रहन-सहन ठीक रहे तो देर से आता बुढ़ापा
गाँव कनेक्शन | Jan 24, 2017, 14:36 IST
डाॅ. अनुरूद्ध वर्मा
लखनऊ। बुढ़ापे का ध्यान आते ही मन सिहर जाता है। दांत विहीन मुंह चेहरे पर झुर्रियां, कमजोर शरीर, जोड़ों में दर्द, यही है बुढ़ापे की निशानी। बुढ़ापा आना शरीर की एक निश्चित प्रक्रिया है, शरीर की कोशिकाओं के काम करने की एक सीमा होती है जब यह सीमा समाप्त हो जाती है तब बुढ़ापा घेरने लगता है। बुढ़ापा निश्चित है। फिर भी हम कुछ सावधानी अपनाकर अपने रहन-सहन आहार-विहार में परिवर्तन कर इसे समय से पहले आने से रोक सकते है। होम्योपैथिक दवाइयां बुढ़ापे को समय से पूर्व आने से रोक सकने में सक्षम तो हैं ही साथ ही बुढ़ापे की तकलीफ को कम करने एवं उनसे छुटकारा दिलाने में भी लाभदायक हैं।
जवानी का भरा-पूरा शरीर बुढ़ापे में कमजोर हो जाता है। शरीर में ताकत नहीं रहती। उठना-बैठना मुश्किल हो जाता है। इस समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि युवा अवस्था में संतुलित और पौष्टिक आहार लिया जाए। बुढ़ापे में शरीर की कमजोरी को दुरूस्त रखने के लिए अल्काल्फा क्यू एवं ऐबेना सेटाइवा क्यू का प्रयोग किया जा सकता है। बुढ़ापा कष्टदायक न हो। वह समय से पहले न आये इसके लिये होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग करें।
वृद्धावस्था की एक बड़ी समस्या है भूलने की आदत चिकित्सीय भाषा में इसे सेनाइल डिमेन्सिया कहा जाता है। एसिडफास, लाइकोपोडियम, वैराइटाकार्व एवं एनाकार्डियम आदि दवाइयां चिकित्सक की सलाह पर ली जाएं तो भूलने की समस्या पर काबू पाया जा सकता है। वृद्धावस्था में प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने की सम्भावना ज्यादा रहती है। इस रोग में पेशाब के समय दर्द आदि तकलीफें होती है। जब प्रोस्टेट ग्रंथि ज्यादा बढ़ जाती है तो एलोपैथिक चिकित्सक केवल आॅपरेशन का उपाय बताते है। जबकि होम्योपैथिक दवाईयों द्वारा इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। इस रोग में पेशाब में जलन, बूंद-बूंद कर पेशाब आना, पेशाब के समय दर्द आदि तकलीफें होती है। इस समस्या से निबटने में सेवल सेरूलाटा क्यू, पेराआरा ब्रावा क्यू, मर्कसाल आदि दवाइयां काफी लाभप्रद है।
वृद्धावस्था में आर्थराइटिस, गठिया एवं जोड़ों के रोग घेर लेेते हैं। इसमें रसटाक्स, लीडम पाल, रूटा जी, अर्निका, ब्रायोनिया जैसी दवाइयां रामबाण की तरह असर करती है। वृद्धावस्था में रक्त धमनियों में मोटेपन की समस्या ज्यादा रहती है। चिकित्सीय भाषा में इसे आर्टिरयो स्क्लोरोसिस कहा जाता है। काली म्यूर, ब्राइटा म्योर, आरम नेट्रम म्यूरेटिकम जैसी होम्योपैथिक दवाइयां इस समस्या से निबटने में काफी कारगर हैं।
वृद्धावस्था का सबसे पहले असर त्वचा पर पड़ना शुरू होता है। विशेषकर चेहरे की त्वचा परात्वचा ढीली हो जाती है। इससे चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। इससे बचने के लिए आवश्यक है कि शरीर को गर्म हवा, तेज धूप, गंदगी से बचाएं। व्यायाम करें खुली हवा में टहले। होम्योपैथी की सीपिया, सिकेल का साइलीसिया और सारसपरिला आदि दवाइयां बुढ़ापे की झुर्रियों से मुक्ति दिला सकती है।
