"बच्चे पढ़ाई में पीछे न रह जाएँ, इसलिए पाँच किमी पहाड़ चढ़कर हर दिन स्कूल जाता हूँ"

Akankhya Rout | Nov 13, 2024, 13:11 IST
पहाड़, झरने और जंगली जानवरों की परवाह किए बिना लगातार सात साल से पहाड़ चढ़कर बच्चों को पढ़ाने के लिए जाते हैं। उन्हें एक घंटे की चढ़ाई के बाद उतरने में भी एक घंटा लगता है।
Inspiring Adarsha Teacher Of Kendujhar Climb Mountains To Propagate Education
एक हाथ में डंडा और कंधे पर किताबों से भरा झोला टाँगे कलेवर महंता अपने घर से सुबह जल्दी निकल जाते हैं, कहीं उन्हें स्कूल पहुँचने में देरी न हो जाए, क्योंकि उन्हें पाँच किमी खंडाधार पहाड़ चढ़कर ऊबड-खाबड़, कंकरीले रास्तों से पैदल चलकर स्कूल पहुँचना होता है।

ये हैं ओडिशा के केंदूझर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर बाँसपल ब्लॉक के सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय, कदकला के शिक्षक कलेवर महंता। जो पिछले सात साल से ऐसे ही समय पर स्कूल पहुँचते हैं। चाहे कड़कती धूप हो, कड़ाके की ठंड हो या तेज बारिश, किसी भी मौसम की परवाह किए बिना, कलेवर कभी स्कूल न जाने का बहाना नहीं देते। यही नहीं, जानवरों से भी उन्हें डर नहीं है। वे घने जंगल के बीच से गुजरते हैं, जहाँ दूर-दूर तक सिर्फ झाड़ियाँ और लंबे पेड़ नजर आते हैं।

कलेवर ने गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "सुबह अगर 8 बजे निकले तो हमें करीब एक घंटे का समय लगता है। बीच में रुक-रुककर जाना पड़ता है; पूरे समय पहाड़ की चढ़ाई करना मुश्किल है। हमें जंगली जानवरों से डर नहीं लगता; हर दिन जाने-आने से वे हमारे दोस्त बन गए हैं। पहले जब हम जाते थे तो बहुत डर लगता था, लेकिन अब यह रोज की बात हो गई है। हमने एक-दो बार जंगली जानवरों के साथ भी आमना-सामना किया है।"

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जहाँ लोग पहाड़ ट्रेकिंग या छुट्टियाँ मनाने जाते हैं, वहीं कलेवर बच्चों को पढ़ाने के लिए रोज पहाड़, झरने और जंगलों में होकर जाते हैं। उनकी इस कोशिश का मकसद है कि बच्चों की पढ़ाई कभी पीछे न रह जाए। घने जंगलों के बीच बिना जंगली जानवरों से डरे, कलेवर हर दिन झाड़ियों के बीच से नदी को पार करके स्कूल जाते हैं। नेटवर्क तो दूर, वहाँ कच्ची सड़कें भी नहीं हैं। इसी मुश्किल रास्ते को पार करते हुए कलेवर अपनी यात्रा करते हैं।

खंडाधार पहाड़, खंडाधार झरने के लिए मशहूर है जो केवल क्योंझर जिले का ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य का एक सबसे खूबसूरत जलप्रपात है। झरने का तेज़ प्रवाह लगभग 500 फीट की ऊँचाई से सीधा धरती पर गिरता है। झरने को देखने के लिए ओडिशा ही नहीं दूसरे राज्यों के पर्यटक भी आते हैं।

कलेवर आगे कहते हैं, "रास्ता बनाने के लिए सरकार से पैसे स्वीकृत तो हुए हैं, लेकिन आज तक वहाँ के लोगों ने पक्के रास्ते नहीं देखे हैं। जो लोग ऊपर कदकाला गाँव में रहते हैं, उनके पास स्वास्थ्य सुविधाएं सही से नहीं हैं और रोजमर्रा की जरूरतों का सामान भी वहाँ नहीं मिलता। गाँव के लोगों को जब भी कहीं जाना हो या कुछ सामान चाहिए हो, तो उन्हें नीचे जाना पड़ता है।"

"हम इतनी दूर से आते हैं, बच्चे खुश होते हैं और जाते ही प्रेयर करवाते हैं। फिर क्लास में जाकर बच्चों को पढ़ाते हैं। हमारे स्कूल में 1 से 8 कक्षा तक क्लासेज हैं और लगभग 100 बच्चे पढ़ते हैं। मेरे माता-पिता किसान थे और बड़ी मुश्किलों से मैंने अपनी पढ़ाई की है। हमेशा मेरा निर्णय था कि मैं एक शिक्षक बनूँगा और बच्चों को पढ़ाऊँगा, "कलेवर ने गर्व से कहा।

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सुबह के समय तो इतनी मुश्किल नहीं होती है, लेकिन शाम के वक्त जब अंधेरा होने लगता है, तब मुश्किल होती है। कलेवर आगे कहते हैं, "शाम में स्कूल छुट्टी होते ही हम तुरंत आते हैं ताकि शाम ढलने से पहले चढ़ाई खत्म करके नीचे पहुँच जाएँ। शाम के वक्त वहाँ कोई लाइट नहीं होती।"

अपने शिक्षक की इस कठिन परीक्षा की तारीफ उनके बच्चे भी करते हैं। छठवीं कक्षा में पढ़ने वाली 12 साल की निरुकुमार देहुरी कहते हैं, "कलेवर सर हमें बहुत प्रेरित करते हैं, जिसे शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता। उनके इस जोश और मेहनत से हम बहुत कुछ सीखते हैं। हमारे घर में जब लोग सुनते हैं कि सर इतने दूर से हमें पढ़ाने के लिए आते हैं, तो वे भी खुश होते हैं।"

नेरु अपने गाँव की परेशानियों को बताती हैं, "मेरे गाँव की सबसे बड़ी दिक्कत रास्ता न होना है, क्यों कि यही एक ही रास्ता है स्वास्थ्य केंद्र और पंचायत जाने के लिए। दूसरा रास्ता 45 किलोमीटर दूर है, जिसे हर दिन जाना-आना संभव नहीं है।"

जब बच्चों को किसी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कहीं जाना हो, तो उन्हें पूरा घूमकर जाना पड़ता है, जिससे लगभग एक घंटे का सफर होता है। इस रास्ते के बिना, न जाने कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

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