कहानी का पन्ना : एक राधा एक रुक्मणि

गाँव कनेक्शनगाँव कनेक्शन   15 March 2018 12:10 PM GMT

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कहानी का पन्ना  : एक राधा एक रुक्मणिकहानी का पन्ना 

सुबह ही माँ का फ़ोन आ गया, ‘कुमुद, मैंने तेरे लिए एक रिश्ता पसंद किया है। बता किस दिन उनसे मिलने चल सकती है ?’

‘नहीं माँ, मुझे नहीं करनी शादी । तुम मेरे लिए लड़के देखना बंद कर दो । प्लीज।’

‘35 की तो हो गई, बेटा, तेरी वकालत की प्रैक्टिस भी अच्छी चल रही है , अब नहीं करेगी तो कब करेगी ?’

जल्दी से बात ख़त्म करके कुमुद अपने ऑफिस की तरफ चलने लगी । मन में सोच रही थी- ‘माँ भी न , सुबह-सुबह मूड ख़राब कर देती है।’

ऑफिस में घुसते ही अपना काला कोट उतार कर कुर्सी के पीछे टांगते हुए सामने कुर्सी पर बैठी अपनी क्लाइंट को देख रही थी। सुलोचना नाम था , उम्र 55 के लगभग होगी। वो बोल रही थी, ‘पिछले महीने मेरे पति की मृत्यु हो गयी। हम पर एक औरत ने दावा किया है कि उसके मेरे पति के साथ सम्बन्ध थे, और उनका एक पांच साल का बेटा भी है। अब वो मुझसे पैसे मांग रही है।’

कुमुद उसकी तरफ गौर से देख रही थी ।

कुमुद ने पूछा, ‘क्या आपको इस अफेयर का पता था ?’

‘नहीं।’

‘वो रोज़ घर पर ही रहते थे?’

‘उनकी शुरू से ही टूरिंग की जॉब थी, महीने में बीस दिन बाहर ही रहते थे।’

थोड़ी देर कमरे में चुप्पी छा गई।

फिर सुलोचना बोलने लगी, ‘हम कॉलेज से साथ है । थे। पहले दोस्त थे , बहुत अच्छे दोस्त । फिर शादी की । मुझे लगता था कि हम साथी हैं। पर अब लगता है जैसे मैं उन्हें बिलकुल नहीं जानती थी । इतनी बेवक़ूफ़ कैसे हो सकती थी मैं ? पर मेरे और बच्चों की तरफ उनके प्यार में कभी कमी भी तो नहीं आई।’

ऑफिस में घुसते ही अपना काला कोट उतार कर कुर्सी के पीछे टांगते हुए सामने कुर्सी पर बैठी अपनी क्लाइंट को देख रही थी। सुलोचना नाम था , उम्र 55 के लगभग होगी। वो बोल रही थी, ‘पिछले महीने मेरे पति की मृत्यु हो गयी। हम पर एक औरत ने दावा किया है कि उसके मेरे पति के साथ सम्बन्ध थे, और उनका एक पांच साल का बेटा भी है। अब वो मुझसे पैसे मांग रही है।’

थोड़ा रुककर सुलोचना बोली , ‘मैं बच्चों को नहीं बताना चाहती, वो भी मेरी तरह ज़िन्दगी भर अपने पिता को धोखेबाज़ समझेगें। मैं ये नहीं चाहती।’ उसके चेहरे पर दुःख की रेखाएं साफ़ दिखाई दे रही थी।

कुमुद ने पूछा, ‘आप जानती हैं उसे ? क्या नाम है उसका ?’

‘ नहीं, जानती नहीं । नाम प्रतिमा है । उनके ऑफिस में काम करती है।’

‘आपके पति की कोई चिठ्ठी या कागज़ या विल जिस में उस औरत का नाम हो ?’

सुलोचना बोली, ‘नहीं। उन्होंने कभी विल नहीं बनायीं।’ कहते कहते उसकी आंखें भर गई।

कुमुद को केस समझ आ गया था, पर उसे लड़ेगी कैसे? सुलोचना का पक्ष कैसे समझ आएगा कुमुद को ? वो खुद उस प्रतिमा की जगह जो खड़ी थी। बच्चा नहीं था, पर पिछले पांच साल से रवि के साथ उसका भी तो वही सम्बन्ध था । हे कृष्णा, ये क्या लीला रच रहे हो आप ? राधा को रुक्मिणी की वेदना क्यों दिखा रहे हो ?

