भारत में सर्वाइकल, ओवेरियन और प्रोस्टेट कैंसर क्यों बन रहे हैं बड़ी चुनौती
Gaon Connection | Dec 25, 2025, 16:41 IST
भारत में प्रजनन अंगों से जुड़े कैंसर एक गंभीर लेकिन अक्सर अनदेखा किया गया सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बनते जा रहे हैं। जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्रियों के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर सातवां कैंसर मामला प्रजनन अंगों से जुड़ा है, जिसमें महिलाओं पर बोझ असमान रूप से अधिक है।
भारत में कैंसर एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनता जा रहा है। खासतौर पर प्रजनन अंगों से जुड़े कैंसर (Reproductive Cancers), जैसे महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा (सर्वाइकल), अंडाशय और गर्भाशय का कैंसर, तथा पुरुषों में प्रोस्टेट, लिंग और वृषण (टेस्टिस) का कैंसर, तेजी से उभरती हुई समस्या हैं। हालिया शोध से पता चलता है कि ये कैंसर न केवल संख्या में बढ़ रहे हैं, बल्कि इनका बोझ महिलाओं पर असमान रूप से अधिक है और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में इसके पैटर्न भी काफी भिन्न हैं।
यह विस्तृत अध्ययन भारत की 37 जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्रियों (Population-Based Cancer Registries – PBCRs) के आंकड़ों पर आधारित है, जिसमें 2012 से 2017 के बीच दर्ज कैंसर मामलों का विश्लेषण किया गया। यह शोध भारत में पहली बार प्रजनन कैंसरों की तस्वीर को राष्ट्रीय स्तर पर समग्र रूप से सामने लाता है।कुल कैंसर मामलों में प्रजनन कैंसर की हिस्सेदारी
अध्ययन के अनुसार, 2012–2017 के बीच भारत में कुल 4,36,223 कैंसर मामले दर्ज किए गए। इनमें से लगभग 61,190 मामले (14%) प्रजनन कैंसर से जुड़े थे।महिलाओं मेंकुल कैंसर मामलों में से 21.3% प्रजनन कैंसर थे।पुरुषों मेंयह अनुपात अपेक्षाकृत कम, यानी 6.9% रहा।
यह आंकड़ा साफ़ संकेत देता है कि भारत में प्रजनन कैंसर का बोझ महिलाओं पर कहीं अधिक है।
महिलाओं में प्रजनन कैंसर के मामलों में सबसे बड़ा हिस्सा सर्वाइकल कैंसर (गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर) का है।
सर्वाइकल कैंसर – 48.8%
अंडाशय का कैंसर (ओवेरियन कैंसर) – 28.7%
गर्भाशय का कैंसर (कॉर्पस यूटेरी) – 15.5%
इन तीनों कैंसरों का कुल योगदान महिलाओं के प्रजनन कैंसर मामलों में 90% से अधिक है। चिंता की बात यह है कि सर्वाइकल कैंसर पूरी तरह से रोकथाम योग्य और शुरुआती चरण में इलाज योग्य होने के बावजूद, आज भी भारत में महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर बना हुआ है।
पुरुषों में प्रजनन कैंसर के मामलों में लगभग 80% हिस्सेदारी प्रोस्टेट कैंसर की है।
प्रोस्टेट कैंसर – 78–79%
लिंग का कैंसर (Penile Cancer) – लगभग 12%
वृषण कैंसर (Testicular Cancer) – लगभग 9%
हालांकि भारत में प्रोस्टेट कैंसर की दर अभी पश्चिमी देशों की तुलना में कम है, लेकिन शहरी क्षेत्रों और मेट्रो शहरों में इसके मामलों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है।उम्र के साथ बढ़ता खतरा
अध्ययन से स्पष्ट होता है कि प्रजनन कैंसर का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है।0–19 वर्ष की आयु में यह जोखिम बेहद कम है। 40–59 वर्ष की आयु में कैंसर का बोझ सबसे अधिक पाया गया। 60 वर्ष से ऊपर भी यह खतरा ऊंचा बना रहता है। 40–59 वर्ष का आयु वर्ग सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे सक्रिय माना जाता है। इस उम्र में कैंसर का निदान न केवल व्यक्ति को, बल्कि पूरे परिवार की आर्थिक और मानसिक स्थिति को गहराई से प्रभावित करता है।
