खइके पान बंगलुरू वाला

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खइके पान बंगलुरू वालाgaoconnection

उस मीटिंग के वक्त मेरे लिए खुद को संभाल पाना बड़ा मुश्किल सा हो रहा था, मेरे लिए एक जगह पर सीधा खड़ा होना या बैठ पाना भी कठिन हो रहा था। यूं लगा जैसे मेरे पेट की अतडि़यां तक बाहर निकल आएंगी, वो ऐसा पेट दर्द था जिसे मैनें शायद इससे पहले कभी इतना महसूस नहीं किया था।अचानक उल्टियों के होने का आभास और फिर पेट में अजीब सी मरोड़ें, ये सब मेरे लिए बिल्कुल नया, पहली बार होने वाला और बहुत दर्दनाक था। 

मुझे चलते रहना पसंद है, चाहे घरेलू काम-काज या फिर घर की चार दीवारियों से बाहर का काम या किसी खास मिशन पर यात्राएं, शरीर के चलते रहने में स्वास्थ्य संबंधी गम्भीर दिक्कतों का सामना कम ही होता है और जिस तरह की मेरी अपनी घुमक्कड़ और व्यस्त जीवनशैली है उसमें यदाकदा सरदर्द होना आम बात है, लेकिन दर्दनिवारक उपायों और अच्छी नींद के बाद ये भी छू मंतर भी हो जाते रहे हैं लेकिन, ये पेट दर्द असहनीय था, ये मेरी समझ से बाहर था कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है?

मीटिंग के दौरान नजदीक बैठे एक मित्र ने फटाफट मुझे एक नजदीकी क्लीनिक ले जाने की व्यवस्था कर दी। डॉक्टर ने परीक्षण कर मुझे एक इंजेक्शन दे दिया। इससे पहले कि हालात सुधर पाते, वो तूफान फिर जोर-शोर से अवतरित हुआ, इस बार दर्द पिछली बार की तुलना में ज्यादा भयंकर और दर्दकारक था और इस दर्द के साथ 7 से 8 बार उल्टियों का होना मेरी जान लिए जा रहा था। इस बार घर के नजदीक एक अन्य डॉक्टर के पास मुझे ले जाया गया। डॉक्टर ने एक बार फिर दर्द निवारक और एंटीबॉयोटिक गोलियों का गुलदस्ता भेंट कर दिया लेकिन मैंने ठान ली कि हालात भले बिगड़ जाएं लेकिन मुझे एंटीबॉयोटिक्स का कोर्स नहीं लेना है। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि यथासंभव एंटिबॉयोटिक्स से दूर रहना ही बड़ी समझदारी है। शरीर को प्राकृतिक तौर तरीकों से ठीक किया जाना लंबे समय तक फायदा देता है। आजकल डॉक्टर्स के द्वारा रोगी को देखते ही एंटिबॉयोटिक्स दे देना चिकित्सा का सबसे पहला पायदान होता है जो कि घातक है। एंटिबॉयोटिक्स शरीर में पहुंचकर हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता की बैंड बजा देते हैं। 

गाँव कनेक्शन के प्रचलित स्तंभकार “हर्बल आचार्य” डॉ दीपक आचार्य के एक लेख की बातें याद है मुझे जिसमें उन्होंने बताया था कि रोगोपचार की विधि तार्किक और न्यायसंगत नहीं होगी तो समस्याएं कम होने के बजाए दुगुनी ही होती चली जाएंगी। रसायनों और कृत्रिम रूप से तैयार आधुनिक औषधियों की शरण में जाकर त्वरित उपचार तो हो सकता है लेकिन पूर्णरूपेण नहीं।  

बस, मुझे हर्बल उपचार ही करना था।

बैंगलूरू के प्रख्यात वनस्पतिशास्त्री डॉ. बालकृष्णन नायर और उनके साथी आयुर्वेद, सिद्धा, यूनानी और कई अन्य हिन्दुस्तानी चिकित्सा पद्धितियों और पाश्चात्य शैली के औषधीय विज्ञान के साथ रोगनिवारण के नए आयामों की खोज में लगे हुए हैं। मुझे डॉ नायर की एक सलाह याद आई और इस सलाह का अमलीकरण अगली सुबह हो गया। मैनें अपने किचन गार्डन से पान की तीन पत्तियों को तोड़ा, उन्हें साफ धोया और उसकी डंठल अलग कर दी। पानी की पत्तियों पर तीन काली मिर्च और चुटकी भरी नमक डालकर, इसे मोड़कर मुंह में डाल लिया। इसे मुंह में रखकर आहिस्ता-आहिस्ता चबाना होता है ताकि धीमे-धीमे पान की पत्तियों और कालीमिर्च का रस पेट तक पहुंचे और अपना असर दिखाना शुरु करे। इसके अलावा पानी की शारीरिक पूर्ति बनाए रखने के लिए नारियल पानी, छाछ और पानी का सेवन पूरे दिन भर करती रही। दर्द से बचे रहने के लिए एक गोली दर्दनिवारक की भी बतौर सावधानी ले ली। मुझे त्वरित आराम मिला, मैं दर्द से खुद को आज़ाद महसूस कर पा रही थी।

डॉ नायर को फोन लगाकर इस पूरे केस की जानकारी भी दी। उनके अनुसार “ये फार्मूला बहुत असरकारक है, चाहे शरीर में एलर्जी हो या कोई जहरीला दुष्प्रभाव, ये दुष्प्रभाव ना सिर्फ खाना-पान की गड़बड़ी वाले हो सकते हैं बल्कि सर्पदंश में भी यही नुस्खा काफी कारगर है। इस फार्मूले का सेवन कम से कम तीन दिन किए जाने की सलाह डॉ नायर देते हैं। बातों बातों में डॉ नायर ने यह भी बताया कि अनार के छिलकों को भी नहीं फेंका जाना चाहिए। छिलकों को सुखा लें, पाउडर तैयार करें और जब भी पेट दर्द की शिकायत हो, एक चम्मच चूर्ण को 100 मिली छाछ के साथ लें तो दर्द गायब हो जाता है।

हर्बल मेडिसिन्स को किसी अन्य तरह के ट्रीटमेंट चलने की दशा में एक घंटे अंतराल के बाद ही लेने की सलाह एक्सपर्ट्स देते हैं। डॉ. पशुओं पर ज्यादा डोज़ के साथ इसी नुस्खे को आजमा चुके हैं और परिणाम काफी सकारात्मक हैं।

 

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