कुमुद सुलोचना को बोल रही थी, ‘देखिये केस बिलकुल साफ़ है । अगर उसके पास कोई विल नहीं है, और लीगल स्टेटस भी नहीं है, तो उसका केस काफी कमज़ोर है ।आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है । हमारा पक्ष बहुत मज़बूत है । मैं प्रतिमा के वकील से कल मिलकर आपको आगे की बात बताती हूं।’

अगले दिन अपने वकील के साथ एक 30-31 साल की सीधी सादी प्रतिमा, सफ़ेद लखनवी सूट पहने, सर झुकाये बैठी थी।

कुमुद ने सोचा ‘मुझ जैसी तो बिलकुल नहीं है।’ फिर अपने इस ख्याल पर खुद ही हैरान हो गई । हालात एक से होने पर शक्लें थोड़ी मिलने लगती है!

प्रतिमा को लगा जैसे किसी ने उसके मुंह पर तमाचा मार दिया है। ‘आपको लगता है मैं चंद पैसों के लिए ये केस लड़ रही हूँ । इतनी तो उनकी एक महीने की तनख्वाह थी। मुझे मेरे बेटे का जायज़ हक़ चाहिए। मैं उसे किसी शर्मनाक गलती की तरह ढकना नहीं चाहती। हमारा रिश्ता चाहे कानूनी न हो, पर थे तो वो उसके पिता।

कुमुद ने उससे कहा, ‘देखिये आपके पास कोई कागज़ात नहीं है, कोई भी पुख्ता सबूत नहीं है। चंद फोटो और आपकी जुबां - बस, कोर्ट सिर्फ इनसे आपकी कहानी को सच नहीं मानेगी। बेहतर होगा अगर आउट-ऑफ़-कोर्ट सेटलमेंट हो जाये, सभी का खर्चा और वक़्त दोनों ही बचेंगे।’

उसका वकील बोल रहा था, ‘सारा ऑफिस गवाह है इनदोनों के रिश्ते का । उनके हाथ की लिखी चिट्ठियां भी है। हैंडराइटिंग एक्सपर्ट से जांच करा लेंगे, उसमें उन्होंने साफ़ लिखा है कि प्रतिमा उनकी प्रेयसी है और दोनों का एक बेटा भी है।’

अपनी गोद में रखे अपने हाथों को चुपचाप देखती प्रतिमा ने नज़रें उठाकर देखा और बोली, ‘डीएनए टेस्ट करा लीजिए मेरे बेटे का । उससे बड़ा सबूत तो नहीं चाहिए कोर्ट को?’

‘देखिए, उनकी पत्नी आपको दो लाख रुपए देने को तैयार है। पर इससे ज़्यादा नहीं । बदले में आपको कागज़ साइन करने पड़ेंगे कि इसके बाद आपका या आपके बेटे का उनसे कोई वास्ता नहीं रहेगा।’

प्रतिमा को लगा जैसे किसी ने उसके मुंह पर तमाचा मार दिया है। ‘आपको लगता है मैं चंद पैसों के लिए ये केस लड़ रही हूँ । इतनी तो उनकी एक महीने की तनख्वाह थी। मुझे मेरे बेटे का जायज़ हक़ चाहिए। मैं उसे किसी शर्मनाक गलती की तरह ढकना नहीं चाहती। हमारा रिश्ता चाहे कानूनी न हो, पर थे तो वो उसके पिता। उस औरत से वास्ता नहीं रखूंगी, पर उन्हें ये तो मानना ही पड़ेगा कि ये भी उसी बाप का बेटा है जिससे उसके बच्चे हैं।’

कागज़ समेट कर उठते हुए कुमुद ने कहा, ‘आप सोचकर बता दीजिए। मेरा मुवक्किल इससे ज़्यादा नहीं देगा।’

प्रतिमा बोली, ‘मुझे सोचने की ज़रूरत नहीं है । मुझे ये ऑफर मंज़ूर नहीं है।’

मन में कुमुद सोच रही थी ‘ठीक ही तो है। पर मैं अपने क्लाइंट से ज़्यादा ओप्पोसिंग पार्टी के लिए हमदर्दी क्यों महसूस कर रही हूं?’

