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विश्व थैलीसीमिया दिवस: हर हफ्ते खून चढ़वाना ही है इस बीमारी का इलाज

Deepanshu Mishra | May 08, 2017, 10:10 IST
लखनऊ
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। विश्वभर में थैलीसीमिया के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए आठ मई को विश्व थैलीसीमिया दिवस का आयोजन किया जाता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, देश में हर वर्ष सात से दस हजार थैलीसीमिया पीड़ित बच्चों का जन्म होता है। भारत में करीब 10 लाख बच्चे इस रोग से ग्रसित हैं।

सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आशुतोष दुबे बताते हैं, “थैलीसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हिमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में दिक्कतें आने लगती हैं, जिसके कारण खून की कमी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इसकी पहचान तीन माह की उम्र के बाद ही होती है।

इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है, जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है। सूखता चेहरा, लगातार बीमार रहना, वजन न बढ़ना और इसी तरह के कई लक्षण बच्चों में थैलीसीमिया रोग होने पर दिखाई देते हैं।”



थैलीसीमिया पीड़ित के इलाज में काफी बाहरी रक्त चढ़ाने और दवाइयों की आवश्यकता होती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते, जिससे 12 से 25 वर्ष की उम्र में बच्चों की मृत्य हो जाती है। सही इलाज करने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की उम्मीद होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है।
डॉ. आशुतोष दुबे, चिकित्सा अधीक्षक, सिविल अस्पताल

उन्होंने आगे बताया, “इस बीमारी का अब तक कोई भी इलाज नहीं है, केवल खून चढ़ाया जाता है। जैसे पंडित कुंडली बनाते हैं उसी तरह हम लोगों ने एक कुंडली बनाना शुरू कर दिया है, जिसे मेडिकल कुंडली कहते हैं। मेडिकल कुंडली में हम लोग कई टेस्ट करवाते हैं, जिन टेस्टों में एचआईवी, एचसीबी, एचबीएसकेजी, आरएच फैक्टर और डाईबिटीज शामिल हैं। शादी से पहले लड़के और लड़की दोनों का ब्लड टेस्ट करवा लिया जाना चाहिए।”

डाक्टरों के मुताबिक थैलीसीमिया दो प्रकार का होता है...

मेजर थैलीसीमिया

डॉ. आशुतोष बताते हैं, “यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया होता है। जिसे थैलीसीमिया मेजर कहा जाता है।”

माइनर थैलीसीमिया

डॉ. दुबे बताते हैं, “थैलीसीमिया माइनर उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक से प्राप्त होता है। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।”

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