भारतीय वैज्ञानिकों ने लीवर सिरोसिस के इलाज में खोजी नई राह

Gaon Connection | Aug 02, 2025, 16:05 IST
भारतीय वैज्ञानिकों ने लीवर सिरोसिस के मरीजों के लिए एक नई चिकित्सा पद्धति विकसित की है। VEGF-C से युक्त नैनोकैरियर्स लसीका जल निकासी में सुधार करते हैं, जिससे एसाइटिस (पेट में तरल भराव) और प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्याओं को कम किया जा सकता है। यह शोध लीवर रोगों के इलाज में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
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भारत के दो प्रमुख संस्थानों- लीवर और पित्त विज्ञान संस्थान (ILBS), नई दिल्ली और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (NIPER), गुवाहाटी ने मिलकर एक महत्वपूर्ण खोज की है जो लीवर सिरोसिस जैसे जटिल रोग के इलाज में एक नई राह खोल सकती है।

लीवर सिरोसिस एक गंभीर बीमारी है जिसमें लीवर की सामान्य संरचना बिगड़ने लगती है और लिवर धीरे-धीरे अपनी कार्यक्षमता खो देता है। यह रोग सूजन, फाइब्रोसिस और अंततः डीकंपनसेटेड सिरोसिस की ओर बढ़ता है। इस अवस्था में पेट में अत्यधिक तरल भराव (ascites), रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, और जीवन की गुणवत्ता में भारी गिरावट देखी जाती है।

लसीका प्रणाली की भूमिका और VEGF-C क्या है?

लीवर सिरोसिस में लसीका (lymphatic) प्रणाली का कमजोर होना एक बड़ी समस्या है। लसीका नेटवर्क शरीर के ऊतकों से अतिरिक्त तरल निकालने, प्रतिरक्षा कोशिकाओं को पहुंचाने और सूजन को नियंत्रित करने में मदद करता है। लेकिन सिरोसिस में यह प्रणाली अवरुद्ध या निष्क्रिय हो जाती है।

VEGF-C एक प्राकृतिक प्रोटीन है जो VEGFR-3 नामक रिसेप्टर से जुड़कर लसीका वाहिकाओं के निर्माण और क्रियाशीलता को बढ़ावा देता है। हालांकि, इसे सीधे शरीर में देने पर यह जल्दी नष्ट हो जाता है, जिससे इसका प्रभाव सीमित रहता है।

नैनोकैरियर्स के ज़रिए टार्गेटेड डिलीवरी

NIPER गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने VEGF-C को लिपिड-बेस्ड रिवर्स मिसेल नैनोकैरियर्स में संलग्न किया, जिससे यह सीधे पेट में मौजूद लसीका वाहिकाओं तक पहुंच सका। ये नैनोकण विशेष रूप से VEGFR-3 रिसेप्टर वाले क्षेत्र को लक्षित करते हैं, जिससे उपचार प्रभावी और केंद्रित हो जाता है।

ILBS की टीम ने इस तकनीक को उन्नत सिरोसिस वाले चूहों पर आजमाया। शोध में देखा गया कि VEGF-C नैनोथेरेपी से लसीका जल निकासी में उल्लेखनीय सुधार हुआ, पेट में जमा तरल (एसाइटिस) कम हुआ, और प्रतिरक्षा प्रणाली पहले से बेहतर काम करने लगी।

प्रमुख निष्कर्ष:

  • लसीका वाहिकाओं की संख्या और कार्य में वृद्धि
  • पेट में जल भराव (Ascites) में उल्लेखनीय कमी
  • पोर्टल वेन प्रेशर (जिगर में रक्त का दबाव) में गिरावट
  • CD8+ T-सेल (साइटोटॉक्सिक T-सेल) की सक्रियता बढ़ी
  • बैक्टीरियल संक्रमण का जोखिम घटा
इस शोध के अनुसार, VEGF-C नैनोथेरेपी से न सिर्फ लीवर की सूजन और द्रव जमाव को रोका जा सकता है, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत किया जा सकता है। यह लीवर रोगों के इलाज में लसीका नेटवर्क को टारगेट करने वाला पहला चिकित्सीय तरीका है।

आगे की दिशा:

यह अध्ययन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित नैनोमिशन के तहत किया गया था और प्रतिष्ठित JHEP Reports पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

अब इस तकनीक को बड़े जानवरों पर और बाद में मानव क्लिनिकल परीक्षणों पर आजमाने की योजना है, जिससे इसकी सुरक्षा, प्रभावशीलता और सही खुराक का निर्धारण किया जा सके।

क्यों है यह खोज महत्वपूर्ण?

वर्तमान में डीकंपनसेटेड सिरोसिस के मरीजों के लिए बहुत ही सीमित उपचार विकल्प उपलब्ध हैं—जैसे लीवर ट्रांसप्लांट। VEGF-C नैनोथेरेपी लीवर सिरोसिस का गैर-आक्रामक, लक्ष्यित और टिकाऊ समाधान बन सकती है।

यह तकनीक ना केवल लीवर रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है, बल्कि लीवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता को भी कम कर सकती है, जिससे स्वास्थ्य व्यवस्था पर बोझ भी घटेगा।

भारत में लीवर सिरोसिस: एक बढ़ती स्वास्थ्य चुनौती

लीवर सिरोसिस भारत में गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल 10 लाख से अधिक नए लीवर रोगियों की पहचान होती है, जिनमें बड़ी संख्या में सिरोसिस के मरीज होते हैं। भारत में लीवर सिरोसिस मृत्यु का 12वां सबसे बड़ा कारण है और यह कुल मृत्यु दर में 2% तक का योगदान देता है। खासकर अत्यधिक शराब सेवन, हेपेटाइटिस बी और सी, और गंदा भोजन व दवाइयों का दुरुपयोग इसके प्रमुख कारण हैं।

ग्रामीण और कमज़ोर तबकों में लक्षणों की अनदेखी और देर से इलाज शुरू होने के कारण यह बीमारी और जटिल हो जाती है। ऐसे में VEGF-C आधारित नई नैनोथेरेपी इन रोगियों के लिए जीवनरक्षक विकल्प बन सकती है, जिससे ट्रांसप्लांट की ज़रूरत को टाला जा सकता है और इलाज अधिक सुलभ हो सकता है।

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