रातभर कुमुद करवटें बदलती रही, पर उसे नींद नहीं आई । याद कर रही थी कैसे उसके माता-पिता ने पूरा विश्वास करके उसे अपनी पढ़ाई और फिर प्रैक्टिस के लिए मुंबई भेज दिया था । उन्हें नहीं पता था कि कुमुद के पिछले पांच साल से रवि के साथ सम्बन्ध थे , और रवि उसे कहता था कि जल्द ही वो अपनी पत्नी को तलाक दे देगा और कुमुद से शादी करेगा । कुमुद ने उसकी पत्नी और बच्चों को कभी नहीं देखा था । पर अब उनके बारे में सोच रही थी।

इस केस ने उसे झकझोर दिया था । पत्नी कादुःख उसे साफ़ दिख रहा था । जिस पति के साथ उसने इतने साल बिताये थे , जिसके बच्चों की वो माँ थी, जिसका उसकी आँखों ने बरसों इंतज़ार किया था, उसका दिल आज कितना दुखी था ये सोचकर कि वो तो उस आदमी को पूरी तरह जानती भी नहीं थी । पर अभी भी अपना भरोसा टूटने से ज़्यादा उसे इस बात की परवाह थी कि वो आदमी अपने बच्चों की नज़रों में न गिरे । वो उसी आदमी के नाजायज़ रिश्ते को अपने बच्चों से छुपाना चाहती थी । जिसने जीते जी उसकी भावनाओं की कदर नहीं की थी, वो मरने के बाद भी उसका नाम नहीं ख़राब होने देना चाहती थी।

प्रतिमा के वकील का फोनआया कि वो मिलना चाहती थी । जब कुमुद पहुंची, तो वकील ने कहा, ‘हमें आपका ऑफर मंज़ूर नहीं है।’

प्रतिमा नज़रें झुकाये चुप बैठी थी।

कुमुद ने उससे पूछा, ‘क्याहुआ ?’

प्रतिमा बोली, ‘मैं ये डील नहीं चाहती।’

‘तो फिर क्या चाहती हो?’

‘पता नहीं।’

उसके वकील ने बीच में बोलने की कोशिश की, तो कुमुद ने हाथ उठाकर उसे चुप रहने का इशारा किया और ऊंची आवाज़ में प्रतिमा से बोली ‘क्या चाहती हो फिर?’

“पता नहीं, कहा न ,’ प्रतिमा ने भी ऊंची आवाज़ में जवाब दिया।

उसका थका हुआ उदास चेहरा देखकर कुमुद को पता नहीं क्या हुआ । वो खुद को रोक नहीं पायी। आवाज़ और ऊंची करके बोली ,‘मैं बताती हूँ तुम्हें क्या चाहिए । तुम्हें उनके साथ कुछ साल और चाहिए , तुम्हें अपने नाम के आगे उनके surname का हक़ चाहिए । तुम्हें अपने बच्चे के हर बर्थडे पर उन्हें वहाँ साथ खड़ा देखना है । तुम्हें अपने ऑफिस, अपनी रिश्तेदारी में उनके साथ बिना डरे , बिना किसी अपराधबोध के हक़ और इज़्ज़त के साथ उनके साथ खड़े होना है । तुम्हें अपने बेटे के लिए उसके बाप का जायज़ हक़ चाहिए, उस हिस्से में से हिस्सा चाहिए, जो वो उसे देकर नहीं गए।’ बोलते- बोलते कुमुद का गला भर आया और प्रतिमा भी फूट-फूटकर रोने लगी।

वकील चुपचाप देख रहा था । यहाँ केस नहीं, कुछ और ही चल रहा था।

कुमुद की आँखें भी भरी हुई थी। वो एक वकील की तरह नहीं, एक औरत की तरह बोल रही थी। टेबल के उस पार जाकर प्रतिमा की पास वाली कुर्सी पर बैठकर उसने प्रतिमा का हाथ अपने हाथों में ले लिया, और धीमी आवाज़ में बोली,‘मैं तुम्हें कुछ एक लाख तो दिलवा सकती हूं, पर जो तुम्हें चाहिए वो अब तुम्हें कोई नहीं दिलवा सकता।’

उसे टिश्यू देकर कुमुद ने दूसरे टिश्यू से अपनी आंखें पोंछी, फिर उसे पानी का गिलास दिया । सामने खड़े वकील से बोली, ‘आपकी क्लाइंट की जो डिमांड है,उसे तैयार कर लीजिए। मुझसे जितना हो सकेगा,मैं इन्हें दिलवाने की कोशिश करूंगी।’

बहुत थका हुआ महसूस कर रही थी आज कुमुद । इतने केस लड़े थे, पर इतनी इमोशनल तो कभी नहीं हुई थी। आज क्या हो गया था उसे? कहीं प्रतिमा के लाचार आँसूओं में उसे अपना भविष्य तो नहीं दिख रहा था?

