बेहतर पोषण से भरपूर है शहद 

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बेहतर पोषण  से भरपूर है शहद बेहतर पोषण से भरपूर है शहद।

पातालकोट के वनवासी अपने इलाके की पांच से छ: विभिन्न प्रकार के शहद इकठ्ठा करते हैं। इनमें से पलसा शहद मुख्य है जो मधुमक्खियां पलास के पेड़ पर तैयार करती है।

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एक छत्ते से कम से कम पंद्रह किलो शहद मिल जाता है। ठीक इसी तरह तेंदवा शहद जो तेंदू के पेड़ पर लगे छाते से निकाला जाता है। कुछ अन्य प्रमुख प्रकार के शहदों मे करंजा शहद (करंज के पेड़ से), नीम या कड़व शहद (नीम के पेड़ से), बबूलई शहद (बबूल के पेड़ से) और पहाड़ी शहद (चटटानो से) होते है। शहद निकालना और उसको बेचना सिर्फ इन वनवासियों का जीवन यापन का साधन ही नहीं है बल्कि इनकी जीवनशैली है।

वनवासियों को मधुमक्खियों के बारे में बहुत ज्ञान

इन वनवासियों को मधुमक्खियों के बारे में बहुत ज्ञान है। यह इनकी एक-एक हरकत से वाकिफ होते हैं। मधुमक्खियां फूल से रस लेकर अपने छत्तों की तरफ जाती हैं। उनका अपना एक तय रास्ता होता है। लगभग सुबह दस बजे जब सूरज एक विशेष ऊंचाई पर होता है, तो यह वनवासी उनके रास्ते देख सकते हैं। लगभग दोपहर के दो बजे कुछ मधुमक्खियों के गुनगुनाने को स्पष्ट रूप से सुना जा सकता है। शाम को छह से सात के आसपास बड़ी चट्टानों पर मधुमक्खियां अपने बच्चों के साथ खेलती हैं, उन्हें उड़ना सिखाती हैं। इस वक्त मधुमक्खियां बहुत प्रसन्न रहती हैं। दिन भर की मेहनत के बाद अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ समय बिताती हैं।

शहद निकालना एक कुशल कार्य

पालतू मधुमक्खियों से शहद निकालना एक कुशल कार्य है लेकिन जंगल में जाकर जंगली मधुमक्खियों के छत्ते से शहद निकालना बहुत कठिन कार्य है। जंगल में करीब अस्सी फीट उंचे पेड़ों से शहद निकालना भी अपने आप में एक कौशल है। इसके लिए कबीले के लोग अपने बच्चों को शुरू से ही ऐसे गुर (गुण) सिखाते हैं ताकि जब वे बड़े होकर जंगल में अकेले शहद निकालने जांए तो उन्हें कोई परेशानी ना आए। शहद निकालने के लिए यह वनवासी सिर्फ एक चाकू लेकर जाते हैं। इसके अलावा पूजा-पाठ की सामाग्री, खाने के लिए चावल आदि भी ले जाते हैं। शहद इकठ्ठा करने के लिए कुछ डिब्बे भी ले जाए जाते हैं।

बाकी जरूरत का सारा सामान यह वनवासी जंगल से ही एकत्रित करते हैं। ऊंचे-ऊंचे बांस लगाकर, पेड़ की छाल को हलका सा काटकर पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बनाई जाती है। घास भी साथ रखा जाता है जिसके धुंए से मधुमक्खियों को उनके छत्तों से दूर रखा जाता है। इसके अलावा मधुमक्खियों का छत्ता काटने के लिए एक बांस ब्लेड का उपयोग किया जाता है। धातु की किसी भी वस्तु को प्रयोग नहीं होता है। इन वनवासियों का मानना है कि धातु के इस्तेमाल से मधुमक्खियों वापस उस पेड़ पर नहीं आएंगी।

यह पूछने पर कि क्या मधुमक्खियां हमेशा एक ही पेड़ पर आती हैं? तो मुंजीलाल कहते हैं कि “अधिकतर मधुमक्खियां उसी पेड़ पर वापस आतीं हैं जहां वह एक बार अपना छत्ता बना चुकी हैं। मधुमक्खियों को इन पेड़ों से कुछ अलग ही रिश्ता होता है जो हम इंसान नहीं समझ सकते। इन मधुमक्खियों को शायद यह यकीन है कि यह पेड़ आनेवाले कई वर्षो तक इन मधुमक्खियों को इंतजार करेगा और उन्हें अपने साये में महफूज रखेगा।”

बेहतर पोषण और स्वस्थ रहने के लिए

वनवासी बच्चों को सुबह सुबह रोटी के साथ शहद देते है, उनका मानना है कि शहद याददाश्त बेहतर करने के लिये उत्तम है। शहद को छाछ के साथ लेने से भी याददाश्त बेहतर होती है। शहद यदि दूध के साथ मिलाकर लिया जाए तो हृदय, दिमाग और पेट के लिये फायदेमंद होता है। गर्मियों मे अक्सर नींबू पानी के साथ शहद मिलाकर पीने से ये शरीर को ऊर्जा और ठंडक प्रदान करता है।

वनवासियों का मानना है कि शहद का सेवन प्रतिदिन किया जाए तो ये शरीर को चुस्त दुरुस्त रखने में काफी मदद करता है साथ ही शारिरिक ताकत को बनाए रखकर थकान दूर करता है। शहद शुद्ध हो और एक एक बूंद दोनो आंखो मे डाली जाए तो आंखो की सफाई के साथ साथ रोशनी में फायदा होता है। बच्चों में दांत आने के वक्त मसूड़े पर शहद लगाने से आराम मिलता है। जंगली शहद को पानी में मिलाकर शौच जाने से पहले प्रतिदिन 3-4 महिनों तक लेने से वजन घटाने में फायदा मिलता है। पातालकोट में वनवासी कटे अंगों, घावों और शरीर के जल जाने पर शहद को लगाते है और इससे फायदा मिलता है।

गुणकारी शहद

आज कल बाजार में जिस तरह की प्रतिस्पर्धा है, आवश्यकता है कि आम जनों तक उत्तम और शुद्ध शहद मुहैया कराने के लिये वनवासी अंचलों में रहने वाले लोगों को साथ लेकर शहद का व्यवसायीकरण हो ताकि वनवासीयों को शहद के सही मूल्य मिलें और इन वनवासियों की माली हालत भी सुधरे। यथासंभव ये प्रयास किये जाए कि शहद उतारने के लिये किसी बाहरी एजेंसी को जंगल में ना जाना पड़े, जंगल में सिर्फ़ जंगल के मालिक यानी वनवासी रहें, और उनका अधिकार और नैसर्गिक जुड़ाव बना रहे, आखिर इसमें संपूर्ण मानव जाति का फायदा है।

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