विश्व किडनी दिवसः किडनी के मरीजों के लिए वरदान हैं मक्के की बालियां

Deepak Acharya | Mar 09, 2017, 10:16 IST
corn earrings
मक्के की बालियां यानी कॉर्न सिल्क मक्के के ऊपरी छोर पर दानों के किनारे से निकली पतली चमकदार रेशमी बालियाँ होती है जो गुच्छों की तरह दिखाई देती है। अक्सर मक्के को छीलते समय इन बालियों को निकाल फेंक दिया जाता है। बहुत ही कम लोग हैं जो शायद इन बालियों के औषधीय महत्व के बारे में जानते हैं। मक्के जब बिल्कुल हरे और ताजे होते हैं तो आदिवासी कॉर्न सिल्क को निकालकर छाँव में सुखाते हैं, इनके सूखने में लगभग 1 से 2 सप्ताह तक का वक्त लग जाता है। सूखने के बाद इन्हें बारीक बारीक काटकर अच्छी तरह किसी कंटेनर में बंद करके रख देते हैं।

ये कॉर्न सिल्क मूत्रवर्धक प्रकृति के होते हैं लेकिन इन्हें ठीक तरह से बंद करके ना रखा जाए तो यह गुण समाप्त हो जाता है और यही बालियाँ विरेचक गुणों वाली हो जाती हैं। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार कॉर्न सिल्क का उपयोग सुखाने के बाद एक वर्ष के अंदर करना जरूरी होता है अन्यथा इसके सारे गुण खत्म हो जाते हैं। कॉर्न सिल्क में विटामिन B पैण्टोथेनिक एसिड, थियामिन, बीटा कैरोटीन, विटामिन C और K के अलावा प्रचुर मात्रा में पोटेशियम, लौह तत्व, कैल्सियम, मैग्नेशियम, फोस्फोरस और जिंक जैसे तत्व भी पाए जाते हैं। वैसे इसमे मुख्यरूप से मैजेमिक एसिड, रेसिन, सेपोनिन, सलिसिलिक एसिड, ओक्सेलिक एसिड, फ़्लेवेनोईड्स और कई अन्य महत्वपूर्ण रसायन पाए जाते हैं।

किडनी की समस्याओं के निवारण के लिए है उपयोगी

  • आदिवासी लोग कॉर्न सिल्क को कई तरह के रोगों के निवारण के लिए इस्तमाल करते हैं। इनके अनुसार करीब 3 मक्कों के सिल्क कॉर्न निकाल लिया जाए और करीब 3 कप पानी में उन्हें 5 मिनट तक उबाला जाए। ठंडा होने पर लगभग आधा कप मिश्रण दिन में 2 से 3 बार लिया जाए तो किडनी की समस्याओं के निवारण के लिए हितकर होता है। किडनी में दर्द, पथरी, संक्रमण आदि समस्याओं में यह लाभदायक होता है। खाद्य पदार्थों, पेयजल व अन्य पदार्थों के साथ कई बार कीटनाशक रसायन, कृत्रिम रंग रसायन आदि शरीर में पहुँच जाते हैं और किडनी में कचरे की तरह जमा होकर किडनी की क्रिया प्रणाली को बाधित कर, क्रिस्टल की तरह जमाव कर लेते हैं और इस तरह पथरी का निर्माण होता है। आदिवासियों के अनुसार कॉर्न सिल्क का बना हुआ काढ़ा पथरी निकाल फेंकने में मददगार होता है। कॉर्न सिल्क के साथ भुई आँवला या लहसून या नींबू का रस भी मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाए और सेवन किया जाए तो ज्यादा असरकारक होता है।
  • खून से गंदगी या अनावश्यक पदार्थों को हटाने का काम किडनी द्वारा होता है और यह कार्य यकृत, फेफड़ों, त्वचा और हृदय के आपसी सामंजस्य से सम्पन्न होता है। नकारात्मक विचार, दुखी होना, भय और चिड़चिड़ेपन के चलते शरीर के इन सभी अंगों की सक्रियता पर नकारात्मक असर होता है और इसका सीधा असर शरीर के बाहरी हिस्सों पर दिखाई देता है। आँखों के नीचे सूजन आना, आँखों के चारो तरफ कालापन (डार्क सर्कल) बनना और मुहाँसों का बनना इन्ही वजहों से होते हैं। कॉर्न सिल्क का काढ़ा इन समस्याओं के निवारण के अतिमहत्वपूर्ण होता है। कॉर्न सिल्क की वजह से किडनी और शरीर के अन्य अंगों से पानी बाहर निकालने में मदद मिलती है यानि यह मूत्रवर्धक होता है। शरीर से पानी के निष्कासन की प्रक्रिया में शरीर में पोटेशियम की कमी नहीं होती है क्योंकि सिल्क कॉर्न में भरपूर विटामिन K पाया जाता है। अक्सर बाजार में मिलने वाले मूत्रवर्धकों के उपयोग से शरीर में पोटेशियम की कमी आ जाती है।

उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए वरदान है मक्के की बालियां

  • उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए मक्के की बालियां वरदान की तरह हैं। प्रतिदिन काढ़ा पीने दिन में तीन बार पीने से रक्तचाप सामान्य होने लगता है, इस बात की पुष्ठी आधुनिक विज्ञान भी करता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस दौरान चाय, कॉफी और ठंडे पेय पदार्थों से तौबा करनी जरूरी है अन्यथा ये पदार्थ कॉर्न सिल्क के साथ मिलकर पेशाब होने की प्रक्रिया को और भी ज्यादा तेज कर देते हैं, जो नुकसानदेह साबित हो सकता है। यदि पेशाब में जलन की शिकायत हो या किसी तरह के सूक्ष्मजीवी संक्रमण की पुष्टी हो तो कॉर्न सिल्क के काढ़े में लहसून, हल्दी और भुई आंवला मिलाकर पीना उत्तम होता है।
  • प्रतिदिन कॉर्न सिल्क का काढ़ा पिया जाए तो यह वजन घटाने में भी मदद करता है और इसे कोई भी व्यक्ति ले सकता है, इसका सेवन पूर्णत: सुरक्षित होता है। वजन कम करने के लिए कॉर्न सिल्क के साथ अन्नानस का रस, अंगूर रस और शहद भी लिया जा सकता है। कॉर्न सिल्क को रात भर पानी में डुबोकर सुबह इस पानी को पिया जाए तो मधुमेह नियंत्रण के लिए कारगर होता है। भुई आँवले के साथ कॉर्न सिल्क का तैयार काढ़ा यकृत की समस्याओं के निदान के लिए बेहद उत्तम होता है।
आदिवासी मानते हैं कि हमारी तमाम स्वास्थ्य समस्याओं के निदान के लिए जो भी आवश्यक जड़ी-बूटियाँ होती हैं, हमारे निवास के 20 किमी दायरे में ही पाई जाती हैं, सवाल सिर्फ यह होता है कि इन जड़ी-बूटियों को पहचाने कौन? उम्मीद है पाठकों को लेख में दी गयी जानकारियाँ रोचक लगेगी और मैं यह भी उम्मीद करता हूँ कि इन नुस्खों को आप अपनाकर जरूर देखना चाहेंगे। जल्दी से गाँव से ताजे मक्के ले आईये और अपने स्वास्थय को उत्तम बनाने के लिए कमर कस लीजिए, देसी ज्ञान है, असर जरूर करेगा।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

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