आपको ये जानकार हैरानी होगी की देश में सिर्फ मुट्ठी भर वकील बचे हैं!

क्या आप जानते हैं कि बैरिस्टर, एडवोकेट, लॉयर, अटॉर्नी जनरल, सालिसिटर जनरल, स्टैंडिंग कौंसिल, लोक अभियोजक और वकील में क्या अंतर होता है?

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   25 Feb 2019 9:53 AM GMT

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आपको ये जानकार हैरानी होगी की देश में सिर्फ मुट्ठी भर वकील बचे हैं!

लखनऊ। हमारे देश में वकील, लॉयर, एडवोकेट का सामान्य तौर पर एक ही मतलब समझा जाता है। आप को यह जानकार हैरानी जरूर हो सकती है कि देश में वर्तमान समय में वकीलों कि संख्या बहुत कम बची है। विधि क्षेत्र में प्रयोग कि जाने वाली शब्दावली आज भी सामान्य लोगों के समझ के बाहर है। आइए, आज उच्च न्यायलय के एडवोकेट आनंद प्रताप सिंह के लेख के माध्यम से आपको कुछ जानकारियों से रूबरू करवाते है।

पहले जान लीजिए वकील का मतलब

आनंद प्रताप सिंह बताते है कि ब्रिटिश हुकूमत के समय जो लोग ब्रिटेन से लॉ करके आते थे वो एक भारतीय व्यक्ति को सहायता के लिए अपने साथ रखते थे। ये स्थानीय भाषाओ के जानकर होने के साथ बैरिस्टर के केस ड्राफ्टिंग का काम करते थे। इन्हे कोर्ट की प्रक्रिया की अच्छी जानकारी होती थी और इन्हें वकील कहा जाता था। इनके पास क़ानूनी पढाई कि डिग्री नही होती थी लेकिन ये अनुभवी होते है। वर्तमान में देश में इनकी संख्या बहुत कम बची है।

जानिए कौन होता है बैरिस्टर

जो व्यक्ति लॉ की डिग्री इंग्लॅण्ड से पास करता है, उसे बैरिस्टर कहा जाता था। जैसे आपने पढ़ा होगा कि गाँधी जी साउथ अफ्रीका से बैरिस्टर बनकर लौटे। जवाहर लाल नेहरू भी बैरिस्टर थे।

जानिए कौन होता है लॉयर

जो व्यक्ति विधि क्षेत्र में जानकार हो और विधि स्नातक हो, जिसके पास एलएलबी की डिग्री हो उसे लॉयर कहा जाता है। लेकिन लॉयर को कोर्ट में केस लड़ने कि अनुमति नहीं होती है।

एक लॉयर कब एडवोकेट बनता है

एडवोकेट को हिंदी में अधिवक्ता और प्रांग विवाक भी कहते है। लॉयर से एडवोकेट बनने के लिए बार कौंसिल ऑफ़ इण्डिया (बीसीआई) की परीक्षा देनी पड़ती है। जब उसे बीसीआई का सर्टिफिकेट मिल जाता है तब लॉयर ,एडवोकेट की श्रेणी में आ जाता है और कोर्ट में खड़े होने के लिए अधिकृत हो जाता हैं। तब उसे कोर्ट में केस लड़ने कि अनुमति मिलती है।

जानिये पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (लोक अभियोजक) के बारे में

वह व्यक्ति जिसने एलएलबी की डिग्री हासिल की हो और बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया ने उसे प्रमाण दिया हो वो एडवोकेट कहा जाता है। जब यही एडवोकेट सरकार कि तरफ से पीड़ित का पक्ष लेता है तो इसे ही पब्लिक प्रोसिक्यूटर (लोक अभियोजक) और सामान्य चलन कि भाषा में सरकारी वकील कहते है। लेकिन "सरकारी वकील" संबोधन विधि भाषा के दृष्टिकोण से सही नहीं हैं।

सीआररपीसी का सेक्शन 24 के 2 (u) में लोक अभियोजक के बारे में लिखा है, लोक अभियोजक एक ऐसा व्यक्ति है जिसे आपराधिक मामलों में राज्य की ओर से मामलों का प्रतिनिधित्व करने के लिए केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत नियुक्त किया जाता है।

प्लीडर (Pleader) किसे कहते हैं?

