हृदय से जुड़ी दिक्‍कतों के लिए पारंपरिक हर्बल ज्ञान

Deepak AcharyaDeepak Acharya   30 July 2019 10:10 AM GMT

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हृदय से जुड़ी दिक्‍कतों के लिए पारंपरिक हर्बल ज्ञान

ड्रग इंडस्ट्री के खोखले दावों, नकली दवाओं और घातक रासायनिक औषधियों के चलते आम जनों का रुझान हर्बल दवाओं की तरफ होना सामान्य सी बात है। अब हर्बल दवाओं के बाज़ार को एक नये आयाम से देखा जा रहा है, ये दवाएं सस्ती, सुरक्षित और जीवन दायनी भी साबित हो रही हैं।

हर्बल दवाओं के असर को देखते हुए सारी दुनिया पारंपरागत ज्ञान का लोहा मानने को मजबूर भी है। कई वनौषधियों को वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित कर बाजार में उपलब्ध अनेक घातक रासायनिक दवाओं की तुलना में बेहतर भी साबित किया जा चुका है।

आज एलोपैथिक दवाएं बनाने वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां भी कहीं ना कहीं हर्बल विज्ञान की तरफ आकर्षित हो रही हैं। इस लेख में हम लहसुन और अर्जुन के महत्व के बारे में जानेंगे और इन पौधों के औषधीय गुणों के संदर्भ में आदिवासी ज्ञान की जानकारियों को भी पाठको से रूबरू करवाएंगे और साथ ही रक्त चाप की समस्या और उसके निदान के लिए हर्बल नुस्खों का भी जिक्र किया जाएगा।

अर्जुन और लहसुन का ज़िक्र आना तय है...

हृदय और उससे संबंधित विकारों की जब भी बात की जाती है, अर्जुन और लहसुन का जिक्र आना तय है और आखिर क्यों ना हो? इन दोनो पौधों को दिल का दोस्त जो कहा जाता है। भारत के सुदूर ग्रामीण इलाकों की बात हो या आदिवासी अंचलों की, दिल से जुड़े तमाम विकारों के लिए जानकार लहसुन और अर्जुन की बात सबसे पहले करते हैं।

इस लेख के जरिये लहसुन के संदर्भ में जारी आधुनिक शोधों का जिक्र भी करना चाहता हूं ताकि पाठक यह जान पाएं की हिन्दुस्तानी पारंपरिक ज्ञान की पैठ अब सारी दुनिया मान रही है।

आधुनिक शोधों के अनुसार लहसुन दुनिया में मौत के सबसे बड़े कारण बनने वाले तीन रोगों के उपचार के लिए एक उत्तम, सस्ता और सुरक्षित उपाय है। लहसुन के औषधीय गुणों को अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं और मल्टीनेशनल फार्मा कंपनियों में काम कर रहे वैज्ञानिक भी नतमस्तक होकर मानने लगे हैं।

लहसुन की जरा सी सुगंध घंटों तक हमारी रसोई से लेकर कपड़ों और मुंह तक समायी रहती है और इसी लहसुन की खनक या उपयोगिता की पैरवी करने वाले कम से कम 4245 रिसर्च शोध पत्र भी हैं, जो दुनिया भर के तमाम अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स (शोध पत्रिकाओं) में प्रकाशित हो चुके हैं। इन तमाम शोध पत्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि लहसुन कम से कम 150 विभिन्न प्रकार के रोगों या लक्षणों जैसे कैंसर से लेकर डायबिटीज और हृदय विकारों और रेडियेशन के साइड इफेक्ट्स आदि के नियंत्रण में कारगर साबित हुआ है।

लहसुन के हैं प्रभावी गुण...

सच्चाई तो यह है कि यदि दुनिया भर में लहसुन के प्रभावी गुणों की जानकारी सटीकता से प्रचारित की जाए और लोगों को आम जीवन और खाद्य शैली में लहसुन को अपनाने की सलाह दी जाए तो निश्चित ही साल भर में होने वाली हजारों मौतों के आंकड़े को कम किया जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक आँकड़े के अनुसार गरीब देशों में ज्यादातर मौतें संक्रामक रोगों की वजह से होती हैं और दुर्भाग्य से ये मौतें वैक्सीन उपलब्ध ना हो पाने के कारण नहीं होती, अपितु संक्रामक भोज्य पदार्थों, स्वच्छता में कमी और आस-पास के पर्यावरण प्रदूषणों की वजह से होती है।

लहसुन का उपयोग सस्ती और सुलभ दवा के तौर पर गरीब देशों में किया जाए तो काफी हद तक होने वाली मौतों के सिलसिले को रोका जा सकेगा। लहसुन को प्राप्त करना आसान है, इसे उन्हीं इलाकों में पैदा किया जा सकता है जहाँ इसकी भरपूर आवश्यकता है और उन्हीं इलाकों में इसे वितरित भी किया जा सकता है जहाँ इसकी त्वरित जरूरत हो।

लहसुन के औषधीय गुणों पर किए जा रहे शोध...

