इनकी कोशिश है कि असम के चाय बागानों का हर एक बच्चा जाए स्कूल

Sayantani Deb | Apr 03, 2025, 13:45 IST
गरीबी में पले-बढ़े शिक्षक दिपेन खानिकर की कोशिश है कि कोई भी बच्चा पढ़ाई में पीछे न रह जाए, तभी तो उनके इन प्रयासों की वजह से राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
Dipen Khanikar national awardee teacher assam
डिब्रूगढ़ के चाय बागानों में इन दिनों शिक्षा की नई लहर चल रही है, जहाँ लड़कियाँ स्कूल नहीं जाना चाहती थीं, अब एक दिन भी क्लास नहीं छोड़ना चाहती हैं।

चाय बागान में पले-बढ़े दिपेन खानिकर जब स्कूल में थे तब उनके पास किताब खरीदने के भी पैसे नहीं होते थे, मुश्किलों का सामना करके पढ़ाई की और अब शिक्षक हैं और अब इनकी यही कोशिश है कि जो परेशानी इन्हें उठानी पड़ी वो किसी और बच्चे को न उठानी पड़े।

असम के डिब्रूगढ़ ज़िले के ची चिया बोकुलोनी गर्ल्स हाई स्कूल के 30 वर्षीय शिक्षक दिपेन खानिकर गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मैं जब स्कूल में था तो मेरे पास किताब खरीदने के पैसे नहीं थे, लेकिन अब मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि मेरे स्कूल की लड़कियों को वे सभी सुविधाएँ मिलें जिनकी वे हकदार हैं।”

Dipen Khanikar national awardee teacher assam (2)
Dipen Khanikar national awardee teacher assam (2)
दिपेन ने बचपन से ही आर्थिक तंगी का गहरा प्रभाव देखा, खासकर बच्चों की शिक्षा पर। अपने उस दौर को याद करते हुए दिपेन गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "मेरा बचपन चुनौतियों से भरा था। पढ़ाई से लेकर रोजमर्रा के कामों तक, सब कुछ मुश्किल था, लेकिन मैंने इन बाधाओं को अच्छे तरीके से पार किया। चाय बागान के किनारों पर पले-बढ़े होने के कारण, मैंने मजदूरों की दुर्दशा को करीब से देखा, जिस वजह से वहाँ की लड़कियाँ पढ़ नहीं पाती थीं।"

ग्रेजुएशन के बाद, दिपेन ने 2003 में स्थानीय ची चिया बोकुलोनी गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ाना शुरू किया और अगले एक दशक तक बिना किसी सैलरी के वहाँ पढ़ाते रहे। वे आगे कहते हैं, "मुझे पता था कि यह एक निजी पहल वाला स्कूल है और कुछ मुश्किलें आएंगी, लेकिन वंचित बच्चों को पढ़ाने के जज्बे ने मुझे इस स्कूल से जोड़े रखा।"

छात्रों की संख्या बढ़ाने और ड्रॉपआउट रोकने की पहल

बरसों से, दिपेन ने स्कूल में नामांकन बढ़ाने और ड्रॉपआउट दर कम करने के लिए कड़ी मेहनत की। वे बताते हैं, "जब मैंने पहली बार स्कूल जॉइन किया था, तब यहाँ केवल 30-35 बच्चे थे, और यहाँ ड्रॉपआउट दर भी बहुत ज़्यादा थी।"

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता यह शिक्षक मानते हैं कि सीखना एक उत्सव की तरह होना चाहिए। वे पढ़ाई को रोचक बनाने के लिए नाटक, कठपुतली शो, पहेली खेल और शारीरिक गतिविधियों की मदद लेते हैं।

