रोगों का नहीं, रोग कारकों का उपचार ज़रूरी

Deepak Acharya | May 22, 2019, 09:42 IST
बगैर सोचे-समझे हम अक्सर घातक एंटीबायोटिक्स का सेवन कर लेते हैं, त्वरित परिणाम की चाहत तो पूरी हो जाती है लेकिन लंबे समय तक होने वाले दुष्परिणामों को हम समझने की कोशिश भी नहीं करते।
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लखनऊ। आदिकाल से ही मनुष्य वनसंपदाओं और सरल जीवन शैली को अपनाता रहा है लेकिन समय की कमी और भागती दौड़ती जिंदगी ने अब सरलता को जटिलता में परिवर्तित कर दिया है। महज सर्दी और खांसी की समस्या होने मात्र से हम सीधे केमिस्ट तक दौड़ लगा लेते हैं और बगैर सोचे-समझे घातक एंटीबायोटिक्स का सेवन करते हैं। त्वरित परिणाम की चाहत तो पूरी हो जाती है लेकिन लंबे समय तक होने वाले दुष्परिणामों को हम समझने की कोशिश भी नहीं करते।

जिस तरह पृथ्वी अपने संतुलन को बनाए रखने के लिए सक्षम है, हमारा शरीर भी ठीक इसी सिद्दांत पर काम करता है। हमारे शरीर में भी रोग-प्रतिरोधक क्षमताएं होती हैं, हमारा शरीर प्राकृतिक परिवर्तनों के हिसाब से खुद को संतुलित करने में सक्षम है लेकिन इस मूल बात को हम मनुष्यों ने समझने की अक्सर भूल ही की है।

शरीर में अल्प सक्रिय ज़हर फैलता है

रासायनिक और दुष्परिणामों वाली औषधियों के सेवन से हमारे शरीर में एक अल्प सक्रिय जहर तो फैल ही गया है। आदिवासियों के अनुसार रोग कोई समस्या नहीं होती है, रोग तो एक प्रवृति है जो धीमे-धीमे हमारे शरीर में विकसित होने लगती है, वास्तव में हमें रोगों का नहीं, रोगकारकों का उपचार करना होगा।प्रतीकात्मक तस्वीर।

रसायनों और कृत्रिम रूप से तैयार आधुनिक औषधियों की शरण में जाकर त्वरित उपचार तो हो सकता है लेकिन पूर्णरूपेण नहीं। अक्सर ये दवाएं हमारे शरीर में प्रवेश करने के साथ हमारे शरीर में पहले से उपस्थित पोषक तत्वों को खत्म करने लगती हैं और अक्सर पोषक तत्वों की कमी हो जाने से वही रोग पुन: हो जाता है जिसके उपचार के लिए हमने कोई रासायनिक या तथाकथित फार्मास्युटिकल दवा ली हो।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो- Pixabay

स्टेटिन दवाएं कॉर्डियोवेस्कुलर रोगों में दी जाती हैं किंतु स्टेटिन को-एंजाइम क्यु-10 (CoQ10) को ही ध्वस्त करने लगती है और धीमे-धीमे शरीर में इस को-एंजाइम की कमी होने लगती है, वास्तव में को-एंजाइम क्यु-10 हृदय की माँसपेशियों के लिए एक महत्वपूर्ण एंजाइम है।

हमारे शरीर पर करती है बुरा असर

एक लंबे समय तक को-एंजाइम क्यु-10 की कमी हृदयघात को अंजाम दे सकती है। स्टेटिन ना सिर्फ को-एंजाइम क्यु-10 पर अपने दुष्प्रभाव दिखाती है, बल्कि हमारे शरीर विटामिन बी12 और फॉलिक एसिड पर भी यह बुरा असर करती है।

