पक्षियों से आए वायरस क्यों बनते हैं ज़्यादा घातक
Gaon Connection | Dec 17, 2025, 12:12 IST
नया वैज्ञानिक अध्ययन बताता है कि बुखार शरीर की एक शक्तिशाली एंटीवायरल रक्षा है, लेकिन पक्षियों से आए कुछ इन्फ्लुएंजा वायरस ऊँचे तापमान में भी आसानी से बढ़ते हैं। यही कारण है कि ऐसे वायरस इंसानों में ज़्यादा गंभीर बीमारी और महामारी का रूप ले सकते हैं
इन्फ्लुएंजा यानी फ्लू के वायरस इंसानों और जानवरों के बीच बार-बार आवाजाही करते रहते हैं। ज़्यादातर मामलों में मानव शरीर इन वायरसों से लड़ने के लिए बुखार पैदा करता है। बुखार को अक्सर बीमारी का लक्षण माना जाता है, लेकिन असल में यह शरीर की एक पुरानी और प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली है, जो वायरस की बढ़त को धीमा कर देती है। लेकिन हालिया वैज्ञानिक अध्ययन बताता है कि हर फ्लू वायरस बुखार से नहीं डरता, खासकर वे वायरस जो पक्षियों से इंसानों में आए हैं।
पक्षियों का शरीर तापमान आम तौर पर 40 से 42 डिग्री सेल्सियस तक होता है, जबकि इंसानों का सामान्य तापमान करीब 37 डिग्री होता है। इंसान जब बीमार पड़ता है तो शरीर का तापमान बढ़ाकर 38–39 डिग्री तक ले जाता है, ताकि वायरस के लिए माहौल मुश्किल बनाया जा सके। समस्या यह है कि पक्षियों से आए इन्फ्लुएंजा वायरस पहले से ही ज़्यादा तापमान में जीने और बढ़ने के आदी होते हैं।
इसी सवाल को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने यह जांचा कि क्या बुखार खुद में एक प्रभावी एंटीवायरल हथियार है, और क्या पक्षियों से आए वायरस इस हथियार को बेअसर कर सकते हैं। शोध में पाया गया कि फ्लू वायरस के एक अहम जीन, जिसे PB1 कहा जाता है, की भूमिका इसमें निर्णायक होती है। यह जीन वायरस को शरीर के भीतर तेजी से अपनी कॉपी बनाने में मदद करता है।
जब वैज्ञानिकों ने मानव मूल के फ्लू वायरस में पक्षियों से आया PB1 जीन जोड़ा, तो वायरस की प्रकृति बदल गई। यह बदला हुआ वायरस ऊँचे तापमान पर भी आसानी से बढ़ने लगा। दिलचस्प बात यह है कि इतिहास की तीन बड़ी फ्लू महामारियाँ, 1918, 1957 और 1968 इन सभी में फैलने वाले वायरसों में भी avian-origin PB1 जीन मौजूद था। यही कारण माना जा रहा है कि ये वायरस बेहद घातक साबित हुए।
चूहों पर किए गए प्रयोगों में यह अंतर और साफ़ दिखाई दिया। सामान्य फ्लू वायरस, जब चूहों के शरीर का तापमान बढ़ाया गया, तो कमजोर पड़ गया और बीमारी हल्की रही। लेकिन वही वायरस, जिसमें पक्षियों वाला PB1 जीन डाला गया था, बुखार जैसी स्थिति में भी गंभीर बीमारी पैदा करता रहा। यानी बुखार ने सामान्य वायरस को रोका, लेकिन पक्षी-मूल वायरस पर इसका खास असर नहीं हुआ।
इसका मतलब साफ़ है, बुखार अपने आप में एक शक्तिशाली एंटीवायरल रक्षा है, लेकिन यह हर वायरस पर एक-सा काम नहीं करता। जो वायरस ऊँचे तापमान के अनुकूल ढल चुके हैं, वे इस प्राकृतिक सुरक्षा को चकमा दे सकते हैं। यही वजह है कि पक्षियों से इंसानों में आने वाले फ्लू वायरस अक्सर ज़्यादा गंभीर और खतरनाक साबित होते हैं।
यह खोज सिर्फ़ विज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके सीधे सार्वजनिक स्वास्थ्य निहितार्थ हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या हर स्थिति में बुखार को तुरंत दवा देकर दबा देना सही है। साथ ही, फ्लू वायरस की निगरानी के दौरान अगर किसी नए वायरस में avian-origin PB1 जीन पाया जाता है, तो उसे महामारी की चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए।
