कुपोषण से जंग लड़ने में कितनी मददगार साबित होंगी बायो-फोर्टिफाइड किस्में?

अब तक देश में चावल, मटर, बाजरा, मक्का, सोयाबीन, क्विनवा, अरहर, ज्वार की ऐसी 21 किस्में जारी की जा चुकी हैं। बायो-फोर्टिफाइड किस्मों में प्रोटीन, आयरन, जिंक और विटामिंस जैसे उच्च पौषक तत्व मौजूद होते हैं।

Dr. Satyendra Pal SinghDr. Satyendra Pal Singh   16 April 2022 9:20 AM GMT

कुपोषण से जंग लड़ने में कितनी मददगार साबित होंगी बायो-फोर्टिफाइड किस्में?

दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भी एक जंग कुपोषण के खिलाफ लड़ रहा है। भारत में आज भी कुपोषण की समस्या काफी गंभीर है। देश में महिला और बच्चों में कुपोषण का स्तर बहुत अधिक है। जिसके कारण देश में हर दूसरी महिला खून की कमी (एनीमिया) से पीड़ित है और हर तीसरा बच्चा कुपोषित है।

वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) में भारत काफी निचले पायदान पर है, जो कि एक चिंता का विषय है। कुपोषण के खिलाफ इस जंग से लड़ने के लिए भारत सरकार ने कमर कस ली है। देश के प्रधानमंत्री खुद इस जंग की अगुआयी कर रहे हैं। कुपोषण के खिलाफ जंग का हथियार बन रहीं हैं बायो-फोर्टिफाइड फसलों की किस्में। इतना ही नहीं बल्कि भारत सरकार चावल का फोर्टिफिकेशन और आम जनता में वितरण की केंद्र पोषित योजना को पूरे देश में लागू करने जा रही है। भारत सरकार के यह प्रयास निश्चित रूप से कुपोषण से लड़ने का एक उपयुक्त हथियार साबित होंगे।

भारत में तेजी से देश की जनता को पोषण सुरक्षा देने और कुपोषण को खत्म करने के लिए विभिन्न फसलों की बायो-फोर्टिफाइड किस्मों को विकसित करने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। देश में पिछले कुछ वर्षों तक कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अधिक उपज देने वाली फसलों की किस्मों पर ही ध्यान दिया जा रहा था। लेकिन अब कुछ वर्षों में वैज्ञानिकों के द्वारा पोषण, जलवायु अनुकूल, रोग और बीमारियों के प्रति सहनशील प्रजातियों को विकसित करने की दिशा में काम किया जा रहा है।

वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की जा रहीं जैव-फोर्टिफाइड फसलों की किस्में रोग, कीट, सूखा, लवणता, बाढ़, जल्दी विकसित होने और यांत्रिक कटाई के लिए सहिष्णु हैं। उच्च पोषण वाली जलवायु अनुकूल किस्में बिना पूरक आहार के किसानों की आय बढ़ाने में बहुत ही मद्दगार साबित होगीं। देश की पोषण सुरक्षा प्राप्त करने तथा कुपोषण को खत्म करने में बायो-फोर्टिफाइड किस्में बहुत महत्व रखती हैं।

उच्च जिंक वाली चावल की किस्में प्रोटीन, आयरन और जस्ता से भरपूर गेहूं की किस्में विकसित हो चुकी हैं। फोटो: दिवेंद्र सिंह

अब तक देश में चावल, मटर, बाजरा, मक्का, सोयाबीन, क्विनोआ, अरहर, ज्वार की ऐसी 21 किस्में जारी की जा चुकी हैं। बायो-फोर्टिफाइड किस्मों में प्रोटीन, आयरन, जिंक और विटामिंस जैसे उच्च पौषक तत्व मौजूद होते हैं। इस संबंध में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का कहना है कि कुपोषण को खत्म करने के लिए एक स्थायी और लागत प्रभावी समाधान के रूप में फसलों में बायो-फोर्टिफिेिशन शुरू किया गया है।

