दुष्प्रचार: पोलियो की तरह आयरन की गोलियों से डरती हैं ग्रामीण लड़कियां, बांझ बनने के डर से नहीं खाती गोलियां

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दुष्प्रचार: पोलियो की तरह आयरन की गोलियों से डरती हैं ग्रामीण लड़कियां, बांझ बनने के डर से नहीं खाती गोलियांजागरूकता के अभाव में ग्रामीण अभिभावक बच्चियों को नहीं खाने दे रहे हैं आयरन की गोलियां।

लखनऊ। लड़कियों में खून की कमी न हो, इसके लिए सरकार मुफ्त में आयरन की गोलियां बंटवाती है। लेकिन जागरूकता के अभाव में ग्रामीण अभिभावक बच्चियों को आयरन की गोलियां नहीं खाने दे रहे हैं।

रायबरेली अमावा ब्लाक पोस्ट बुढ्ढन की रहने वाली अमिता कुमारी कन्या विद्यालय में कक्षा आठ की छात्रा है। अमिता बताती है, “ गाँव में कुछ टिकिया बांटी तो जाती है। लेकिन मेरी दादी ने मुझे ये गोली खाने से मना कर दिया है।” अमिता की दादी से जब इस संबंध में बात की गई तो उन्होंने बताया, “यह सरकार की साजिश है जनसंख्या को कम करने की, दवा खिला खिलाकर ये लड़कियों को बांझ कर देंगे।” जब उनसे बताया गया कि इन गोलियों से खून बढ़ता है तो वो बोली, “हमारे भी बच्चे हुए है। हमने तो कभी नहीं खाई दवा। न कोई खून की कमी हुयी।”

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और उड़ीसा की 79 फीसदी महिलाओं में ख़ून की कमी है।

किशोरियों को आयरन की टैबलेट दी जाती है लेकिन वह उसे खाने से कतराती हैं। किशोरियों का आयरन की गोलियां न खाना एक बहुत बड़ा कारण है एनिमियां के ग्राफ बढ़ने का है जो सिर्फ इसलिए है क्योंकि गाँव वालों में जागरूकता की कमी है।
डा. हरिओम, जनरल मैनेजर, राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम, एनआरएचएम

प्रदेश की 68.4 फ़ीसदी महिलाएं ख़ून की कमी का शिकार हैं। अनुसूचित जाति की महिलाओं में यह दर 85 फ़ीसदी है। 50 फ़ीसदी महिलाओं में सात से नौ ग्राम और 20 फ़ीसदी महिलाओं में दो से छह ग्राम तक ही ख़ून पाया गया है।

चित्रकूट के मानिकपुर पंचायत के खरौंदा गाँव में रहने वाली रंजना ने बताया, “हमको गोली दी जाती है, जब हम उसे खाते हैं तो उल्टी हो जाती है और कमजोरी और चक्कर आते हैं, इस वजह से मैंने गोलियां खानी बंद कर दीं।” यहीं की मानिक टंकी निवासी रेशमा का का कहना है, “हमारे घर वाले मना करते हैं कि ये गोलियां मत खाया करो। इसे खाने से कमजोरी आ रही है। घर वाले कहते हैं पता नहीं क्या है, क्यों सरकार खिला रही लड़कियों को कमजोर करने वाली गोलियां।”

विकासपथ सेवा संस्थान चित्रकूट की कार्यकर्ता आरती सिंह बताती हैं, “लड़कियां आयरन की गोलियां बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करती हैं। हफ्ते में एक बार खानी होती है, बहुत सारी लड़कियां भूल जाती है तो बहुत सारी लड़कियां कहती है कि कमजोरी आती है। इन गोलियों को लेकर लोगो में बहुत सारे भ्रम है।”

हमारे पास एक महीने में 30 प्रतिशत केस एनीमिया पीड़ित गर्भवतियों के आते हैं जिनमें 10 प्रतिशत ऐसे होते हैं जो सीरियस एनीमिक होते है। इनको बचाना बड़ा मुश्किल होता है। इसमें भी 25 प्रतिशत महिलाएं गांवों की होती हैं।
डाक्टर रेखा सचान, वरिष्ठ स्त्री और प्रसूति रोग विशेष्ज्ञ, क्वीन मेरी केजीएमयू

एनएफएचएस-3 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार जिले के गांवों में रहने वाली महिलाएं खून की कमी से कमजोर हैं। सर्वे रिपोर्ट में यह चिंता जतायी गयी है कि एनेमिक महिलाओ की तादाद लगातार बढ़ रही है। वहीं स्कूली छात्र-छात्रएं में भी एनीमिया का प्रभाव बढ़ा है।

    

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