मेड इन इंडिया: अब नेत्रहीन भी महसूस कर सकेंगे कैसी दिखती है दुनिया

गाँव कनेक्शन | Jan 08, 2017, 13:14 IST
Pallava Bagla
पल्लव बाग्ला

नेत्रहीनों के लिए नक्शे उपलब्ध करवाना आसान तो नहीं है लेकिन इन लोगों के लिए भारत में बड़े स्तर पर नक्शे बनाए गए हैं। देख सकने वाले लोगों के लिए नक्शों का इस्तेमाल भी आसान है लेकिन दुनिया के लाखों नेत्रहीन लोगों के लिए नक्शे दूर की कौड़ी हैं। देख सकने वाले लोग अब अपने आसपास की कॉफी शॉप या मेट्रो स्टेशन का पता लगाने के लिए अपने स्मार्टफोनों में दिए नक्शों का भी इस्तेमाल करने लगे हैं।

नेत्रहीनों की नक्शों तक पहुंच लगभग न बराबर थी लेकिन अब भारत में दृष्टि संबंधी दोषों का सामना करने वाले लगभग 2.8 करोड़ लोगों के लिए यह स्थिति बदल रही है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने हाल ही में नेत्रहीनों के लिए एक एटलस जारी किया है। पहली बार, नेत्रहीन लोग यह महसूस कर सकेंगे कि भारत दिखता कैसा है। देख सकने वालों के लिए भारत का नक्शा कोई नई चीज नहीं है लेकिन जो लोग देख नहीं सकते, उनके लिए नक्शा पहुंच से बाहर था।

इस समस्या का हल एक ऐसा नक्शा बनाने से निकला, जिसे देखने के बजाय महसूस किया जा सकता है। अधिकतर नेत्रहीनों में छूकर चीजों को पहचान पाने की क्षमता बहुत अधिक होती है। कोलकाता के नेशनल एटलस एंड थीमैटिक मैपिंग ऑर्गनाइजेशन ने कई साल के प्रयास के बाद ऐसा अदभुत एटलस बनाया। इसमें नक्शे की बाहरी रेखाएं उभरी हुई हैं। इसमें कागज पर सिल्क स्क्रीन प्रिंटिंग का इस्तेमाल करके नक्शा बनाया गया है ताकि नेत्रहीन लोग उन्हें महसूस कर सकें। इसे ब्रेल एटलस कहा जाता है।

भारत के पूर्व महासर्वेक्षक और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के मौजूदा कुलपति पृथ्वीश नाग के अनुसार, ‘यह दुनिया के नेत्रहीनों के लिए पहला पूर्ण एटलस है।' अन्य वैश्विक पहलों के बारे में उन्होंने कहा कि दुनिया के अधिकतर अन्य प्रयास एकल नक्शे बनाने के रहे हैं लेकिन बड़ी संख्या में बनाए जा सकने वाले पूर्ण एटलस का निर्माण भारतीय प्रयास के तहत किया गया है और यह दुनिया में अपनी तरह की पहली उपलब्धि है।

तीन जनवरी को यहां आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनएटीएमओ की निदेशक ताप्ती बनर्जी को इस उपलब्धि के सम्मान में ‘‘नेशनल अवॉर्ड फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंटरवेन्शन इन एंपावरिंग द फिजीकली चैलेंज्ड'' से नवाजा। लगभग 11 हजार वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, ‘हमारे शीर्ष संस्थानों को स्कूलों और कॉलेजों समेत सभी पक्षकारों के साथ जोड़ने के लिए कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व की तर्ज पर वैज्ञानिक सामाजिक दायित्व का सिद्धांत भी लागू किया जाना चाहिए। हमें विचारों और संसाधनों के आदान-प्रदान के लिए माहौल बनाना चाहिए।’ यह ब्रेल एटलस ऐसा ही एक काम है, जो दिव्यांगों की मदद करेगा। ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री ने कुछ ही समय पहले विकलांगों को ‘दिव्यांग' नाम दिया था।

सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय के आकलनों के अनुसार, वर्ष 2015 में 1.6 करोड़ से ज्यादा नेत्रहीन लोग थे और 2.8 करोड़ लोग दृष्टि संबंधी दोषों से प्रभावित थे। अब पहली बार ये लोग किसी नक्शे को छूकर पढ़ सकते हैं। आंशिक रूप से दृष्टि संबंधी दोषों से प्रभावित लोगों के लिए एनएटीएमओ तेज रंगों से नक्शे बनाता है ताकि वे अपनी कमजोर नजर के बावजूद नक्शे देख पाएं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनियाभर में 28.5 करोड़ लोगों के नजर संबंधी विसंगति का शिकार होने का अनुमान है। इनमें से 3.9 करोड़ लोग नेत्रहीन हैं। यह बात दुखद है कि दुनिया में नजर संबंधी विसंगति से पीड़ित 90 फीसदी लोगों की आय कम है। भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा नेत्रहीन लोग रहते हैं और यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से तीन चौथाई मामले ऐसे हैं, जिनमें नेत्रहीनता से बचा जा सकता है।

इसे अपनी उंगलियों से महसूस करते हैं। इसके अलावा सभी नाम और अन्य आंकड़े ब्रेल में समाहित किए जाने थे। कुल 84 पन्नों वाले श्वेत-श्याम एटलस को ए-3 आकार के पन्ने पर बनाया गया है ताकि सारी जानकारी आसानी से समाहित की जा सके। बनर्जी के अनुसार, इस परियोजना पर वर्ष 1997 में काम शुरू हो गया था और उनके दल को एटलस बनाने के लिए सबसे पहले ब्रेल में दक्षता हासिल करनी पड़ी थी। उन्हें इस बात का दुख है कि इस काम में बहुत समय लग गया क्योंकि सरकार ने एनएटीएमओ के कर्मचारियों की संख्या को 500 से घटाकर 150 कर दिया।

एटलस सिर्फ अंग्रेजी में ही नहीं बल्कि बंगाली, गुजराती और तेलुगू में भी तैयार किया गया है। इसमें 20 विभिन्न नक्शे हैं, जिनमें भारत के राजनीतिक नक्शे, भौतिक नक्शे और भारत में विभिन्न मिट्टियों के नक्शे हैं। एनएटीएमओ ने ब्रेल एटलस की लगभग 500 प्रतियां प्रकाशित की हैं और इनमें प्रत्येक नक्शे की लागत 1000 रुपए है। इन्हें भारत के नेत्रहीन विद्यालयों में मुफ्त में बांटा जा रहा है।

एनएटीएमओ का यह प्रयास कम से कम एक बड़ी सामाजिक जरूरत को पूरा करने की दिशा में प्रयास करता है और भारतीय विज्ञान की ओर से समाज की सेवा का पहलू दिखाता है।

(भाषा/पीटीआई)

(पल्लव बाग्ला जाने-माने विज्ञान लेखक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

Tags:
  • Pallava Bagla
  • braille atlas
  • world's first atlas for blind
  • science writer

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.