लहसुन के औषधीय गुणों पर दुनिया भर के वैज्ञानिक शोध किए जा रहे हैं और तो और पूरी वैज्ञानिक जमात हृदय रोगों में लहसुन के कारगर होने पर ज्यादा काम कर रही है। तमाम आधुनिक शोधों की रपट के अनुसार, वे लोग जो ताजी लहसुन की कलियों का सेवन प्रतिदिन सुबह करते हैं, उनके एलडीएल कोलेस्ट्राल का स्तर कम हो जाता है जबकि एचडीएल कोलेस्ट्राल के स्तर को कोई नुकसान नहीं होता है।

इन्हीं शोध रिपोर्ट के अनुसार लहसुन लीवर द्वारा अत्यधिक मात्रा में एलडीएल कोलेस्ट्राल बनने को रोकता है। अनेक आधुनिक शोध ये भी दर्शाती हैं कि लहसुन उच्च रक्त चाप को सामान्य करने में मदद करता है और रक्त की प्लेटलेट्स की चिकनाई कम करके रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया को रोकता है यानि हॄदयाघात होने की संभावनाओं को कम करता है। प्लेटलेट्स की चिकनाई ज्यादा होने पर वे आपस में मिलकर थक्का बनाने का कार्य प्रारंभ कर देते हैं जो धमनियों में एकत्र होकर हृदयाघात की संभावनाओं को बढा देते हैं।

लहसुन के पारंपरिक हर्बल नुस्ख़े...

आदिवासी अंचलों में इसे वात और हृदय रोग के लिए अत्यंत उपयोगी माना जाता है। सूखे लहसुन की 15 कलियाँ, 1/2 लीटर दूध और 4 लीटर पानी को एक साथ उबालकर थोड़ा औटाया जाता है और इस पाक को वात और हृदय रोग से ग्रसित रोगियों को दिया जाता है, आराम मिल जाता है।

लहसुन की कच्ची कलियाँ चबाना भी हृदय रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद होता है। जिन्हें उच्च-रक्तचाप की शिकायत हो उन्हें प्रतिदिन सुबह लहसुन की कच्ची कली चबाना चाहिए, नमक और लहसुन का सीधा सेवन रक्त शुद्ध करता है। जिन्हें रक्त में प्लेटलेट्स की कमी होती है उन्हें भी नमक और लहसुन की समान मात्रा सेवन में लेनी चाहिए। लहसुन के उपयोगों और महत्वता की बात यदि घर-घर तक पहुँच जाए तो शायद शरीर को नुकसान देने वाली कई घातक दवाओं की छुट्टी हो जाएगी और कई अन्य रोगों के नियंत्रण के लिए आम जनों तक सस्ती औषधि के तौर पर लहसुन प्रचलित हो जाएगी।

अर्जुन के पेड़ को माना जाता है दिल का दोस्त...

लहसुन की तरह अर्जुन के पेड़ को भी दिल का दोस्त माना जाता है। अर्जुन का पेड़ आमतौर पर जंगलों में पाया जाता है और यह धारियों-युक्त फलों की वजह से आसानी से पहचान आता है, इसके फल कच्चेपन में हरे और पकने पर भूरे लाल रंग के होते हैं। अर्जुन का वानस्पतिक नाम टर्मिनेलिया अर्जुना है। औषधीय महत्व से इसकी छाल और फल का ज्यादा उपयोग होता है। अर्जुन की छाल और फलों को दिल के रोगियों के लिए वरदान के रूप में देखा जाता है।

आदिवासी इसे उच्च रक्तचाप और हृदय से जुड़ी समस्याओं के लिए अक्सर उपयोग में लाते हैं, चलिए जानते हैं हृदय की समस्याओं के निदान के लिए आदिवासी किस तरह से अर्जुन को उपयोग में लाते हैं।

अर्जुन छाल और जंगली प्याज के कंदो का चूर्ण समान मात्रा में तैयार कर प्रतिदिन आधा चम्मच दूध के साथ लेने से हृदय रोगों में हितकर होता है। हृदय रोगियों के लिए पुर्ननवा का पांचांग (समस्त पौधा) का रस और अर्जुन छाल की समान मात्रा बड़ी फाय़देमंद होती है।

अर्जुन की चाय काफी फायदेमंद...

