क्या आप भी मोटे अनाजों को छोड़कर मैदे का इस्तेमाल करने लगे हैं?

गाँव कनेक्शन | Jun 07, 2022, 10:48 IST
क्या आपने भी अपने खान-पान में बदलाव किए हैं, आपने भी रागी, कोदो जैसे मोटे अनाजों को छोड़कर मैदे का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, सुनिए विशेषज्ञ क्या कहते हैं।
The Slow Movement
एक समय था जब रागी, कोदो जैसे मोटे अनाज ग्रामीण भारत में हर किसी की खाने की थाली का एक जरूरी हिस्सा हुआ करते थे। खास लाइव शो में द स्लो मूवमेंट व गाँव कनेक्शन के फाउंडर नीलेश मिसरा ने कृषि विशेषज्ञ डॉ दया श्रीवास्तव से मोटे अनाज, सरसों के तेल जैसे खाद्य उत्पादों पर चर्चा की, कि कितने फायदेमंद हैं।

कृषि विशेषज्ञ डॉ दया श्रीवास्तव कहते हैं, "मोटे अनाज पहले हम खाते थे, मोटे अनाज खा में चोकर और फाइबर होता था हमारे पेट को मजबूत करता था, जिससे हमारा इम्यून सिस्टम और ब्लड सर्कुलेशन सिस्टम अच्छा होता था।"

पुराने पंरपरागत तौर तरीको के बारे में वो बताते हैं, "मैं यह कह रहा था कि पुराने ट्रेडिशन को सोचिए। कहने का यह मतलब नहीं है कि पुराने ट्रेडिशन को शत प्रतिशत लें, थोड़ा सा ट्रेडीशन को लें, थोड़ा सा एडवांस को लें मिला जुला करके। जो फाइबर खाना आपने बंद कर दिया है फाइबर आप खाइए। क्योंकि फाइबर आप नहीं खाएंगे तो आपका पेट में मल्टीपल प्रॉब्लम आएंगी। अब लोग सांवा कोदो छोड़कर मैदा खाने लगे हैं।"

भारत दुनिया का सबसे बड़ा मिलेट (मोटे अनाज) उत्पादक देश है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, झारखण्ड, तमिलनाडु, और तेलगांना आदि प्रमुख मोटे अनाज उत्पादक राज्य हैं।

देश में पैदा की जाने वाली मुख्य मिलेट फसलों में ज्वार, बाजरा और रागी का स्थान आता है। छोटी मिलेट फसलों में कोदों, कुटकी, सांवा आदि की खेती की जाती है। जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से भी ये फसलें अत्यंत उपयोगी हैं जो कि सूखा सहनशील, अधिक तापमान, कम पानी की दशा में और कम उपजाऊ जमीन में भी आसानी से पैदा कर इनसे अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। इसलिए इनको भविष्य की फसलें और सुपर फूड तक कहा जा रहा है।
"एक स्वास्थ्य इंसान के लिए कहा जाता है कि अगर 13 से 16 प्रतिशत हीमोग्लोबिन है तो आपको कोई टेंशन नहीं है प्रॉपर ब्लड सप्लाई चल रही है। लेकिन 13 के नीचे अगर जा रहा है तो आप समझिए कि प्रॉपर ब्लड सर्कुलेशन नहीं है। इसी तरह ही खेतों में जो ऑर्गेनिक कार्बन की बात है तो ऑर्गेनिक कार्बन का लेवल ही घटता जा रहा है। 0.5 से 0.75 के आस पास कार्बन लेवल को हम नार्मल कहते हैं। लेकिन आज खेतों की स्थिति 0.1 से 0.2 हो गई है। जब हमारे खेत स्वस्थ नहीं रहेंगे तो हमारे अनाज कैसे स्वस्थ रहेंगे और हम कैसे स्वस्थ रहेंगे, "डॉ दया ने आगे कहा।

एक समय लोग गुड़ ही खाते थे, लेकिन अब उनकी रसोई में चीनी ही मिलेगी। डॉ दया कहते हैं, "जो काला वाला गुड़ खाते थे अब चीनी पर आ गए, जो हम सरसों का तेल खाते थे उसकी जगह रिफाइंड ने ले ली, जो हम सेंधा नमक खाया करते थे उसकी जगह आयोडीन ने ले ली है और जो हम पानी नार्मल पीते थे वह मिनरल वाटर में बदल गया।"

Tags:
  • The Slow Movement
  • slow bazaar
  • NeeleshMisra
  • millet
  • story
  • video

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.