बायो-फोर्टिफाइड फसलों की किस्मों से भारत सरकार पोषण सुनिश्चित करने जा रही है। बायो-फोर्टिफाइड फसलें भारत की छिपी भूख से लड़ सकती हैं। भारत दुनियां में सबसे ज्यादा कुपोषित लोगों में से एक है। देश में अज्ञात भूख और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी एक प्रमुख वैश्विक समस्या है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2020 में विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर 8 फसलों की 17 बायो-फोर्टिफाइड किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया जा चुका है। इसके बाद अब तक विभिन्न फसलों की 21 से अधिक बायो-फोर्टिफाइड किस्में जारी की जा चुकी हैं और यह क्रम अनवरत जारी है।

उच्च जिंक वाली चावल की किस्में प्रोटीन, आयरन और जस्ता से भरपूर गेहूं की किस्में विकसित हो चुकी हैं। इससे पूर्व गोल्डन राइस विटामिन-ए और बाजरा की जस्ता एवं लोहा से भरपूर मोती किस्म विकसित की जा चुकी हैं। सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर मक्का, सरसों, मूंगफली, बाजरा, शरकंद आदि की किस्में द्वारा भारतीय थाली को पोषक थाली में बदलने की उम्मीद है। हांलाकि इस दिशा में अभी चुनौतियां कम नहीं हैं इन किस्मों की पर्याप्त बीज उपलब्धता किसानों के लिए अभी बहुत कम हैं। देश में अभी भी उच्च सूक्ष्म पोषक तत्वों वाली जैव-फोर्टिफाइड किस्मों का विकास पर्याप्त नहीं हैं।

कंरट डेवलपमेंट इन न्यूट्रिशन रिपोर्ट के अनुसार बीमारियों के कारण सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के चलते भारत को सकल घरेलू उत्पाद में सालाना 6 लाख करोड़ रूपये से अधिक का नुकसान होता है। वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई)-2020 में भारत 107 देशों की सूची में 94 वें स्थान पर था। देश में आज भी लगभग 14 प्रतिशत आबादी कुपोषित है। भारत में स्टंटिग दर 37.4 प्रतिशत और बच्चों के बीच वेस्टिंग दर 17.3 प्रतिशत सबसे अधिक है। वेस्टिग का अर्थ जिन बच्चों का वजन उनकी लम्बाई की तुलना में कम होता है, जो तीव्र अल्प पोषण को दर्शाता है। स्टंटिग का अर्थ जिन बच्चों की लम्बाई उनकी उम्र के हिसाब से कम होती है, जो कि पुराने कुपोषण को दर्शाता है।

भारत सरकार आम आदमी के कुपोषण का मर्ज मिटाने के लिए बायो-फोर्टिफाइड किस्मों के इतर फोर्टिफाइड चावल को लेकर आ रही है। गत् वर्ष स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले से इसका एलान किया गया था। सरकार इस चावल को राशन की दुकानों, मिड डे मील सहित वर्ष 2024 तक पूरे देश में विभिन्न सरकारी योजनाओं में वितरण करके कुपोषण रोखने की ओर अग्रसर है। जानते हैं कि फोर्टिफाइड चावल की महत्ता, इसके बनाने की प्रक्रिया और कुपोषण को दूर करने में कैसे होगा मददगार होगा।

ऐसे तैयार होगा फोर्टिफाइड चावल

भारतीय खाद्य सुरक्षा व मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के अनुसार सामांय चावल में पौषक तत्व मिलाने से चावल फोर्टिफाइड हो जाता है। चावल में यह सूक्ष्म पोषक तत्व लोगों की आहार जरूरतों को ध्यान में रखते हुए मिलाए जाते हैं।