आदिवासियों के अनुसार अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार लेने से दिल के मरीजों को काफी फायदा होता है। अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर पीने से हृदय और उच्च रक्तचाप की समस्याओं में तेजी से आराम मिलता है। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें इससे उच्च-रक्तचाप सामान्य हो जाता है। अर्जुन की चाय हॄदय विकारों से ग्रस्त रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होती है।

अर्जुन की छाल का चूर्ण (1 ग्राम) एक कप पानी में खौलाया जाए, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें तो फायदा होता है। हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।

कहा जाता है कि यदि हृदयघात जैसा महसूस होने पर अर्जुन का चूर्ण जुबान पर रख लिया जाए तो तेजी से फ़ायदा करता है और एक हद तक हृदयाघात के बुरे असर को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

हृदय की सुचारु गतिविधि और हमारे शरीर का रक्तचाप एक दूसरे पर आधारित होते हैं किसी वजह से उच्च रक्तचाप का होना या शरीर में रक्त परिवहन तंत्र में तेजी आना हृदय रोग को आमंत्रित करता है। उच्च रक्तचाप नियंत्रण के लिए आदिवासी हर्बल जानकार कई नुस्खों को बताते हैं और इस लेख के माध्यम से सबसे पहले जिक्र करता हूं दस चुनिंदा हर्बल नुस्खों के बारे में जिनका इस्तमाल कर काफी हद तक रक्तचाप को सामान्य किया जा सकता है या इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है।

ब्लड प्रेशर नियंत्रण...

मध्य प्रदेश के सुदूर वनवासी अंचलों में बसे आदिवासी आज भी प्राकृतिक जड़ी-बूटियों की मदद से तमाम रोगों का इलाज करते हैं। जहां एक ओर इन आदिवासियों के पास सामान्य रोगों के उपचार के लिए आस-पास प्रकृति में पाए जाने वाले पौधे हैं, वहीं कई जड़ी-बूटियों का इस्तमाल अनके प्रकार के भयावह रोगों के इलाज के लिए भी इन आदिवासियों द्वारा किया जाता है।

मध्य प्रदेश की पातालकोट घाटी और आस-पास के इलाकों में भुमका (स्थानीय पारंपरिक वैद्य) हर्बल जड़ी-बूटियों के जानकार हैं और सैकड़ों सालों से इस परंपरागत ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी अपनाए हुए हैं। पिछ्ले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से इन आदिवासियों की परंपरागत चिकित्सा पद्धति को संकलित करने के बाद और अपने अनुभवों के आधार पर दावे के साथ कह सकता हूँ कि इस ज्ञान में दम है।

- मेंथी की ताजी हरी पत्तियों की सब्जी जिसमें स्वादानुसार अदरक और लहसुन भी मिलाया गया हो, निम्न रक्तचाप में काफी कारगर साबित होती है। रोगी को अधिक से अधिक इस सब्जी का सेवन करना चाहिए, फायदा होता है।

- आदिवासी हर्बल जानकार जटामांसी की जड़ों का काढ़ा तैयार कर निम्न रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर) से ग्रस्त रोगियों को देने की सलाह देते हैं। इनके अनुसार प्रतिदिन दिन में 2 बार इस काढ़े का 3 मिली सेवन किया जाए। यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

- लेंडी पीपर के फल (2 ग्राम) और अश्वगंधा की जड़ों का चूर्ण (3 ग्राम) दिन में एक बार प्रात: गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से रक्तचाप नियंत्रित होता है, साधारणत: आदिवासी हर्बल जानकार निम्न रक्तचाप के रोगियों को इस फार्मूले के सेवन की सलाह देते हैं।

- उच्च रक्त चाप से ग्रस्त लोगों को आदिवासी हर्बल जानकार कटहल की सब्जी, पके कटहल के फल और कटहल की पत्तियों का रस पीने की सलाह देते हैं।

- पत्थरचूर की जड़ों का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर लेने से उच्च रक्तचाप में फायदा होता है, हर्बल जानकारों के अनुसार इस फार्मूले का सेवन लगातार 2 माह तक करने से तेजी से फायदा होता है।

- कमल के फूलों को गर्म पानी में डुबो दिया जाए और मसल लिया जाए, स्वादानुसार शक्कर मिलाकर उच्च रक्तचाप के रोगियों को प्रतिदिन सुबह दिया जाए तो आराम मिलता है।

- सर्पगंधा की जड़ों का चूर्ण (2 ग्राम) प्रतिदिन दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ मिलाकर सेवन करने से एक माह के भीतर उच्च रक्त चाप के रोगियों को असर दिखने लगता है।

- हींग का सेवन भी उच्च रक्तचाप के रोगियों के उत्तम माना जाता है, आदिवासियों के अनुसार यह खून को गाढ़ा करने में मददगार होता है और एक उद्दीपक की तरह कार्य करता है।

- लहसुन की कच्ची कलियाँ (2) प्रतिदिन सवेरे खाली पेट चबाने से रक्तचाप नियंत्रण होता है।

- आदिवासियों के अनुसार प्याज हाई ब्लड प्रेशर के लिए एक कारगर उपाय है, प्रतिदिन कच्चे प्याज का सेवन हितकर होता है। आधुनिक शोधों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्याज में प्याज में क्वेरसेटिन रसायन पाया जाता है जो कि एक एंटीऑक्सिडेंट फ़्लेवेनोल है जो कि हृदय रोगों के नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

उम्मीद है जानकारी पाठकों को पसंद आएगी।

  

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