पहाड़ी लोग आज भी सहेजे हैं जड़ीबूटियों की विरासत

Shrinkhala Pandey | Feb 21, 2018, 17:41 IST
herbal treatment
पहाड़ों के दुर्गम रास्तों पर अगर किसी मरीज को अस्पताल जाना हो तो वहां पहुंचना बहुत ही मुश्किल होता है। ऐसे में वहां के स्थानीय लोग जड़ीबूटी व औषधियों से ही अपना इलाज करते हैं। ये कहा जा सकता है कि पहाड़ी लोग आज भी आयुर्वेदिक ज्ञान को समेटे हुए हैं।

उत्तराखंड के पिथौराखंड जिले के रहने वाले पवन थापा ने बताया कि यहां हमारे यहां जब भी किसी को चोट लगती है तो ढाक के पत्तियों का लेप लगाते हैं उससे घावों के भरने में मदद करता है। ऐसे ही पुनर्नवा आंत की बीमारी और मुंह के छाले में लाभदायक होता है। पहाड़ों पर पाने वाले बिच्छू घास को लोग बुखार आने, शरीर में कमजोरी होने, जकड़न और मलेरिया जैसे बीमारी को दूर भागने में इस्तेमाल करते हैं। बिच्छू घास की पत्तियों पर छोटे-छोटे बालों जैसे कांटे होते हैं। बिच्छू घास के बीजों को पेट साफ करने वाली दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है।

आम तौर पर दो वर्ष की उम्र वाली बिच्छू घास को गढ़वाल में कंडाली व कुमाऊं में सिसूण के नाम से जाना जाता है। अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है। बिच्छू घास स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद है। इसमें ढेर सारे विटामिन और मिनरल्स हैं। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइट्रेड, एनर्जी, कोलेस्ट्रोल जीरो, विटामिन ए, सोडियम, कैल्शियम और आयरन हैं।

उत्तराखंड को औषधि प्रदेश, यानी हर्बल स्टेट भी कहा जाता है। यहां पाई जाने वाली औषधीय गुणों की वनस्पतियों के सही उत्पादन व मार्केटिंग के लिए साथ ही यहां के वन विभाग और डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गनाइजेशन) के अंतर्गत डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ बायो इनर्जी रिसर्च के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर हुआ था। इसके बाद उत्तराखंड सरकार ने वनस्पतियों पर शोध के लिए डीआरडीओ के साथ मिलकर कदम उठाया।

कीड़ा घास

कीड़े जैसी दिखने के कारण उत्तराखंड के लोग इसे कीड़ा घास कहते हैं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ एवं चमोली जिले के 3,500 मीटर की ऊंचाई के एल्पाइन बुग्यालों में यह घास पाई जाती है। यह औषधि हृदय, यकृत तथा गुर्दे संबंधी बीमारी में इस्तेमाल की जाती हैं। शरीर के जोड़ों में होने वाली सूजन व दर्द, अस्थमा, फेफड़े के रोगों में इसका प्रयोग लाभकारी होता है। इसका प्रयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

कासनी

इसका वानस्पतिक नाम चिकोरियम इंटाईबस है। यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर के निचले क्षेत्रों के अलावा पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं कर्नाटक में पाई जाती है। मधुमेह, किडनी संक्रमण, रक्तचाप, बवासीर, अस्थमा, लीवर संक्रमण के उपचार में इस पौधे के पत्ती, बीज व जड़ का इस्तेमाल किया जाता है।

पहाड़ों पर पाई जाने वाली कासनी के कई फायदे।

बज्रदंती

ये उच्च हिमालयी क्षेत्रों में दो से तीन हजार मीटर के मध्य पाई जाती है। उत्तराखंड में उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ व मुन्स्यारी में ये ज्यादा मात्रा में मिलती है। इस पौधे की जड़ों व पत्ती का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। जड़ का उपयोग मसूड़ों व दांतों के अलावा पेचिस, जलने के घाव भरने व मूत्र रोगों में होता है।

घाव भरने में काम आती है ब्रजदंती ।

Tags:
  • herbal treatment

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.