भोजन में पौष्टिक तत्वों की कमी, क्षमता से अधिक मेहनत, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव, मानसिक तनाव आदि। यह सब ऐसी समस्याएं हैं जो आदमी को समय से पहले बूढ़ा और लाचार बना देती है।
वृद्धावस्था में मोतियाबिंद की समस्या आम है। काफी लोग इससे पीडि़त रहते हैं। यदि समय से उपचार न कराया जाए तो अंधापन भी हो सकता है। सिनरेरिया मेरिटिमा सक्कस डालने की दवाई एवं कैल्केरिया फ्लोर एवं कोनियम खाने की होम्योपैथिक दवाइयां मोतियाबिंद होने से रोकती है।
वृद्धावस्था में कुछ लोगों के कानों से सीटी की आवाजें आने लगती हैं। जिससे सुनने में काफी परेशानी होती है। इस समस्या के लिए थायोसिनमिनम होम्योपैथिक औषधि काफी फायदेमंद है। कम सुनाई पड़ने की समस्या में एम्ब्राग्रेसिया औषधि इस तकलीफ से छुटकारा दिलाने से सहायक होती है।
बुढ़ापे में अनेक लोगों की कमर झुक जाती है। शरीर की हड्डियों में भुरभुरापन आदि यह कैल्शियम की कमी से होता है। यदि जवानी में कैल्शियम युक्त आहार पर्याप्त मात्रा में लिए जाएं व साथ ही साथ कैल्फेरिया कास 6 ग्राम मात्रा में प्रयोग किया जाए तो इस समस्या तथा इससे होने वाली तकलीफों से बचा जा सकता है।
(लेखक होम्योपैथिक डॉक्टर हैं और सेंट्रल कॉन्सिल ऑफ होम्योपैथिक के मेंबर हैं।)
लखनऊ। बुढ़ापे का ध्यान आते ही मन सिहर जाता है। दांत विहीन मुंह चेहरे पर झुर्रियां, कमजोर शरीर, जोड़ों में दर्द, यही है बुढ़ापे की निशानी। बुढ़ापा आना शरीर की एक निश्चित प्रक्रिया है, शरीर की कोशिकाओं के काम करने की एक सीमा होती है जब यह सीमा समाप्त हो जाती है तब बुढ़ापा घेरने लगता है। बुढ़ापा निश्चित है। फिर भी हम कुछ सावधानी अपनाकर अपने रहन-सहन आहार-विहार में परिवर्तन कर इसे समय से पहले आने से रोक सकते है। होम्योपैथिक दवाइयां बुढ़ापे को समय से पूर्व आने से रोक सकने में सक्षम तो हैं ही साथ ही बुढ़ापे की तकलीफ को कम करने एवं उनसे छुटकारा दिलाने में भी लाभदायक हैं।
जवानी का भरा-पूरा शरीर बुढ़ापे में कमजोर हो जाता है। शरीर में ताकत नहीं रहती। उठना-बैठना मुश्किल हो जाता है। इस समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि युवा अवस्था में संतुलित और पौष्टिक आहार लिया जाए। बुढ़ापे में शरीर की कमजोरी को दुरूस्त रखने के लिए अल्काल्फा क्यू एवं ऐबेना सेटाइवा क्यू का प्रयोग किया जा सकता है। बुढ़ापा कष्टदायक न हो। वह समय से पहले न आये इसके लिये होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग करें।
इन बीमारियों में है कारगर होम्योपैथिक की ये दवाएं
वृद्धावस्था में आर्थराइटिस, गठिया एवं जोड़ों के रोग घेर लेेते हैं। इसमें रसटाक्स, लीडम पाल, रूटा जी, अर्निका, ब्रायोनिया जैसी दवाइयां रामबाण की तरह असर करती है। वृद्धावस्था में रक्त धमनियों में मोटेपन की समस्या ज्यादा रहती है। चिकित्सीय भाषा में इसे आर्टिरयो स्क्लोरोसिस कहा जाता है। काली म्यूर, ब्राइटा म्योर, आरम नेट्रम म्यूरेटिकम जैसी होम्योपैथिक दवाइयां इस समस्या से निबटने में काफी कारगर हैं।
बुढ़ापे का असर सबसे पहले त्वचा पर पड़ता है
अच्छे खान-पान की कमी समय से पहले बनाती है बूढ़ा
मोतियाबिंद रोग का हौम्योपैथी में अच्छा इलाज
सुनने की बीमारी भी करे दूर
खाने में शामिल करें कैल्शियम
(लेखक होम्योपैथिक डॉक्टर हैं और सेंट्रल कॉन्सिल ऑफ होम्योपैथिक के मेंबर हैं।)