जब सुलोचना को पता चला कि प्रतिमा दो लाख में नहीं मान रही, उसे और पैसे चाहिए तो बोली, ‘तो सिर्फ पैसों से ही तो प्यारथा? उनसे थोड़ी था। मैं एक पैसा भी नहीं दूंगी उसे।’

कुमुद बोली, ‘ऐसा नहीं है। वो भी बहुत प्यार करती है उनसे। आपके पति भी उतने ही गुनहग़ार है जितनी वो । दूसरी औरत की कोई पहचान नहीं होती । वो अपने लिए नहीं, अपने बेटे के लिए , आपके पति के बेटे के लिए, हक़ मांग रही है । जैसे आप अपने बच्चों को विरासत में उनके पिता की अच्छी छवि देना चाहती हैं, वो अपने बेटे को उसके पिता का कुछ हिस्सा देना चाहती है। आगे आपकी मर्ज़ी है । कानूनी तौर परआपका केस स्ट्रांग है, पर अगर इंसानी तौर पर आप उसे कुछ देना चाहती है , अपने पति की ज़िम्मेदारी को कुछ चुकता करना चाहती है, तो ठीक रहेगा । मैं आपकी वकील होने के नाते नहीं , एक औरत होने के नाते आपको ये राय दे रही हूं।आगे जो आप चाहती हैं, वही होगा।’

सुलोचना बोली, ‘इतना आसान नहीं है…बहुत उलझा हुआ है सब कुछ।’

‘जो रिश्ता ही उलझा हुआ है, तो उसके साथ तो उलझनें ही होंगी।’

सुलोचना चुपचाप उसकी बातें सुन रही थी। कुछ देर सोचती रही, फिर बोली , ‘मैं उससे मिलना चाहती हूं। एक बार।’

कुमुद के ऑफिस में सुलोचना प्रतिमा का इंतज़ार कर रही थी, कह रही थी,‘कभी नहीं सोचा था मेरे साथ ऐसा कुछ होगा। कॉलेज से ही पता था किससे शादी करनी है , फिर शादी के बाद भी पत्नी और माँ बनकर ही रही। पर आज ? आज वो सबकुछ झूठ लगता है । अपना जीवन, अपना पति, अपनी शादी सब एक मज़ाक लगता है । सारी उम्र एक अच्छी पत्नी के सारे फ़र्ज़ निभाए हैं मैंने । खासकर साफ़-सफाई का काम मेरा ही रहा है । उनके कपड़ों में , घर में, यहां तक कि रिश्तों में भी। वो बस कूड़ा फैलाकर निकल जाते थे, कभी हरकतों से, कभी लफ़्ज़ों से। मेरा काम होता था उनके पीछे से कभी सुलह का, कभी सफाई का।’

कुमुद सुलोचना के पास आकर बैठ गई, ‘उनसे ये भूल हुई थी, उनकी गलती थी। अपने दिल पर काबू नहीं रहा, इसलिए ये रिश्ता बना बैठे।’

सुलोचना अब भावुक हो गई थी, ‘दिल ? दिल की भी तो एक मर्यादा होनी चाहिए न ? जिस रिश्ते की शुरुआत ही किसी के आँसूओं से हो, वो ख़ुशी कैसे दे सकता है? जब रास्ता ही गलत है तो उसपे चलकर मंज़िल कैसे सही मिल सकती है ?’

कुमुद बोली, ‘एक वकील नहीं, पर एक औरत होने के नाते कहूंगी कि आप उन्हें माफ़ कर दे । आप उनकी ब्याहता हैं, और हमेशा रहेंगी । आपके नाम के आगे उनका नाम रहेगा । समाज आपके बच्चों को ही उनका कानूनी वारिस मानेगा । आपका ओहदा बहुत ऊँचा है । उसी ऊँची सोच से उस बच्चे के बारे में सोचिए जिसकी इस सबमें कोई गलती नहीं है।’

सुलोचना कोई जवाब देती इससे पहले ही प्रतिमा और उसके वकील कमरे में आ गए । टेबल की एक तरफ सुलोचना और कुमुद बैठे थे और दूसरी तरफ प्रतिमा और उसका वक़ील । प्रतिमा सिर झुकाये बैठी थी और सुलोचना उसे बहुत गौर से देख रही थी । शायद समझने की कोशिश कर रही थी कि कैसी दिखती थी वो औरत जिसने उस आदमी का प्यार बाँटने की कोशिश की थी जिसपर उसका, सिर्फ उसका, हक़ था? किसी और के पति से रिश्ता बनाने वाली आज के ज़माने की राधा ने आखिर क्या सोचकर इस रिश्ते को कायम किया होगा ?

