राजस्थान: स्वाइन फ्लू से हफ्तेभर में 10 की मौत, भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें

Deepanshu Mishra | Jan 07, 2018, 16:34 IST
Health
लखनऊ। राजस्थान में स्वाइन फ्लू का खौफ बढ़ता जा रहा है। हफ्तेभर में 10 लोगों की मौत हुई है, जबकि 100 से ज्यादा मामले सामने आए हैं। मिशिगन वायरस से फैलने वाले एच1 एन1 के चलते राजस्थान के अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। इनमें सबसे ज्यादा बुजुर्ग और बच्चे हैं। हालात को देखते हुए राजस्थान सरकार ने 3 जनवरी अलर्ट जारी किया है। दिसंबर 2017 में यहां 400 लोगों में स्वाइन फ्लू के लक्षण मिले थे।

स्वास्थ्य विभाग के अनुसार जनवरी 2017 से राज्य में 241 स्वाइन फ्लू की मौत हुई है। इसके अलावा, स्वाइन फ्लू के वायरस से प्रभावित मरीजों के लिए 3033 अस्पतालों में स्वाइन फ्लू स्क्रीनिंग केंद्र,1580 अलगाव बेड, 214 आईसीयू बेड और 198 वेंटीलेटर हैं।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने बताया, "वायरस में बदलाव आया है अधिक लोगों को संक्रमित करने की संभावना है, जिन्होंने इसे अभी तक प्रतिरक्षा नहीं विकसित किया है। वायरस छोटी बूंद संक्रमण के माध्यम से फैलता है और एक व्यक्ति के लिए 3 से 6 फीट की दूरी को कवर कर सकता है।"

आम बोलचाल में स्वाइन फ्लू के नाम से जाना जाने वाला इन्फ्लुएन्जा एक विशेष प्रकार के वायरस (विषाणु) इन्फ्लुएन्जा एच1एन1 के कारण फैल रहा है। यह विषाणु सुअर में पाए जाने वाले कई प्रकार के विषाणुओं में से एक है। मार्च 2009 में दक्षिण अमेरिका में इस नए वायरस की खोज हुई फिलहाल जीनीय परिवर्तन होने के कारण यह विषाणु बेहद घातक और संक्रामक बन गया था।

2009 की स्वाइन फ्लू की बीमारी का कारण इन्फ्लूएंजा ‘ए’ टाइप के एक नए विषाणु एच1एन1 के कारण है इस विषाणु के अन्दर सुअर मनुष्यों और पक्षियों को संक्रमित करने वाले फ्लू विषाणु का मिला-जुला जीन पदार्थ है। जीन परिवर्तन से बनी यह किस्म ही मैक्सिको, अमेरिका और पूरे विश्व में स्वाइन फ्लू के प्रसार का कारण बनी।

कुछ ही महीनों में दुनिया भर में हजारों व्यक्तियों के संक्रमित होने के बाद 18 मई 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वाइन फ्लू को महामारी घोषित किया गया। भारत 16 मई 2009 को भारत में स्वाइन फ्लू के पहले रोगी के पाए जाने की चिकित्सकीय पुष्टि हुई में अब तक इस रोग से हजारों लोग संक्रमित हो चुके हैं जिससे लगभग 1300 मौतें हो चुकी हैं।

क्या हैं कारण

उत्तर प्रदेश में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के श्वसन विभाग के अध्यक्ष और आईएमए (लखनऊ) अध्यक्ष डॉ सूर्यकान्त ने बताया, “स्वाइन फ्लू श्वसन से संबंधित एक बीमारी है जो स्वाइन एन्फ्लूएंजा वायरस (SIV) की वजह से फैलती है। दुनियाभर में अब तक इस वायरस के सब-टाइप H1N1 ने बेहद कोहराम मचाया है लेकिन इसके अन्य सब-टाइप जैसे H1N2, H1N3, H3N1, H3N2 और H2N3 भी कई बार गंभीर समस्याएं पैदा कर देते हैं। H1N1 वायरस का पहला आक्रमण सुअर होते हैं और सुअर पालन करने वालों या सुअरों के नजदीक में रहने वाले मनुष्यों पर इसका अगला आक्रमण होता है और फिर बड़े ही भयावह तरीकों से यह अन्य मनुष्यों को भी संक्रमित करता चला जाता है।

राजस्थान के जयपुर जोन के संयुक्त निदेशक डॉ केके शर्मा ने बताया, राजस्थान स्वास्थ्य विभाग हमेशा स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहता है। स्वाइन फ्लू के मामलों में अभी बढ़ोत्तरी हुई है इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने अलर्ट जारी कर दिया है। लोगों को इससे बचने की सलाह दी जा रही है। लोग ज्यादा भीड़-भाड़ वाले इलाके पर न जाएँ क्योंकि वहां पर इसके फैलने की ज्यादा आशंका होती है। सभी अस्पतालों में व्यवस्था कर दी गई है कि इस वायरस से लोगों को ज्यादा से ज्यादा बचाया जा सके।

“जिस व्यक्ति को स्वाइन फ्लू का संक्रमण हुआ हो, उसके छींके जाने से थूक की छोटी बूंदें हवा में तैरती हुई या एक दूसरे के स्पर्श आदि से अन्य स्वस्थ लोगों तक पहुंच जाती है और संक्रमण होना शुरू हो जाता है। जब आप खांसते या छींकते हैं तो हवा में या जमीन पर या जिस भी सतह पर थूक या मुंह और नाक से निकले द्रव कण गिरते हैं, वह स्थान वायरस की चपेट में आ जाता है। यह कण हवा के द्वारा या किसी के छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के जरिए प्रवेश कर जाते हैं। किसी व्यक्ति को स्वाइन फ्लू हो और आप उसके करीब के दरवाजे, फोन, कीबोर्ड या रिमोट कंट्रोल या अन्य वस्तुओं को छूते हैं तो भी यह वायरस फैल सकते हैं।” डॉ सूर्यकान्त ने आगे बताया।

किन्हें है ज्यादा खतरा

चूंकि स्वाइन फ्लू रोगी के द्वारा छींके या खांसे जाने से हवा के माध्यम से एक से दूसरे मनुष्य तक पहुंच सकता है इसलिए ये उन लोगों को अपनी चपेट में आसानी से ले लेता है जो भीड़-भाड़ के इलाकों में रहते हैं और स्वयं सावधानी बरतने में भूल कर जाते हैं। इसके अलावा जिन्हें निमोनिया या सांस से जुड़े विकार जैसे अस्थमा, ब्रोंकायटिस हो, गर्भवति महिलाएं, हृदय या डायबिटिस जैसे रोगों से जूझ रहे लोग, 65 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग और 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चे इस रोग से जल्दी प्रभावित हो सकते हैं। डॉ सूर्यकान्त ने बताया।

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