इस उदाहरण से हम समझ सकते हैं कि समस्याओं का निवारण करने वाली औषधियाँ उसी समस्या के होने का कारण भी बन सकती है। स्टेटिन्स की तरह एन्टासिड्स की अधिकता भी शरीर के महत्वपूर्ण पोषक तत्वों के लिए घातक हैं।

शरीर में अम्लता (एसिडिटी) सामान्य करने के लिए जो रासायनिक एन्टासिड्स लिए जाते हैं, उनका सीधा दुष्प्रभाव शरीर पर कुछ इस तरह होता है कि विटामिन बी12, फॉलिक एसिड, विटामिन डी, लौह तत्वों, मैग्नेशियम और जिंक आदि की कमी होने लगती है। ठीक इसी तरह डायबिटिज से संबंधित दवाएं हों या ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव्स, रासायनिक दवाएं अपना दुष्प्रभाव दिखाने से कभी चूकती नहीं है।

मुफ़्त में समस्याएं भी ले आते हैं घर

अक्सर जाने अनजाने में हम किसी चिकित्सा जानकार को अपनी समस्याएं बताए बगैर सीधे फार्मासिस्ट के पास जाकर दवाएं खरीद लाते हैं और मुफ़्त में समस्याएं भी घर ले आते हैं। कई बार हर्बल दवाओं को भी जानकारी के अभाव में ले लिया जाता है लेकिन इनके दुष्प्रभावों की कल्पना भी नहीं की जाती है।

हर्बल लैक्सेटिव्स (विरेचक यानी पेट सफाई की दवाएं) बाजार में ओवर द काउंटर (ओटीसी) के रूप में कहीं भी मिल जाते हैं लेकिन इनके दुष्प्रभावों की जानकारी हर किसी को नहीं है। ये विरेचक औषधियाँ न सिर्फ शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स संतुलन को बिगाड़ सकती हैं बल्कि कई तरह के विटामिन्स और वसीय पदार्थो का भी विघटन कर देती है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो- Pixabay

इसी तरह हर्बल डाययूरेटिक्स (मूत्र संबंधित विकारों के लिए) के भी दुष्प्रभावों की बात करनी आवश्यक है, जिनकी वजह से विटामिन बी-1, बी-6, विटामिन सी, सीओ-क्यू 10 और शरीर के इलेक्ट्रोलाइट्स अपघटित होने लगते हैं। शरीर में कैफीन की मात्रा ज्यादा होने से विटामिन ए, विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, लौह तत्वों और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों में कमी आने लगती है।

हर्बल दवाएं भी दुष्प्रभाव दिखाने से चूकती नहीं

अक्सर हर्बल मेडिसिन्स को दुष्प्रभावहीन या सुरक्षित बताया जाता है और इसी सिलसिले में लोग बगैर सोचे समझे इन दवाओं को अपना लेते हैं लेकिन इस बात को भूल जाते हैं कि दवाओं की असंतुलित मात्रा या किसी प्रशिक्षित चिकित्सक की सलाह लिए बगैर उपयोग नें लायी गयी हर्बल दवाएं भी दुष्प्रभाव दिखाने से चूकती नहीं।

वैज्ञानिक एल्विन लेविस (2001) की एक शोध जो जर्नल ऑफ इथनोफार्मेकोलॉजी में प्रकाशित हुई थी, के अनुसार एलो वेरा के जैल की अधिक मात्रा जिसे अक्सर लोग बगैर जानकारी के लिए तमाम रोगोपचार के लिए इस्तेमाल करते हैं, शरीर के लिए घातक भी हो सकती है।

पेट दर्द, पेचिस जैसी आम समस्याओं के अलावा हृदय से संबंधित अनेक समस्याओं का सामना कर पड़ सकता है। फ्लेवेनॉयड नामक रसायन की अधिकता होने से मानव शरीर में कई दुष्परिणाम देखे जा सकते हैं। अमेरिकन जर्नल ऑफ मेडिसिन्स में वैज्ञानिक अर्नस्ट (1998) के रिव्यु लेख के अनुसार फ्लेवेनॉयड्स एनिमिया जैसी समस्याओं के अलावा आपकी किडनी को भी क्षतिग्रस्त कर सकते हैं।