ऐसे काम करेगी तकनीकी

अतिरिक्त पोषण युक्त चावल तैयार करने के लिए भारत में चावल फोर्टिफिकेशन के लिए एक्सट्रूजन (बहिर्वेधन) तकनीकी को अपनाया जा रहा है, जो कि सबसे बेहतर तकनीकी है। इसमें सबसे पहले सूखे चावल के आटे को सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण में डाला जाता है और फिर पानी मिश्रित कर देते हैं। इससे बने मिश्रण को मशीनों में गर्म कर चावल के आकार के दाने (एफआरके-फोर्टिफाइड राइस कर्नेल्स) तैयार किए जाते हैं। इसके बाद दानों को ठंडाकर सुखा लिया जाता है और उपयोग के लिए जूट के बोरों में पैक कर दिया जाता है।

कितना आएगा खर्च

भारत सरकार का अनुमान है कि आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी-12 युक्त फोर्टिफाइड चावल (एफआरके) तैयार करने का खर्च 60 पैसे प्रति किलो आएगा।

एक किग्रा फोर्टिफाइड चावल में पोषण

एक किलो फोर्टिफाइड चावल में आयरन (28 से 42.5 मिलीग्राम), फोलिक एसिड (75 से 125 माइक्रोग्राम), विटामिन बी-12 (0.75 से 1.25 माइक्रोग्राम) होता है। जिंक (10 से 15 मिलीग्राम), विटामिन-ए (500 से 750 माइक्रोग्राम), विटामिन बी-1 (1 से 1.5 मिलीग्राम), विटामिन बी-2 (1.25 से 1.75 मिलीग्राम), विटामिन बी-3 (12.5 से 20 मिलीग्राम) और विटामिन बी-6 (1.5 से 2.5 मिलीग्राम) मिलाकर फोर्टिफाइड किया जाता है।

पायलट प्रोजेक्ट की शुरूआत

वर्ष 2019-20 में चावल को फोर्टिफिकेशन और वितरण की केंद्र पोषित योजना तीन साल के लिए शुरू की गई थी। यह योजना 15 राज्यों के 15 जिलों में चलाई गई। महाराष्ट्र और गुजरात सहित 6 राज्यों में इस प्रोजक्ट के तहतः फोर्टिफाइड चावल (एफआरके) का वितरण शुरू कर दिया है। जिसमें जून 2021 तक 2.03 लााख टन फोर्टिफाइड चावल का वितरण भी किया जा चुका है। भारत सरकार वर्ष 2024 तक इस योजना को पूरे देश में लागू करने जा रही है।

फोर्टिफाइड चावल की पहचानः फोर्टिफाइड चावल (एफआरके) की पैकिंग जूट के बोरों में की जाएगी, जिस पर प्लस-एफ का निशान बना होगा, जिसे देखकर लोग इसकी आसानी से पहचान कर सकते हैं। साथ ही एफआरके की उपयोग अवधि पैकिंग से 12 महीने तक होगी।

कुछ प्रमुख बायो-फोर्टिफाइड फसलें

चावल- सीआर धान (प्रोटीन भरपूर प्रजाति)

गेहंू- डब्लूबी 02 (जिंक ओर आयरन से भरपूर प्रजाति)

मक्का- पूसा विवेक क्यूपीएम 9 उन्नत (प्रो विटामिन-ए, लायसिन और ट्राइप्रोटोफेन भरपूर हाइब्रिड प्रजाति)

बाजरा- एचएचबी 299 (आयरन और जिंक भरपूर हाइब्रिड प्रजाति)

सरसों- पूसा मसटर्ड 30 (अल्प यूरेसिक एसिड प्रजाति)

शकरकंद- भू सोना (बीटा केरोटीन भरपूर प्रजाति)

(डॉ सत्येंद्र पाल सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी, मध्य प्रदेश के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख हैं, यह उनके निजी विचार हैं।)

Also Read: पौष्टिक तत्वों से भरपूर गेहूं की इन खास किस्मों के बारे में जानते हैं?

biofortified #icar #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.