सरकारी अस्पतालों में सर्वाइकल कैंसर के कुल मरीजों में 70 फीसदी ग्रामीण महिलाएं

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सरकारी अस्पतालों में सर्वाइकल कैंसर के कुल मरीजों में 70 फीसदी ग्रामीण महिलाएंप्रतीकात्मक फोटो (फोटो साभार: गूगल)

लखनऊ। हर साल एनएचएम के आंकड़ों के अनुसार, 25 प्रतिशत महिलाओं की मौत सर्वाइकल कैंसर से हो जाती है। कैंसर की चपेट में आने वाली 60 से 70 प्रतिशत महिलाएं ग्रामीण पृष्ठभूमि की होती हैं। सितम्बर 2015 से सितम्बर 2016 तक एक साल में 35 हज़ार महिलाओं में सवाईकल कैंसर की जांच हुई, जिसमें से आधी महिलाओं में कैंसर की पुष्टि हुयी है। इन महिलाओं में ज्यादातर गांव की है। ऐसे में बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए गांव में महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर से जागरूक करने के लिए पाँच लाख रूपये खर्च कर एक मुहिम चलायी गयी। इस मुहिम के चलने के बाद भी गांव में सवाईकल कैँसर से होने वाली मौत का आंकड़ा थमने का नाम नही ले रहा है और न ही इस बीमारी के प्रति ग्रामीण महिलाएं जागरूक हैं।

क्या कहते हैं डॉक्टर

डॉक्टर ऋचा, रेडियोलॉजी विभाग, केजीएमयू।

केजीएमयू में रेडियोथैरेपी विभाग की डॉक्टर ऋचा ने बताया कि ग्रामीण महिलाओं को सवाईकल कैंसर ज्यादा चपेट में ले रहा है। सरकारी अस्पतालों में महिलाओं के करीब 70 से 75 फीसदी सवाईकल कैंसर के केस ग्रामीण महिलाओं के नाम दर्ज हैं। वही जागरूकता अभियान के बावजूद 10 प्रतिशत महिलाएं ही शुरूआती कैंसर में अस्पताल पहुँच पाती हैं। डॉक्टर ऋचा बताती हैं कि महिलाएं आज भी अपने निजी अंगों की बीमारी के बारे में खुलकर बात नही करती हैं। 10 प्रतिशत महिलाएं जो शुरूआती दौर में अस्पताल आती भी हैं तो वह कहीं न कहीं से रेफर केस ही होता है। ज्यादातर महिलाएं गायनोक्लोजिस्ट से रेफर होकर ही आती हैं, जिनको कुछ परेशानी होती है। बाकी लोग अभी इतने जागरूक नही हैं, जो लोग खुद से इसकी जांच कराने आए। सर्वाइकल कैंसर का अगर शुरूआती दौर में पता चल गया तो उसको रेडियोथेरेपी द्वारा इलाज किया जा सकता है, लेकिन जागरूकता न होने की वजह से लोग तीसरे या चौथे स्टेज में ही आते हैं।

जब पता चला तो बहुत देर हो चुकी थी

माती गाँव की रहने वाली रेशमा ने बताया कि उसकी माँ को सवाईकल कैंसर हो गया था, लेकिन हम लोगों को इस बीमारी के बारे में कुछ पता नही था। माँ ने भी कभी शर्म के कारण नही बताया और जब पता चला तो बहुत देर हो चुकी थी। और आज माँ इस दुनिया में नही है। अगर पहले इस बीमारी के बारे में पता होता तो शायद आज माँ हमारे बीच होतीं। ऐसे कोई एक दो केस नहीं, बल्कि गांव में इस तरह की कई कहानियां भरी पड़ी हैं।

पहले पता चलता तो बचाई जा सकती थी जान

ऐसा ही रायबरेली अमावा गांव की रहने वाली अमावती ने बताया कि उसकी शादी के कुछ दिन बाद ही सास की मौत सवाईकल कैंसर से हो गयी थी। लेकिन किसी को मौत का कारण तक नही पता चल पाया। जब इलाज करने वाले डाक्टर के पास गए तो उसने बताया उनको सवाईकल कैंसर रिपोर्ट में आया था, लेकिन उन्होंने इस बीमारी के बारें में किसी से जिक्र तक नही किया। अगर शुरूआती दौर में वह घर वालों को बता देती तो उनको कीमोथेरेपी के इलाज द्वारा बचाया जा सकता था।

अभियान के बावजूद तेजी से बढ़ा ग्राफ

ग्रामीण महिलाओं में सवाईकल कैंसर की मौतों के ऐसे कई किस्से हैं, जिनकी मौत जागरूकता न होने के कारण हुईं। एनएचएम ने इससे निपटने के लिए 55 जिलों में पाँच लाख का बजट भी दिया, जिसमें न केवल ग्रामीण महिलाओं को इससे जागरूक किया जा सके, बल्कि महिलाओं का फ्री एचपीवी जांच की जा सके। इन सब के बावजूद ग्रामीण महिलाओं में सवाईकल कैंसर का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है।

नहीं करते खुलकर बात

डाक्टर ऋचा ने बताया कि ग्रामीणों में सवाईकल कैंसर का होना इसलिए भी है क्योंकि गाँव के लोग अभी भी इन चीजों के बारे में खुलकर बात नही करते। साफ-सफाई का न होना भी एक बड़ा कारण है। ऐसे में वे इस घातक बीमारी की चपेट में आ जाती हैं और उन्हें पता भी नही चलता और जब पता चलता है तो बहुत देर हो चुकी होती है।

एक यह भी है कारण

डाक्टर ऋचा ने बताया कि सुरक्षित यौन सम्बन्ध न रखना और एक से ज्यादा लोगों के साथ सम्बन्ध रखना भी इस बीमारी को बढ़ावा दे रहे हैं। केजीएमयू या सरकारी अस्पतालों में ग्रामीणों की संख्या का ज्यादा होने कारण एक यह भी है कि निजी अस्पतालों में इसका इलाज काफी महंगा होता है।

   

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