By Lovely Kumari
800 साल पुरानी टिकुली की खूबसूरत कला गुमनामी के अंधेरे में कहीं गुम होती जा रही थी। लेकिन यह कलाकार अशोक कुमार बिस्वास का समर्पण भाव ही था जिसने न केवल इस कला को फिर से जिंदा कर दिया बल्कि इसे 300 से ज्यादा महिलाओं के लिए रोजगार का जरिया भी बना दिया।
800 साल पुरानी टिकुली की खूबसूरत कला गुमनामी के अंधेरे में कहीं गुम होती जा रही थी। लेकिन यह कलाकार अशोक कुमार बिस्वास का समर्पण भाव ही था जिसने न केवल इस कला को फिर से जिंदा कर दिया बल्कि इसे 300 से ज्यादा महिलाओं के लिए रोजगार का जरिया भी बना दिया।
By Manoj Choudhary
झारखंड की सदियों पुरानी पैटकार कला जोकि पैटकार समुदाय की संस्कृति, संगीत और परंपराओं की कहानियां बताती है। इस कला में किसी भी तरह के रासायनिक रंगों का इस्तेमाल नहीं होता है, सारे पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से तैयार किए जाते हैं। गुप्त कालीन कला अब अपने वजूद के लिए लड़ रही है।
झारखंड की सदियों पुरानी पैटकार कला जोकि पैटकार समुदाय की संस्कृति, संगीत और परंपराओं की कहानियां बताती है। इस कला में किसी भी तरह के रासायनिक रंगों का इस्तेमाल नहीं होता है, सारे पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से तैयार किए जाते हैं। गुप्त कालीन कला अब अपने वजूद के लिए लड़ रही है।
By Ashis Senapati
Puppeteers are a fading phenomenon but 74-year-old Fakir Singh is doing his bit by teaching the tricks of his trade to young children in his village in Kendrapara, Odisha.
Puppeteers are a fading phenomenon but 74-year-old Fakir Singh is doing his bit by teaching the tricks of his trade to young children in his village in Kendrapara, Odisha.
By Ashis Senapati
जौकंधेई ओडिशा की एक पारंपरिक लोक कला है जो राज्य की संस्कृति, साहित्य, कला, धर्म और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करती है। जौकंधेई गुड़िया आमतौर पर एक पुरुष और एक महिला के साथ जोड़े में होती हैं, इन्हें शुभ प्रतीक माना जाता है।
जौकंधेई ओडिशा की एक पारंपरिक लोक कला है जो राज्य की संस्कृति, साहित्य, कला, धर्म और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करती है। जौकंधेई गुड़िया आमतौर पर एक पुरुष और एक महिला के साथ जोड़े में होती हैं, इन्हें शुभ प्रतीक माना जाता है।
By Chandraprakash Pathak
कालबेलिया समुदाय का अपना पारंपरिक शिल्प है जिसमें ऐक्रेलिक ऊन व रेशम के चटकीले धागों और शीशे जड़कर कपड़े के रिसायकिल टुकड़ों पर चित्रों को उकेरा जाता है। फिर उससे गूदड़ी या रजाई बनाई जाती है। कालबेलिया क्राफ्ट रिवाइवल प्रोजेक्ट इस कला को फिर से जिंदा करने और इससे जुड़े उन कलाकारों को रोजगार दिलाने में मदद कर रहा हैं, जो कमाई का कोई जरिया नहीं होने की वजह से दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर हैं।
कालबेलिया समुदाय का अपना पारंपरिक शिल्प है जिसमें ऐक्रेलिक ऊन व रेशम के चटकीले धागों और शीशे जड़कर कपड़े के रिसायकिल टुकड़ों पर चित्रों को उकेरा जाता है। फिर उससे गूदड़ी या रजाई बनाई जाती है। कालबेलिया क्राफ्ट रिवाइवल प्रोजेक्ट इस कला को फिर से जिंदा करने और इससे जुड़े उन कलाकारों को रोजगार दिलाने में मदद कर रहा हैं, जो कमाई का कोई जरिया नहीं होने की वजह से दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर हैं।
By Ashis Senapati
ओड़िशा में डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय में आदिवासी मोटिफ के साथ शॉल की बुनाई और कढ़ाई करना एक पुरानी प्रथा रही है। सालों पुरानी यही कला रायगडा जिले में 18,00 आदिवासी महिलाओं के लिए आय का एक अहम जरिया भी बन गई है। उनके पारंपरिक शॉल दूर-दूर तक बेचे और खरीदे जा रहे हैं। वे अब अपनी इस मेहनत के लिए जीआई टैग के इंतजार में हैं।
ओड़िशा में डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय में आदिवासी मोटिफ के साथ शॉल की बुनाई और कढ़ाई करना एक पुरानी प्रथा रही है। सालों पुरानी यही कला रायगडा जिले में 18,00 आदिवासी महिलाओं के लिए आय का एक अहम जरिया भी बन गई है। उनके पारंपरिक शॉल दूर-दूर तक बेचे और खरीदे जा रहे हैं। वे अब अपनी इस मेहनत के लिए जीआई टैग के इंतजार में हैं।
By Rajesh Khandelwal
A resident of a village in Rajasthan, Brajesh Bhargav, along with 200 other women, makes 250 different types of jute-based products. She receives bulk orders from Delhi, Jaipur and Agra. Her products under the brand name Raksakhi are listed on Flipkart and Amazon too.
A resident of a village in Rajasthan, Brajesh Bhargav, along with 200 other women, makes 250 different types of jute-based products. She receives bulk orders from Delhi, Jaipur and Agra. Her products under the brand name Raksakhi are listed on Flipkart and Amazon too.
By गाँव कनेक्शन
The project, which seeks to connect rural artisans, craftspersons and other creative artists with the urban markets, was launched in Chhattisgarh's Bastar district in the presence of Chief Minister Bhupesh Singh Baghel and Bastar District Magistrate Rajat Bansal. Details here.
The project, which seeks to connect rural artisans, craftspersons and other creative artists with the urban markets, was launched in Chhattisgarh's Bastar district in the presence of Chief Minister Bhupesh Singh Baghel and Bastar District Magistrate Rajat Bansal. Details here.
By दिति बाजपेई
मोहरा देवताओं के चेहरों को दर्शाने वाले धातु के मुखौटे हैं, जो आमतौर पर पीतल में ढाले जाते हैं, जिनकी हिमाचल प्रदेश में पूजा की जाती है। 10वीं शताब्दी के शिल्प को ज्यादातर मंडी और चंबा जिलों में बसे कारीगरों ने किसी तरह से जिंदा रखा है।
मोहरा देवताओं के चेहरों को दर्शाने वाले धातु के मुखौटे हैं, जो आमतौर पर पीतल में ढाले जाते हैं, जिनकी हिमाचल प्रदेश में पूजा की जाती है। 10वीं शताब्दी के शिल्प को ज्यादातर मंडी और चंबा जिलों में बसे कारीगरों ने किसी तरह से जिंदा रखा है।
By Sadaf Shabir
Ali Mohammad Najar from Budgam, Kashmir, is painfully aware that he is perhaps one of the last custodians of the craft of wooden utensils, which were once integral to every Kashmiri kitchen. The craftsman now works as a labourer and repairs wooden roofs to make ends meet.
Ali Mohammad Najar from Budgam, Kashmir, is painfully aware that he is perhaps one of the last custodians of the craft of wooden utensils, which were once integral to every Kashmiri kitchen. The craftsman now works as a labourer and repairs wooden roofs to make ends meet.