जब वकील (एडवोकेट नहीं), प्राइवेट पक्ष की तरफ से कोर्ट में आता है तो उसे ही प्लीडर कहते है। इसे हिंदी में अभिवचनकर्ता भी कहते हैं। प्लीडर दरअसल वह व्यक्ति होता है जो अपने मुवक्किल की ओर से कानून की अदालत में याचिका दायर करता है और उसकी पैरवी करता है। सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में धारा 2 (7) के तहत प्लीडर एक सरकारी याचिकाकर्ता भी बनता है। अब प्लीडर बहुत कम संख्या में है।

जानिए शासकीय अधिवक्ता के बारें में

पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता रामशरण द्विवेदी बताते हैं कि एडवोकेट का चयन शासकीय अधिवक्ता के लिए सरकार द्वारा किया जाता है। उच्च न्यायालय में दीवानी के सरकारी अधिवक्ता स्टैंडिंग कौंसिल तथा क्रिमिनल के अधिवक्ता को ब्रीफ होल्डर कहा जाता है तथा जिला स्तर के सरकारी अधिवक्ता को शासकीय अधिवक्ता कहते है। जिला स्तर पर अपर शासकीय अधिवक्ता और सहायक शासकीय अधिवक्ता भी सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते है।

जानिये महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) किसे कहते हैं?

महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) पद को भारत के संविधान के अनुसार बनाया गया है। एडवोकेट जनरल किसी राज्य सरकार का कानूनी सलाहकार होता है । वह व्यक्ति जिसके पास लॉ कि डिग्री है और वो एडवोकेट है और राज्य सरकार अपना पक्ष उसे कोर्ट में अपना पक्ष रखने के अधिकृत करती है तो अधिकृत एडवोकेट को महाधिवक्ता कहते है।

महान्यायवादी (अटार्नी जनरल ) किसे कहते हैं

जिस तरह राज्य सरकार का पक्ष कोर्ट में महाधिवक्ता रखते है उसी प्रकार केंद्र सरकार का पक्ष कोर्ट में रखने के लिये एडवोकेट की महान्यायवादी (अटार्नी जनरल) की नियुक्ति होती है। संविधान के अनुच्छेद 76 के तहत भारत के महान्यायवादी पद की व्यवस्था की गई है। वह देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है। अटार्नी जनरल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है उसमें उन योग्यताओं का होना आवश्यक है, जो उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए होती है।

अटार्नी जनरल पद के लिये आवश्यक है कि वह भारत का नागरिक हो, उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम करने का पांच वर्षों का अनुभव हो या किसी उच्च न्यायालय में वकालत का 10 वर्षों का अनुभव हो या राष्ट्रपति के मत अनुसार वह न्यायिक मामलों का योग्य व्यक्ति हो।

महान्यायभिकर्ता (सॉलिसिटर जनरल) किसे कहते हैं

उच्च न्यायालय के अधिवक्ता आनंद प्रताप सिंह बताते है कि सालिसिटर जनरल का काम अटार्नी जनरल कि सहायता करना होता है। विधि डिग्री धारक और एडवोकेट ही सरकार द्वारा सालिसिटर जनरल नियुक्त किया जाता है।सालिसिटर जनरल देश का दूसरे स्तर का कानून अधिकारी होता है। सालिसिटर जनरल को चार अतिरक्त सालिसिटर जनरल सहायक होते है। अपॉइंटमेंट कैबिनेट समिति के द्वारा इनकी नियुक्ति कि जाती है।


     

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