ग्रामीण भारत की बड़ी चुनौती: आज भी अधूरी चिकित्सा व्यवस्था
ग्रामीण भारत की बड़ी चुनौती: आज भी अधूरी चिकित्सा व्यवस्था

By Dr SB Misra

गाँव में आज भी चिकित्सा व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। 70% आबादी गाँवों में रहती है, लेकिन डॉक्टरों का सिर्फ़ 26% हिस्सा वहां उपलब्ध है। अस्पतालों की कमी, दवाइयों का अभाव, झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला और तेजी से बढ़ती शहरी बीमारियां, ग्रामीण स्वास्थ्य को बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी कर रही हैं।

गाँव में आज भी चिकित्सा व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। 70% आबादी गाँवों में रहती है, लेकिन डॉक्टरों का सिर्फ़ 26% हिस्सा वहां उपलब्ध है। अस्पतालों की कमी, दवाइयों का अभाव, झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला और तेजी से बढ़ती शहरी बीमारियां, ग्रामीण स्वास्थ्य को बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी कर रही हैं।

जंगल ही खेत, प्रकृति ही गुरु: गोवा के एक किसान का खेती का अनोखा मॉडल
जंगल ही खेत, प्रकृति ही गुरु: गोवा के एक किसान का खेती का अनोखा मॉडल

By Gaon Connection

गोवा की पहाड़ियों में एक किसान पिछले 38 सालों से नंगे पाँव प्राकृतिक खेती कर रहा है- बिना जुताई, बिना केमिकल, बिना पेड़ काटे। संजय पाटिल ने 10 एकड़ जंगल को खेती में बदल दिया और साबित किया कि प्रकृति को न छेड़ें, तो वह दोगुना लौटाती है।

गोवा की पहाड़ियों में एक किसान पिछले 38 सालों से नंगे पाँव प्राकृतिक खेती कर रहा है- बिना जुताई, बिना केमिकल, बिना पेड़ काटे। संजय पाटिल ने 10 एकड़ जंगल को खेती में बदल दिया और साबित किया कि प्रकृति को न छेड़ें, तो वह दोगुना लौटाती है।

अखबार से बनाइए डस्टबिन बैग, पॉलीथीन की कीजिए छुट्टी
अखबार से बनाइए डस्टबिन बैग, पॉलीथीन की कीजिए छुट्टी

By Gurpreet Singh

गुरप्रीत सिंह पेशे से इंजीनियर हैं और उनका शौक है बेकार लगने वाली चीजों को खूबसूरत और उपयोगी चीजों में बदलना। अपने कॉलम 'कबाड़ से कलाकारी' में गुरप्रीत इस बार सिखा रहे हैं पुराने अखबारों का इस्तेमाल करके उनसे डस्टबिन बैग बनाना।

गुरप्रीत सिंह पेशे से इंजीनियर हैं और उनका शौक है बेकार लगने वाली चीजों को खूबसूरत और उपयोगी चीजों में बदलना। अपने कॉलम 'कबाड़ से कलाकारी' में गुरप्रीत इस बार सिखा रहे हैं पुराने अखबारों का इस्तेमाल करके उनसे डस्टबिन बैग बनाना।

कूड़े वाली बस्ती का अनोखा स्कूल, सुबह कचरे की बोरी शाम को स्कूल का बैग
कूड़े वाली बस्ती का अनोखा स्कूल, सुबह कचरे की बोरी शाम को स्कूल का बैग

By Abhishek Verma

हम आप जब अपने घरों से बाहर निकलते हैं अक्सर सड़क किनारे कुछ बच्चे कूड़ा-कचरा बीनते हैं, कई बार हम उनकी तरफ देखते तक नहीं, और देख लिया तो कार या बाइक की स्पीड बढ़ा लेते हैं। शहरों में कचरा उठाने आने वाले लोगों के साथ अक्सर उनके बच्चे होते हैं, हम उन्हें देखते हैं और अक्सर दीनहीन समझ आगे बढ़ जाते हैं

हम आप जब अपने घरों से बाहर निकलते हैं अक्सर सड़क किनारे कुछ बच्चे कूड़ा-कचरा बीनते हैं, कई बार हम उनकी तरफ देखते तक नहीं, और देख लिया तो कार या बाइक की स्पीड बढ़ा लेते हैं। शहरों में कचरा उठाने आने वाले लोगों के साथ अक्सर उनके बच्चे होते हैं, हम उन्हें देखते हैं और अक्सर दीनहीन समझ आगे बढ़ जाते हैं

वेस्ट मैनेजेमेंट सिस्टम के अभाव में कौन लेगा सफ़ाई कर्मचारियों के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी?
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By Swati Subhedar

इस जगह पर न कानून का पालन होता है न ही मानव अधिकारों का। नियम के अनुसार शहरों में कचरा फेकने वाली जगह और रहवासी इलाको में 5०० मीटर का अंतर होना चाहिए। लेकिन यहाँ कचरे के ढेर के भीतर ही कई छोटी-छोटी बस्तिया हैं जहाँ कचरा उठाने वाले लोग अपने परिवारो के साथ रहते हैं।

इस जगह पर न कानून का पालन होता है न ही मानव अधिकारों का। नियम के अनुसार शहरों में कचरा फेकने वाली जगह और रहवासी इलाको में 5०० मीटर का अंतर होना चाहिए। लेकिन यहाँ कचरे के ढेर के भीतर ही कई छोटी-छोटी बस्तिया हैं जहाँ कचरा उठाने वाले लोग अपने परिवारो के साथ रहते हैं।

बायोमेडिकल कचरे को खुले में फेंकने और जलाने से सीतापुर में फैली बदबू, स्थानीय लोग परेशान
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By Kirti Shukla

सीतापुर जिले की मिश्रिख तहसील में दो केंद्रीकृत बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट सुविधाएं मौजूद हैं। इसके बावजूद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के पास सीरिंज, बेकार दवाएं, खून से सनी पट्टियां, और प्लेसेंटा (गर्भनाल) को खुले मैदान में फेंका और जला दिया जाता है। स्थानीय लोग और सफाई कर्मचारी इसकी दुर्गंध और जहरीले धुएं से बुरी तरह प्रभावित हैं।

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खुले में शौच करने पर पांच सौ रुपए जुर्माना, जानिए नगर निगम के और फरमान..
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By Mo. Amil

इन बच्चों के हाथों में अब कूड़े का थैला नहीं, किताबों का बस्ता होता है
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By Neetu Singh

चार रुपए के कचरे से बनेगा दो वक्त का खाना
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By गाँव कनेक्शन

ई-कचरे से निजात दिलाएगा आईआईटी मद्रास द्वारा विकसित ऑनलाइन प्लटेफॉर्म
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By गाँव कनेक्शन

एक समय के बाद मोबाइल कंम्यूटर, लैपटॉप जैसे उपकरण बेकार हो जाते हैं, जो किसी काम के नहीं रहते और वो बस कचरा बनकर रह जाते हैं, जिनसे निपटना एक मुश्किल काम है, लेकिन आईआईटी, मद्रास एक ऐसा ऑनलाइट प्लेटफार्म बना रहा है, जिससे इलेक्ट्रानिक कचरे यानि ई-कचरे से निपटने में आसानी होगी।

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