सर्दियों में संजीवनी है तुलसी, पढ़िए सर्दी-जुखाम और पथरी समेत किन-किन बीमारियों में कारगर है तुलसी

Deepak AcharyaDeepak Acharya   5 Nov 2018 4:30 AM GMT

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सर्दियों में संजीवनी है तुलसी, पढ़िए सर्दी-जुखाम और पथरी समेत किन-किन बीमारियों में कारगर है तुलसीतुलसी में छिपे हैं सेहत के गुणकारी रसायन। फोटो साभार गूगल

भारत के हर हिस्से में तुलसी के पौधे को प्रचुरता से उगता हुआ देखा जा सकता है। इसका पौधा बड़ा वृक्ष नहीं बनता, केवल ड़ेढ़ या दो फीट तक बढ़ता है। तुलसी को हिन्दु संस्कृति में अतिपूजनीय पौधा माना गया है। माता तुल्य तुलसी को आंगन में लगा देने मात्र से अनेक रोग घर में प्रवेश नहीं करते हैं और यह हवा को भी शुद्ध बनाने का कार्य करता है। ग्रामीण इलाकों में आज घर के आंगन में तुलसी का एक पौधा लगाने की परंपरा है। तुलसी का पौधा ना सिर्फ वायु को शुद्ध करता है, बल्कि हवा में विद्यमान अनेक सूक्ष्मजीवों की भी खबर ले लेता है। तुलसी का वानस्पतिक नाम ओसीमम सैन्कटम है। आदिवासी भी तुलसी को अनेक हर्बल नुस्खों में अपनाते हैं। चलिए इस कॉलम में जिक्र करेंगे तुलसी से जुड़े आदिवासियों के ऐसे चुनिंदा हर्बल नुस्खों का, जिनके बारे में शायद ही आपने कभी सुना हो..

आदिवासी अंचलों मे पानी की शुध्दता के लिए तुलसी के पत्ते जल पात्र में डाल दिए जाते हैं और कम से कम एक सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा जाता है। कपड़े से पानी को छान लिया जाता है और फ़िर यह पीने योग्य माना जाता है।

औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है जिससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार, तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है।

किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल आती है।

दिल की बीमारी में यह वरदान साबित होती है क्योंकि यह खून में कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करती है। जिन्हें हॄदयाघात हुआ हो, उन्हें तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए। तुलसी और हल्दी के पानी का सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्राल की मात्रा नियंत्रित रहती है और इसे कोई भी स्वस्थ व्यक्ति सेवन में ला सकता है।


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इसकी पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नींबू का रस मिलायें और रात को चेहरे पर लगाये तो झाईयां नहीं रहती, फुंसियां ठीक होती है और चेहरे की रंगत में निखार आता है।

फ्लू रोग तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से ठीक होता है। डाँग- गुजरात में आदिवासी हर्बल जानकार फ्लु के दौरान बुखार से ग्रस्त रोगी को तुलसी और सेंधा नमक लेने की सलाह देते हैं।

पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार के अनुसार, तुलसी को थकान मिटाने वाली एक औषधि मानते हैं। इनके अनुसार अत्यधिक थकान होने पर तुलसी के पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है।

इसके नियमित सेवन से "क्रोनिक-माइग्रेन" के निवारण में मदद मिलती है। प्रतिदिन दिन में 4-5 बार तुलसी से 6-8 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माईग्रेन की समस्या में आराम मिलने लगता है।

गर्मियों में घमौरियाँ के इलाज के लिए डाँग- गुजरात के आदिवासी संतरे के छिलकों को छाँव में सुखाकर पाउडर बना लेते है और इसमें थोड़ा तुलसी का पानी और गुलाबजल मिलाकर शरीर पर लगाते है, ऐसा करने से तुरंत आराम मिलता है।

अस्थमा का दौरा पड़ने पर गर्म पानी में तुलसी के 5 से 10 पत्ते मिलाएं और सेवन करें, यह सांस लेना आसान करता है। इसी प्रकार तुलसी का रस, अदरक रस और शहद का समान मिश्रण प्रतिदिन एक चम्मच लेना अस्थमा पीड़ित लोगों के लिए अच्छा होता है।

अस्थमा और ब्रोंकाइटिस को नियंत्रित करने में तुलसी और करेले का रस भी काफी मदद करता है। तुलसी की करीब 15 पत्तियों लेकर एक सामान्य आकार के करेले के साथ कुचल लें और इसे अस्थमा से ग्रसित व्यक्ति को प्रतिदिन रात को सोने से पहले सेवन कराया जाए, शीघ्र ही फायदा होता है।

     

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