सही मात्रा का पता होना आवश्यक

एलो वेरा, आँवला, दालचीनी, चनौठी, इसबगोल, पपीता, धतुरा और सुपारी जैसे अनेक हर्बल उत्पाद हैं जिन्हें दवाओं के तौर पर उपयोग में लाते वक्त सही जानकारियों और दवाओं के लेने की सही मात्रा का पता होना आवश्यक है।

न्यू इंग्लैण्ड जर्नल ऑफ मेडिसिन्स (1997) में वैज्ञानिक रोसेनब्लाट और मिंडल ने एक शोध को प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने एक केस स्टडी के जरिए बताया कि जानकारी के अभाव में रोगोपचार के नाम पर लेने के देने पड़ सकते हैं।

आँख में लालपन होने पर एक व्यक्ति ने झोलाछाप डॉक्टर की सलाह पर जिन्को बाईलोबा नामक पौधे की पत्तियों के सत्व (40 मिग्रा) को आँख में डाला, कुछ तीन दिनों तक लगातार ऐसा करते रहने के बाद उसे महसूस हुआ कि आँखों से देखने में उसे कुछ तकलीफ आ रही है। एक दो दिनों बाद आँख से खून तक निकलने लगा।

जब अपनी करतूत का ज़िक्र किया

जब चिकित्सकों को इस व्यक्ति ने अपनी करतूत का जिक्र किया तो पता चला कि इसे ओक्युलर हेमोरेज रोग हो गया है। इस व्यक्ति की हार्ट सर्जरी कुछ 2 साल पहले हुई थी और उस दौरान 325 मिलीग्राम मात्रा में एस्परिन दवा इसे दी गयी थी।

दरअसल जिन्को बाईलोबा का सत्व आँखों की समस्याओं के लिए कारगर जरूर है लेकिन पिछ्ले 3-4 साल में एस्परिन दवा का सेवन किए व्यक्तियों द्वारा जिन्कों का इस्तेमाल किया जाए तो रिएक्शन (प्रतिक्रिया) हो सकती है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो- Pixabay

ऐसी अनेक हर्बल औषधियाँ जैसे जिन्सेंग, कावा, एफिड्रा, एकोनाईट, सर्पगंधा, गुग्गल, भिलमा, सुवा, मदार, बेलेनाईट, सेन्ना आदि एक निश्चित अनुपात और माप में लेना चाहिए और हमेशा किसी जानकार की सलाह और उपस्थिति में ही ऐसा किया जाना चाहिए, वर्ना अपने शरीर के इलाज से ज्यादा आप नुकसान ही पहुँचाएंगे।

संभावना होती है कि परिणाम नहीं मिलेंगे

हमारे शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता और शारीरिक जरूरतों के तौर पर अनेक रसायन, एंजाइम्स, हार्मोन्स आदि का बनना समय-समय पर होता रहता है और प्रत्येक शरीर में अक्सर किसी ना किसी रसायन की अधिकता या अल्पता बनी रहती है और अल्प ज्ञान और सलाह की वजह से आप जब अपना उपचार स्वय करते हैं तो संभावना होती है कि परिणाम नहीं मिलेंगे और इसके विपरीत आपके शरीर को नुकसान भी पहुँचेगा।

आम लोगों तक कम पहुंच पाती हैं जानकारियां

हमारे शरीर में नैसर्गिक ताकत के रूप में पोषक तत्व, एंजाइम, लिपिड्स और तमाम हार्मोन्स तो हैं लेकिन जरूरत इस बात की है कि इन्हें किसी तरह से संतुलित बनाए रखा जाए, इस तरह की जानकारियां आम लोगों तक कम पहुंच पाती है।

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