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रजनन कैंसर का बोझ समान नहीं है। उत्तरी भारत और दक्षिणी भारत में प्रजनन कैंसर का खतरा सबसे अधिक पाया गया। पूर्वोत्तर भारत में पुरुषों में कुल जोखिम अपेक्षाकृत कम है, लेकिन महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की दर चिंताजनक है।
अध्ययन के अनुसार: भारत में हर 34 में से 1 महिला को जीवनकाल में किसी न किसी प्रजनन कैंसर का खतरा है। पुरुषों में यह जोखिम हर 68 में से 1 है।
सामाजिक और जीवनशैली से जुड़े कारण
शोध में यह भी बताया गया है कि प्रजनन कैंसर केवल जैविक कारणों से नहीं, बल्कि सामाजिक और जीवनशैली से जुड़े कारकों से भी गहराई से जुड़े हैं।
महिलाओं में प्रमुख जोखिम कारक: HPV संक्रमण, कम उम्र में विवाह और अधिक प्रसव, मोटापा, मधुमेह, सर्वाइकल स्क्रीनिंग की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच
पुरुषों में: बढ़ती उम्र, शहरीकरण, तंबाकू और गुटखा सेवन, जननांग स्वच्छता की कमी, स्वास्थ्य जांच के प्रति उदासीनता, स्क्रीनिंग और रोकथाम की बड़ी चुनौती
भारत में प्रजनन कैंसर से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती शुरुआती जांच (Screening) की बेहद कम दर है।
NFHS-5 के अनुसार, सिर्फ 2% से भी कम भारतीय महिलाएं सर्वाइकल कैंसर की जांच करवा पाती हैं, जबकि यूरोपीय देशों में यह आंकड़ा 40–70% तक है।
हालांकि 2023 में HPV वैक्सीन को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया गया, लेकिन इसका असर दिखने में अभी कई साल लगेंगे। तब तक स्क्रीनिंग और जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है।नीति और स्वास्थ्य प्रणाली के लिए क्या संदेश?
यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि प्रजनन कैंसर को अलग-अलग नहीं, बल्कि एक समूह के रूप में राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण नीति में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
मुख्य सुझाव: आयुष्मान भारत के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स में नियमित स्क्रीनिंग, महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए लिंग-संवेदनशील स्वास्थ्य अभियान, क्षेत्र-विशेष रणनीति, खासकर उत्तर और पूर्वोत्तर भारत के लिए, कैंसर के साथ-साथ मानसिक और सामाजिक समर्थन को भी इलाज का हिस्सा बनाना
भारत में प्रजनन कैंसर एक मूक महामारी की तरह उभर रहा है, जो महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है और सामाजिक, आर्थिक असमानताओं को और गहरा कर रहा है। यह केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता और सार्वजनिक नीति का भी प्रश्न है।
अगर समय रहते रोकथाम, स्क्रीनिंग और इलाज को मजबूत नहीं किया गया, तो आने वाले दशकों में यह बोझ और भयावह रूप ले सकता है। आज ज़रूरत है कि प्रजनन कैंसर को शर्म, चुप्पी और उपेक्षा के दायरे से निकालकर सार्वजनिक विमर्श और नीति के केंद्र में लाया जाए।
यह विस्तृत अध्ययन भारत की 37 जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्रियों (Population-Based Cancer Registries – PBCRs) के आंकड़ों पर आधारित है, जिसमें 2012 से 2017 के बीच दर्ज कैंसर मामलों का विश्लेषण किया गया। यह शोध भारत में पहली बार प्रजनन कैंसरों की तस्वीर को राष्ट्रीय स्तर पर समग्र रूप से सामने लाता है।कुल कैंसर मामलों में प्रजनन कैंसर की हिस्सेदारी
अध्ययन के अनुसार, 2012–2017 के बीच भारत में कुल 4,36,223 कैंसर मामले दर्ज किए गए। इनमें से लगभग 61,190 मामले (14%) प्रजनन कैंसर से जुड़े थे।महिलाओं मेंकुल कैंसर मामलों में से 21.3% प्रजनन कैंसर थे।पुरुषों मेंयह अनुपात अपेक्षाकृत कम, यानी 6.9% रहा।
यह आंकड़ा साफ़ संकेत देता है कि भारत में प्रजनन कैंसर का बोझ महिलाओं पर कहीं अधिक है।
महिलाओं में कौन-से कैंसर सबसे ज़्यादा?