पर सामने बैठी,अपने से लगभग 20 साल छोटी उस औरत के उदास चेहरे और आंसू से भरी हुई आंखों से उसे कोई जवाब नहीं मिल रहा था।

सब चुप बैठे थे । फिर कुमुद ने वकील से पूछा,‘आपकी मुवक्किल ने क्या सोचा है ?’

वकील के बोलने से पहले ही सुलोचना बोली, ‘पहले मैं इन्हें ये बताना चाहती हूं कि मैंने क्या सोचा है।’

सब सकपका गए । कुमुद को लगने लगा शायद दोनों को एक कमरे में आमने-सामने बिठाकर उससे कोई गलती हो गई थी । अगर यहाँ लड़ाई हो गई, तो बात बिगड़ जाने की सम्भावना ज़्यादा थी और फिर ऐसे पेचीदा रिश्तों के मसलों भला कोर्ट-कचहरी में कहाँ सुलझ सकते थे?

सुलोचना कह रही थी, ‘तुम्हारा उनसे जो भी रिश्ता था ,उस पर मैं कुछ नहीं कहना चाहती । लेकिन तुम्हारा बेटा भी है । बड़ों की गलतियों की सज़ा बच्चों को नहीं मिलनी चाहिए। मैं तुम्हारे बेटे के नाम से एक ट्रस्ट फंड बनाऊंगी, जिसमें इनके प्रोविडेंट फंड का आधा पैसा डाल दूंगी । जिसे सिर्फ उसकी पढ़ाई के लिए काम में लिया जाएगा, और जिसका बाकी पैसा उसे 21 साल का होने पर मिलेगा । अगर इससे पहले हम दोनों को कुछ हो जाता है, तो मेरा बड़ा बेटा उसका लीगल गार्डियन बनेगा । मैं बच्चों से इस बारे में बातकर लूंगी। वो उसकी… क्या नाम है बच्चे का?’

प्रतिमा ने धीरे से जवाब दिया, ‘जतिन।’

सुलोचना बोली,‘मेरेबच्चे जतिन की असलियत को नहीं नकारेंगे।’

कमरे में सन्नाटा था, किसी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। सिर्फ प्रतिमा की सुबकियों की आवाज़ आ रही थी । कुमुद और वकील को समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहें।

सुलोचना ने कुमुद की तरफ देख कर कहा, ‘अगर इन्हें ये डील मंज़ूर है तो कागज़ तैयार करा दीजिए। मैं उनपर साइन कर दूंगी।’ कहकर सुलोचना चली गई ।

कुमुद ने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था । ये कैसी पत्नी थी? जिस औरत को वो अपना अपराधी मानती थी, उसे उसकी मांग से कहीं ज़्यादा पैसे बिना मांगे ही देर ही थी । पत्नी धर्म की ज़िम्मेवारी का ये एक अनोखा ही रूप था!

दोनों के जाने के बाद कुमुद बहुत देर तक ख्यालों में खोयी रही । सोच रही थी अपनी ज़िन्दगी और रवि के और अपने रिश्ते के बारे में । अवैध रिश्ते के बारे में । आखिर समाज और कानून के नियम बहुत ज़रूरी होते है । फिर दिल चाहे इन नियमों को माने या नहीं।

दिल.… पर अपना ही तो दिल है । और मर्यादा तो दिल को भी माननी चाहिए । जिस रिश्ते की शुरुआत ही किसी के आँसूओं से हो, वो ख़ुशी कैसे दे सकता है ? जब रास्ता ही गलत है,तो उसपे चलकर मंज़िल कैसे सही मिल सकती है ?

रवि से रिश्ता ख़त्म करने का समय आ गया था । कुमुद ने फैसला कर लिया । फ़ोन मिलाया, ‘माँ, मैं घर आ रही हूं। आप कौन सा लड़का पसंद करके आई है मेरे लिए? बताइये कब मिलना है?’

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