कुल मिलाकर, यह अध्ययन बताता है कि बुखार बीमारी नहीं, बल्कि शरीर की रक्षा रणनीति है, लेकिन कुछ वायरस इतने चालाक होते हैं कि वे इस गर्मी में भी फलते-फूलते रहते हैं। और यही उन्हें इंसानों के लिए सबसे बड़ा खतरा बना देता है।
पक्षियों का शरीर तापमान आम तौर पर 40 से 42 डिग्री सेल्सियस तक होता है, जबकि इंसानों का सामान्य तापमान करीब 37 डिग्री होता है। इंसान जब बीमार पड़ता है तो शरीर का तापमान बढ़ाकर 38–39 डिग्री तक ले जाता है, ताकि वायरस के लिए माहौल मुश्किल बनाया जा सके। समस्या यह है कि पक्षियों से आए इन्फ्लुएंजा वायरस पहले से ही ज़्यादा तापमान में जीने और बढ़ने के आदी होते हैं।
इसी सवाल को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने यह जांचा कि क्या बुखार खुद में एक प्रभावी एंटीवायरल हथियार है, और क्या पक्षियों से आए वायरस इस हथियार को बेअसर कर सकते हैं। शोध में पाया गया कि फ्लू वायरस के एक अहम जीन, जिसे PB1 कहा जाता है, की भूमिका इसमें निर्णायक होती है। यह जीन वायरस को शरीर के भीतर तेजी से अपनी कॉपी बनाने में मदद करता है।
जब वैज्ञानिकों ने मानव मूल के फ्लू वायरस में पक्षियों से आया PB1 जीन जोड़ा, तो वायरस की प्रकृति बदल गई। यह बदला हुआ वायरस ऊँचे तापमान पर भी आसानी से बढ़ने लगा। दिलचस्प बात यह है कि इतिहास की तीन बड़ी फ्लू महामारियाँ, 1918, 1957 और 1968 इन सभी में फैलने वाले वायरसों में भी avian-origin PB1 जीन मौजूद था। यही कारण माना जा रहा है कि ये वायरस बेहद घातक साबित हुए।
जब चूहों के शरीर का तापमान कृत्रिम रूप से बढ़ाया गया (यानी बुखार जैसी स्थिति बनाई गई) तब मानव-PB1 वाला वायरस कमजोर पड़ गया
चूहों पर किए गए प्रयोगों में यह अंतर और साफ़ दिखाई दिया। सामान्य फ्लू वायरस, जब चूहों के शरीर का तापमान बढ़ाया गया, तो कमजोर पड़ गया और बीमारी हल्की रही। लेकिन वही वायरस, जिसमें पक्षियों वाला PB1 जीन डाला गया था, बुखार जैसी स्थिति में भी गंभीर बीमारी पैदा करता रहा। यानी बुखार ने सामान्य वायरस को रोका, लेकिन पक्षी-मूल वायरस पर इसका खास असर नहीं हुआ।
इसका मतलब साफ़ है, बुखार अपने आप में एक शक्तिशाली एंटीवायरल रक्षा है, लेकिन यह हर वायरस पर एक-सा काम नहीं करता। जो वायरस ऊँचे तापमान के अनुकूल ढल चुके हैं, वे इस प्राकृतिक सुरक्षा को चकमा दे सकते हैं। यही वजह है कि पक्षियों से इंसानों में आने वाले फ्लू वायरस अक्सर ज़्यादा गंभीर और खतरनाक साबित होते हैं।
यह खोज सिर्फ़ विज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके सीधे सार्वजनिक स्वास्थ्य निहितार्थ हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या हर स्थिति में बुखार को तुरंत दवा देकर दबा देना सही है। साथ ही, फ्लू वायरस की निगरानी के दौरान अगर किसी नए वायरस में avian-origin PB1 जीन पाया जाता है, तो उसे महामारी की चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए।
कुल मिलाकर, यह अध्ययन बताता है कि बुखार बीमारी नहीं, बल्कि शरीर की रक्षा रणनीति है, लेकिन कुछ वायरस इतने चालाक होते हैं कि वे इस गर्मी में भी फलते-फूलते रहते हैं। और यही उन्हें इंसानों के लिए सबसे बड़ा खतरा बना देता है।