सर्वाइकल कैंसर – 48.8%
अंडाशय का कैंसर (ओवेरियन कैंसर) – 28.7%
गर्भाशय का कैंसर (कॉर्पस यूटेरी) – 15.5%
इन तीनों कैंसरों का कुल योगदान महिलाओं के प्रजनन कैंसर मामलों में 90% से अधिक है। चिंता की बात यह है कि सर्वाइकल कैंसर पूरी तरह से रोकथाम योग्य और शुरुआती चरण में इलाज योग्य होने के बावजूद, आज भी भारत में महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर बना हुआ है।
पुरुषों में प्रजनन कैंसर की स्थिति
प्रोस्टेट कैंसर – 78–79%
लिंग का कैंसर (Penile Cancer) – लगभग 12%
वृषण कैंसर (Testicular Cancer) – लगभग 9%
हालांकि भारत में प्रोस्टेट कैंसर की दर अभी पश्चिमी देशों की तुलना में कम है, लेकिन शहरी क्षेत्रों और मेट्रो शहरों में इसके मामलों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है।उम्र के साथ बढ़ता खतरा
अध्ययन से स्पष्ट होता है कि प्रजनन कैंसर का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है।0–19 वर्ष की आयु में यह जोखिम बेहद कम है। 40–59 वर्ष की आयु में कैंसर का बोझ सबसे अधिक पाया गया। 60 वर्ष से ऊपर भी यह खतरा ऊंचा बना रहता है। 40–59 वर्ष का आयु वर्ग सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे सक्रिय माना जाता है। इस उम्र में कैंसर का निदान न केवल व्यक्ति को, बल्कि पूरे परिवार की आर्थिक और मानसिक स्थिति को गहराई से प्रभावित करता है।
क्षेत्रीय असमानताएँ: उत्तर और दक्षिण सबसे अधिक प्रभावित
अध्ययन के अनुसार: भारत में हर 34 में से 1 महिला को जीवनकाल में किसी न किसी प्रजनन कैंसर का खतरा है। पुरुषों में यह जोखिम हर 68 में से 1 है।
सामाजिक और जीवनशैली से जुड़े कारण
शोध में यह भी बताया गया है कि प्रजनन कैंसर केवल जैविक कारणों से नहीं, बल्कि सामाजिक और जीवनशैली से जुड़े कारकों से भी गहराई से जुड़े हैं।
महिलाओं में प्रमुख जोखिम कारक: HPV संक्रमण, कम उम्र में विवाह और अधिक प्रसव, मोटापा, मधुमेह, सर्वाइकल स्क्रीनिंग की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच
पुरुषों में: बढ़ती उम्र, शहरीकरण, तंबाकू और गुटखा सेवन, जननांग स्वच्छता की कमी, स्वास्थ्य जांच के प्रति उदासीनता, स्क्रीनिंग और रोकथाम की बड़ी चुनौती
भारत में प्रजनन कैंसर से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती शुरुआती जांच (Screening) की बेहद कम दर है।
NFHS-5 के अनुसार, सिर्फ 2% से भी कम भारतीय महिलाएं सर्वाइकल कैंसर की जांच करवा पाती हैं, जबकि यूरोपीय देशों में यह आंकड़ा 40–70% तक है।
हालांकि 2023 में HPV वैक्सीन को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया गया, लेकिन इसका असर दिखने में अभी कई साल लगेंगे। तब तक स्क्रीनिंग और जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है।नीति और स्वास्थ्य प्रणाली के लिए क्या संदेश?
यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि प्रजनन कैंसर को अलग-अलग नहीं, बल्कि एक समूह के रूप में राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण नीति में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
मुख्य सुझाव: आयुष्मान भारत के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स में नियमित स्क्रीनिंग, महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए लिंग-संवेदनशील स्वास्थ्य अभियान, क्षेत्र-विशेष रणनीति, खासकर उत्तर और पूर्वोत्तर भारत के लिए, कैंसर के साथ-साथ मानसिक और सामाजिक समर्थन को भी इलाज का हिस्सा बनाना
भारत में प्रजनन कैंसर एक मूक महामारी की तरह उभर रहा है, जो महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है और सामाजिक, आर्थिक असमानताओं को और गहरा कर रहा है। यह केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता और सार्वजनिक नीति का भी प्रश्न है।
अगर समय रहते रोकथाम, स्क्रीनिंग और इलाज को मजबूत नहीं किया गया, तो आने वाले दशकों में यह बोझ और भयावह रूप ले सकता है। आज ज़रूरत है कि प्रजनन कैंसर को शर्म, चुप्पी और उपेक्षा के दायरे से निकालकर सार्वजनिक विमर्श और नीति के केंद्र में लाया जाए।