Dipen Khanikar national awardee teacher assam (4)
Dipen Khanikar national awardee teacher assam (4)
वे बताते हैं, "शुरुआत से ही मैंने समझ लिया था कि पारंपरिक पढ़ाई के तौर तरीके इन दूरस्थ क्षेत्रों में प्रभावी नहीं होंगे। इसलिए, मैंने नए तरीके से की पढ़ाई को बढ़ावा दिया, जहाँ बच्चे नाटक, कठपुतली शो और अन्य मनोरंजक तरीकों से सीख सकें। इससे बच्चों की स्कूल आने और नियमित रूप से पढ़ाई करने की रुचि बढ़ी।"

छठी कक्षा की छात्रा, पोरी बोरुआ, दिपेन सर की सोशल स्टडी की क्लास कभी भी मिस नहीं करना चाहती। वह कहती हैं, "इतिहास को रोचक और मजेदार बनाना सिर्फ सर ही कर सकते हैं। नृत्य, संगीत, नाटक और कठपुतली शो के जरिए वे हमें इतनी आसानी से पाठ पढ़ाते हैं कि हमें जल्दी याद हो जाता है।"

तकनीक के उपयोग से पढ़ाई को बनाया रोचक

दिपेन ने अपने वेतन से स्कूल के लिए तकनीकी संसाधन खरीदे हैं। उन्होंने स्कूल में एक प्रोजेक्टर और एक स्मार्ट टीवी लगाया है। वे बताते हैं, "डिजिटल युग में स्मार्ट शिक्षा ज़रूरी हो गई है। स्मार्ट टीवी की मदद से बच्चे सीखते हैं, जिससे उनकी शैक्षणिक उपलब्धियाँ बेहतर होती हैं और उनका समग्र विकास भी होता है। मेरे छात्रों की बेहतरी के लिए जो भी ज़रूरत होती है, मैं उसे खुद खरीदता हूँ, सरकारी सहायता का इंतजार नहीं करता।"

उनके प्रयासों का परिणाम यह रहा कि वर्तमान में स्कूल में 185 छात्र हैं।

समाज के लिए भी कर रहे हैं काम

केवल स्कूल के अंदर ही नहीं, बल्कि स्कूल के बाहर भी, दिपेन हर बच्चे के समग्र विकास के लिए प्रयासरत हैं। वे बताते हैं, "हमारे स्कूल के ज़्यादातर बच्चे कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं। कुछ बच्चों को पैसों की कमी के चलते स्कूल छोड़ना पड़ता है, और कई माता-पिता स्कूल भेजने को समय की बर्बादी समझते हैं। ऐसे में, स्कूल के बाद मैं घर-घर जाकर अभिभावकों से बात करता हूँ और उन्हें अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ।"

यही नहीं दीपेन दूसरे स्कूलों के बच्चों के लिए भी ट्यूशन क्लासेज भी चलाते हैं

एक चाय किसान, अपूर्व बोरुआ, दिपेन को समाज के लिए वरदान मानते हैं। वे कहते हैं, "ट्यूशन क्लास के साथ ही, वो योग कक्षाएँ भी आयोजित करते हैं, जिससे हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है और मन भी शुद्ध हो रहे हैं।"

कोरोना काल में ई-लर्निंग को बढ़ावा

कोरोना महामारी के दौरान, दिपेन ने असम और उसकी ऐतिहासिक धरोहरों से संबंधित जानकारी को प्रचारित करने के लिए 2D और 3D वीडियो बनाए और उन्हें दीक्षा पोर्टल पर अपलोड किया। वे बताते हैं, "लॉकडाउन में लोग घरों में थे और कुछ नया सीखना चाहते थे। मैंने इस अवसर का लाभ उठाया और असम के इतिहास और अन्य रोचक जानकारियाँ साझा कीं। प्रतिक्रिया जबरदस्त रही।"

आखिर में दिपेन अपने विचार साझा करते हुए कहते हैं, "एक शिक्षक समाज को बदल सकता है। हर शिक्षक की यह जिम्मेदारी है कि वे स्कूल की चारदीवारी से बाहर निकलकर समाज के लिए योगदान दें।"

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