विश्व गौरैया दिवस: प्यार से पुकारो तो सही, लौट आएगी गौरेया और संग ले आएगी बचपन
विश्व गौरैया दिवस: प्यार से पुकारो तो सही, लौट आएगी गौरेया और संग ले आएगी बचपन

By Manisha Kulshreshtha

मनीषा कुलश्रेष्ठ हिंदी की लोकप्रिय कथाकार हैं। गांव कनेक्शन में उनका यह कॉलम अपनी जड़ों से दोबारा जुड़ने की उनकी कोशिश है। अपने इस कॉलम में वह गांवों की बातें, उत्सवधर्मिता, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा करेंगी।

मनीषा कुलश्रेष्ठ हिंदी की लोकप्रिय कथाकार हैं। गांव कनेक्शन में उनका यह कॉलम अपनी जड़ों से दोबारा जुड़ने की उनकी कोशिश है। अपने इस कॉलम में वह गांवों की बातें, उत्सवधर्मिता, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा करेंगी।

संकटा चौथ: बघेलखंड और बुंदेलखंड में सूखे सिंघाड़े और तिल गुड़ के साथ मनाया जाता है ये पर्व
संकटा चौथ: बघेलखंड और बुंदेलखंड में सूखे सिंघाड़े और तिल गुड़ के साथ मनाया जाता है ये पर्व

By Sachin Tulsa tripathi

मध्यप्रदेश के बघेलखंड में सकट चौथ के दिन सूखे सिंघाड़े से एक विशेष व्यंजन भी बनाया जाता है। यह व्यंजन संकटा चौथ के दिन विशेष रूप से पूरे बघेलखंड और बुंदेलखंड में बनाए जाने वाले सूखे सिंघाड़े की काची को लोग बड़े चाव से खाते हैं।

मध्यप्रदेश के बघेलखंड में सकट चौथ के दिन सूखे सिंघाड़े से एक विशेष व्यंजन भी बनाया जाता है। यह व्यंजन संकटा चौथ के दिन विशेष रूप से पूरे बघेलखंड और बुंदेलखंड में बनाए जाने वाले सूखे सिंघाड़े की काची को लोग बड़े चाव से खाते हैं।

मध्य प्रदेश : यूरिया के लिए सुबह से शाम तक कतार में किसान, जरूरत 10 बोरी की और हाथ आ रही एक बोरी
मध्य प्रदेश : यूरिया के लिए सुबह से शाम तक कतार में किसान, जरूरत 10 बोरी की और हाथ आ रही एक बोरी

By Sachin Tulsa tripathi

खरीफ सीजन में किसानों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी यूरिया खाद है। पहले कालाबाज़ारी के चक्कर में किसानों को यूरिया दोगुने दाम में खरीदनी पड़ी। अब जब सरकारी दुकानों में पहुंची तो लंबी कतार लग चुकी हैं। सुबह से शाम तक खड़े होने के बावजूद किसानों को खेत के हिसाब से जितनी जरूरत है, उतनी भी खाद हाथ नहीं आ रही।

खरीफ सीजन में किसानों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी यूरिया खाद है। पहले कालाबाज़ारी के चक्कर में किसानों को यूरिया दोगुने दाम में खरीदनी पड़ी। अब जब सरकारी दुकानों में पहुंची तो लंबी कतार लग चुकी हैं। सुबह से शाम तक खड़े होने के बावजूद किसानों को खेत के हिसाब से जितनी जरूरत है, उतनी भी खाद हाथ नहीं आ रही।

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