माहवारी में भी हम कर सकते हैं सब कुछ, ये खून नहीं होता है गंदा

Neetu Singh | May 28, 2017, 19:35 IST
माहवारी की बात
नीतू सिंह

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बख्शी का तालाब (लखनऊ)। गाँव कनेक्शन फाउंडेशन के स्वयं प्रोजेक्ट के तहत विश्व माहवारी दिवस पर उत्तर प्रदेश के 25 जिलों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस मुद्दे पर चुप रहने वाली महिलाएं और किशोरियों ने अपनी झिझक तोड़ी और कार्यक्रम में पीरियड के दिनों को लेकर चर्चा कर अपने मन की तमाम भ्रांतियों को दूर किया। इनमें से तमाम वे भी थीं, जो अभी भी माहवारी के दिनों में खाना नहीं बनाती हैं। जिन्हें माहवारी का खून गन्दा होने की धारणा जकड़े हुए थी।

महिलाओं ने तोड़ी झिझक और पूछे माहवारी को लेकर तमाम सवाल लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर बख्शी का तालाब ब्लॉक से उत्तर दिशा में डेढ़ सौ घरों वाले उदवतपुर गाँव की भी महिलाएं इस कार्यक्रम में पहुंचीं। इस गाँव में रहने वाली सूरजकली देवी (55 वर्ष) ने उम्र में के इस पड़ाव पर भी झेंपते हुए कहा, “महीने में तीन से चार दिन हम खाना नहीं बनाते हैं, अगर खाना बनाकर देंगे तो बड़े-बुजुर्गों का अपमान होगा, इन दिनों सब्जियों और फूलों वाले पेड़ पौधे नहीं छूते हैं, क्योंकि इससे पौधे सूख जाते हैं।”

वो आगे बताती हैं, “पहली बार आज डॉ. दीदी की बातों से पता चला कि अब माहवारी के दिनों में खाना बनाना गुनाह नहीं होगा, अब हम अपनी बहू को खाना बनाने से मना नहीं करेंगे।”

कार्यक्रम में माहवारी से संबंधित भ्रांतियों को दूर करतीं डॉ. प्रगति सिंह विश्व माहवारी दिवस पर ग्रामीण महिलाओं को जानकारी देते हुए डॉ. प्रगति सिंह ने कहा, “माहवारी के दिनों में मन्दिर नहीं जाना, पूजा नहीं करना, अचार न छूना, खाना न बनाना, पौधों को न छूना, साफ़ सफाई न रखना, ये सब सिर्फ आपका एक वहम है। इसे दूर करें, माहवारी का खून गंदा नहीं होता है, माहवारी होना एक महिला के लिए गर्व की बात है।”

उन्होंने आगे बताया, “अगर आपके शौचालय नहीं हैं तो आप दूसरे खर्चों की कटौती कर शौचालय बनवाएं क्योंकि ये आपकी हर दिन की जरूरत है। सैनिटरी नैपकिन निस्तारण करने का सबसे आसान तरीका है गढ्ढा खोदकर उसमें दबा देना। इससे आप कई तरह की बीमारियों से बच सकते हैं।”

दूर हुई भ्रांतियों की जकड़न तो खिल उठे महिलाओं के चेहरे इस कार्यक्रम में आई माया देवी (50 वर्ष) ने कहा, “गाँव में शौचालय नहीं है माहवारी के दिनों में बहुत दूर खेत में जाना पड़ता है, क्योंकि कपड़े फेंकने रहते हैं, अगर वो कपड़े कुत्ते टांग कर ले जाते हैं तो पड़ोसियों की बहुत बातें सुननी पड़ती हैं, कपड़े खेत में न फेंके तो कहाँ फेंके कोई जगह ही नहीं है।” माया देवी की तरह इस बैठक में आई 60 महिलाओं ने कहा कि कपड़े खुले में फेंकने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं हैं।

इस बैठक में आई मूला देवी (50 वर्ष) ने कहा, “गाँव में आज पहली बार कोई डॉक्टर ने आकर इस विषय पर बात की है। इस तरह के कार्यक्रम से हमें जानकारी मिलती रहे इसलिए आगे भी ये होते रहें। इस बारे में हमें कभी किसी ने बताया ही नहीं तो हमें कैसे पता चलेगा कि जो हम कर रहे हैं वो गलत कर रहे हैं।”

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