औषधीय पेड़ हैं धर्म और आस्था के प्रतीक बरगद और पीपल

Deepak Acharya | Jan 21, 2017, 17:10 IST
Patalkot
धर्म और आस्था के प्रतीक बरगद और पीपल सारे हिन्दुस्तान में पूजनीय वृक्ष माने जाते हैं। इनके औषधीय गुणों की पैरवी आधुनिक विज्ञान भी खूब करता है। इस सप्ताह मैं इन दोनों वृक्षों के गुणों की जानकारी दे रहा हूं। इन लेख में सुझाए नुस्खों को सुदूर आदिवासी अंचलों में जानकारों द्वारा बतौर पारंपरिक फार्मूलों में कई तरह से इस्तेमाल में लाया जाता है।

यहां सुझाए नुस्खों को सैकड़ों वर्षों से परंपरागत ज्ञान की तरह अपनाया जाता रहा है लेकिन कई नुस्खें ऐसे भी हैं जिनकी असर को लेकर वैज्ञानिक पुष्टी नहीं की गई है। इस लेख का उद्देश्य जानकारी परोसना है, यहां बताए नुस्खों को जानकारों की निगरानी में ही आजमाया जाए। आइए जानते हैं बरगद और पीपल से जुड़ी पारंपरिक जानकारियों को।

पीपल

भगवान श्री कृष्ण ने गीता उपदेश में इस वृक्ष की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि पीपल पेड़ों में उत्तम और दिव्य गुणों से सम्पन्न है और मैं स्वयं पीपल हूं। पीपल के औषधीय गुणों का बखान आयुर्वेद में भी किया गया है। पीपल का वानस्पतिक नाम फ़ाइकस रिलिजियोसा है। आदिवासियों के बीच पीपल अपने औषधीय गुणों की वजह से बेहद प्रचलित है।

  • पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि द्रोणपुष्पी की पत्तियों और पीपल की पत्तियों का एक-एक चम्मच रस सुबह-शाम लेने से संधिवात में लाभ मिलता है।
  • इसके सूखे फल मूत्र संबंधित रोगों के निवारण के लिए काफी अच्छे होते है। प्रतिदिन 2 बार कम से कम 2 फलों को चबाकर पानी पीने से मूत्र संबंधित विकारों में आराम मिलता है।
  • आदिवासी हल्कों में इसकी कोमल जड़ों को उस महिला को दिया जाता है जो संतान प्राप्ति चाहती हैं। आदिवासियों के अनुसार पीपल की ताजा कोमल जड़ों के सेवन से महिलाओं में गर्भ धारण करने की क्षमता का विकास होता है।
  • पातालकोट जैसे आदिवासी बाहुल्य भागों में तो जिन महिलाओं को संतान प्राप्ति नहीं हो रही हो, उन्हे पीपल वृक्ष पर लगे वान्दा (रसना) पौधे को दूध में उबालकर दिया जाता है।
  • आदिवासियों का मानना है कि पीपल वृक्ष का दूध गर्भाशय की गरमी को दूर करता है जिससे महिला के गर्भवती होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • पीपल के फल, छाल, जड़ों और नई कलियों को एकत्र कर दूध में पकाया जाता है और फिर इसमें घी, शक्कर और शहद मिलाया जाता है, आदिवासियों के अनुसार यह मिश्रण पुरुषों में नपुंसकता दूर करता है।
  • मुंह में छाले हो जाने की दशा में यदि पीपल की छाल और पत्तियों के चूर्ण से कुल्ला किया जाए तो आराम मिलता है। दिन में तीन से चार बार ऐसा किए जाने से छालों में तेजी से आराम मिलता है।
  • कुष्ठ रोग में पीपल के पत्तों को कुचलकर रोगग्रस्त स्थान पर लगाया जाता है तथा पत्तों का रस तैयार कर पिलाया जाता है।


बरगद

बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड़ कभी नष्ट नहीं होता है। बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। बरगद का वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है। बरगद के वृक्ष की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्वर माना जाता है।

  • पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि तीन महीने तक अगर बरगद के दूध (लेटेक्स) की दो बूंद बताशे में डालकर खाया जाए तो पौरुष बढ़ता है और शारीरिक ताकत में बढ़ावा होता है। बरगद की हवाई जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं, इसके इसी गुण के कारण वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर भगाया जा सकता है। हवा में तैरती ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचला जाए और रस को चेहरे पर लेपित किया जाए तो चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।
  • लगभग 10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम कालीमिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सड़ी बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफेदी प्राप्त करते हैं। प्रतिदिन कम से कम दो बार इस चूर्ण से मंजन करना चाहिए।
  • पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर लेप बनाया जाए और रोज सोते समय स्तनों पर मालिश करने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।
  • पैरों की फटी पड़ी एड़ियों पर बरगद का दूध लगाया जाए तो कुछ ही दिनों फटी एडि़यां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड़ जाते हैं। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार प्रतिदिन रात में सोने से पहले बरगद के दूध को एड़ियों पर लगाना चाहिए।
  • बरगद के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेपित किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। कई इलाकों में आदिवासी ज्यादा गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोड़ा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देते है और सूती कपड़े से घाव पर पट्टी लगा दी जाती है। माना जाता है कि दो दिन बाद पट्टी हटाने पर घाव काफी हद तक सूख चुका होता है।


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