चित्रकूट का आदिवासी समुदाय असमंजस में, सरकार से पैसा नहीं मिलता ठेकेदार को बेचना मना है।  

Basant KumarBasant Kumar   17 Jun 2017 9:49 PM GMT

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चित्रकूट का आदिवासी समुदाय असमंजस में, सरकार से पैसा नहीं मिलता ठेकेदार को बेचना मना है।  तेंदू पत्ता को दिखाती एक युवती 

चित्रकूट। यहां ज्यादातर लोगों का घर खर्च तेंदू पत्ता बेच कर चलता है। चित्रकूट में जंगल के आसपास के क्षेत्र कोटा कदैला, यमरोहा, केसुरवा, पाठा इलाका में रहने वाले दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों की ज़िन्दगी तेंदू पत्ता के कारोबार पर ही निर्भर है। शंकरगढ़ में खनन रोके जाने के बाद तो तेंदू पत्ता पर निर्भरता और बढ़ गयी है। तेंदू पत्ता का इस्तेमाल बीडी बनाने के लिए होता है।

चित्रकूट में आतंक के पर्याय रहे ददुआ के लोगों के खिलाफ विद्रोह करने वाली 50 वर्षीय रामलली बताती हैं "सरकारी बाबू लोग कम पैसे में तेंदू पत्ता खरीद रहे है। सरकार के लोग 100 बंडल के 95 रुपए देते है। एक बंडल में 40-50 पत्ता होता है, वहीं ठेकेदार (प्राइवेट) 100 बंडल के 200 रुपए देते है। सरकारी बाबू लोग तेंदू पत्ता लेने के कई महीनों बाद पैसे देते हैं। वहीं ठेकेदार माल लेने के बाद उसी वक़्त पैसे दे देते है। इस बार ज्यादातर लोग ठेकेदार को पत्ता बेचना चाह रहे थे लेकिन सरकार के लोगों ने पत्ता जब्त कर लिया।"

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मानिकपुर ब्लॉक के हरिजनपुर गाँव के रहने वाले बुधराज (50) बताते हैं, "ठेकेदार के लोग पैसे समय पर दे देते है जबकि सरकार के लोग दो-तीन महीने बाद देते हैं। सरकार को पत्ता बेचकर हम पैसे का इंतजार करते है। पैसे आने से पहले उससे ज्यादा हम लोगों पर कर्जा हो जाता है। अगर सरकार नहीं चाहती कि हम किसी और को पत्ता बेचे तो ठेकेदारों के बराबर और माल खरीदने के तुरंत बाद पैसे दे दे। सरकार अगर हमें हमारी मेहनत का उचित पैसा दे तो हम किसी और को क्यों अपना माल बेचेगें।

अपने घर में रखे तेंदू पत्ता दिखाते हुए कमला बताती हैं, "सरकार कम दाम में हमसे पत्ता खरीद लेती है। हम दिन भर मेहनत करके पत्ता लाते है और हमें मेहनताना भी नहीं मिल पता है। पैसे भी मिलते है तो दो से तीन महीने बाद मिलते है।"

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इस संबंध में जब हमनें बात की चित्रकूट के वन विभाग के बड़े बाबू सुरेश नरायण त्रिपाठी से तो उनका कहना कहना था कि, "वन विभाग के नियम के अनुसार तेंदू पत्ता को सरकार के अलावा किसी और को बेचना जुर्म है और यह करने वालों के लिए सज़ा का भी प्रावधान है। हाल में ही हमने कई जगहों पर इस तरह से खरीदारी होने की सूचना मिलने पर छापेमारी की थी। जहां तक बात समर्थन मूल्य की है तो वो सरकार तय करती है। सरकार द्वारा तय समर्थन मूल्य पर हम लोग खरीदारी करते है। उससे कम में करें तो हमारी गलती है। जहां तक बात है समय पर पैसा देने की तो हम जल्द से जल्द पैसे देने की कोशिश करते है। कभी-कभी देरी हो जाती है।"

डिविजनल लॉगिंग मेनेजर (डीएलएम) एक के तिवारी बताते हैं, " हम 3 जून तक तेंदू पत्ते की खरीदारी करते है। तेंदू पत्ता पर वन विभाग का ही अधिकार है। अगर कोई प्राइवेट रूप से पत्ता खरीदता है तो वो तस्करी में आएगा। वन विभाग इस तरह की गतिविधियों पर करवाई भी कर करता है।

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