यहाँ कचरे के ढेर के भीतर ही कई छोटी-छोटी बस्तिया हैं जहाँ कचरा उठाने वाले लोग अपने परिवारो के साथ रहते हैं।
#गाँव कनेक्शन
मेरे बचपन का शहर - अहमदाबाद, बदल रहा है। रास्ते चौड़े हो रहे हैं और लगातार बढ़ती जनसंख्या की वजह से हर तरफ से शहर भी बढ़ रहा है। सड़कों पर वाहन भी उसी गति से बढ़ रहे हैं जिस वजह से कई फ्लाईओवर बन रहे हैं और शहर को एक सिरे से दुसरे सिरे तक जोड़ने के लिए मेट्रो का काम जोरो पर है। बहुत जल्द यहां से बुलेट ट्रेन भी जाएगी। यहां कई एेतिहासिक स्मारक हैं, जिस वजह से इस शहर को 'वर्ल्ड हेरिटेज सिटी' का ख़िताब मिला हुआ है। वे किस हाल में हैं, वो एक अलग मुद्दा है।

RDESController-770
RDESController-770


लेकिन इस शहर के एक कोने में तीन ऐसी मिनारे हैं जो इस शहर की शान बढ़ाती हैं। 1982 से लगातार बढ़ती, 84 हेक्टेयर में फैली ये मिनारे हैं 75-फीट ऊंचे तीन कचरे के पहाड़। हर एक का वज़न 69 लाख मीट्रिक टन है। यहां हर रोज़ शहर से बटोरा हुआ 4700 मीट्रिक टन कचरा लाके फेका जाता है।

इस जगह पर न कानून का पालन होता है न ही मानव अधिकारों का। नियम के अनुसार शहरों में कचरा फेकने वाली जगह और रहवासी इलाको में 500 मीटर का अंतर होना चाहिए। लेकिन यहां कचरे के ढेर के भीतर ही कई छोटी-छोटी बस्तिया हैं जहां कचरा उठाने वाले लोग अपने परिवारो के साथ रहते हैं। यहां रहने वाले कुछ लोग बांग्लादेशी भी हैं जो 20 साल से यहां रह रहे हैं। पास में कई छोटे-बड़े होटल और रहवासी इलाके हैं। एक फ्लाईओवर के दूसरी ओर कई बहुमंजिला इमारते हैं जहां मकानों की कीमते करोड़ों में हैं। ऊपरी घरो में रहने वालो को यह सुन्दर नज़ारा हर रोज़ दिखता होगा।

यहां सालों से जमा हुआ कचरा ज्यादातर घरों से जमा किया हुआ है, लेकिन कई कारखाने रात के अंधेरे में विषैले पदार्थ भी यहां लाकर फेकते हैं, जिसकी वजह से यहां हर वक़्त जहरीला धुआं निकलता रहता है और कई बार आग भी लगती है, जिसको बुझाने में कई दिन लग जाते हैं।

आस पास के घरों में रहने वालों का हाल बेहाल है, ख़ास कर बच्चो और बुजुर्गों का। यहां की हवा में इतना प्रदूषण है की 10 मिनट खड़े रह पाना मेरे लिए मुश्किल था। लेकिन पास ही में अक्लिमा शेख नामक एक महिला ख़ुशी-ख़ुशी अपने हाथों से कचरा चुन रही थी, न पाँव में चप्पल, ने हाथों में ग्लव्स। यहां काम करने वाले लोग अपने मर्ज़ी से ये काम करते हैं, क्योंकि इसमें ज़बरदस्त पैसा है। जितना ज्यादा कचरा उठाओ, उतना ज्यादा पैसा। कई लोग दिन का 500 और महीना का करीब 12 से 15 हज़ार कमाते हैं। समय की कोई पाबन्दी नहीं, कभी भी आओ, कभी भी जाओ। यहां तक की कुछ लोग रात को भी निकल पड़ते है इन 'पहाड़ो' पर।

यहां ऐसे 1000 लोग हैं जो ये काम करते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी रजिस्टर्ड नहीं है। हर कोई एक 'सेठ' के किये काम करता है, जो इनको पैसा देता है। इनमें से एक सेठ ने बताया जितना ये लोग मजदूरी करके या होटलों में काम करके नहीं कमाते, उनको कई ज्यादा पैसा इसमें मिलता है।

लेकिन इनके स्वास्थ्य का क्या? महिलाओं की सुरक्षा और बच्चों की पढाई का क्या? यहां रहने वाले लोगों को हार्ट, लंग या रेस्पिरेटरी बीमारिया होती हैं, लेकिन सरकार के तरफ से कोई पहल नहीं है। ना ही इनको विस्थापित करने की और ना ही कुछ कदम उठाने की जिस से इन 'पहाड़ों' की समस्या का कोई हल निकल आये। जो एक ट्रीटमेंट प्लांट यहाँ था वो कब से बंद पड़ा है।

RDESController-771
RDESController-771


यह कहानी सिर्फ अहमदाबाद की नहीं है, इस देश के हर शहर की है, चाहे वो कोलकाता का डाफा हो, दिल्ली का गाझीपुर या मुंबई का देओनार। कचरा उठाना एक बहुत बड़ा कारोबार है और इस से कई लोगो की जेबें भर रही हैं, जिस वजह से कोई उपाय निकलना दूर-दूर तक संभव नहीं लग रहा। मुंबई में तो यह सालाना 25-40 करोड़ का 'धन्धा' है।

प्रधान मंत्री कहते हैं कि पकोड़े बेचना एक तरह का रोज़गार है, उस हिसाब से जो ये लोग कर रहे हैं, उसमे भी कुछ गलत नहीं। चाहे ये गैर-कानूनी हो या इसमें लोगो की जान जाये। शहर तो बढ़ेंगे ही, उसके साथ-साथ जनसंख्या भी। लेकिन इन समस्याओं का हल अगर आज नहीं निकला तो हमारे बच्चों का कल खतरे में है।

(स्वाति सुभेदार एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)

Tags:
  • गाँव कनेक्शन
  • pollution
  • environment
  • health
  • waste management

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.