नमित ने बीटेक की पढ़ाई छोड़ शुरु किया मधुमक्खी पालन

दिवेंद्र सिंह | Sep 16, 2016, 16:29 IST
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लखनऊ।नमित ने इंजीनियर बनने का ख्वाब देखा था मगर आयुर्वेद ने उसको अपनी ओर इस कदर आकर्षित किया कि उसने बीटेक की पढ़ाई छोड़ कर मधुमक्खी पालन की ओर रुख किया।

लखनऊ में चिनहट के रहने वाले नमित कुमार सिंह (24 वर्ष) की कहानी कुछ ऐसी ही है। उसने देखा कि आयुर्वेद में शहद का बहुत अधिक उपयोग है। इसलिए उसने शहद को बढ़ावा देने की ठानी और आखिरकार अब वह निशुल्क ही मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण देकर युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहा है।

नमित ने इंटर की पढ़ाई करने के बाद तमिलानाडु के अन्नामलाई विश्वविद्यालय में बीटेक की पढ़ाई करने गए थे। चौथे साल में ही उसने पढ़ाई छोड़ दी। वह मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लेने चला गया।

नमित बताते हैं, "जब तमिलनाडु गया तो देखा की वहां पर लोग एलोपैथिक के अपेक्षा आयुर्वेद पर ज्यादा भरोसा करते हैं, और उसमें शहद का बहुत उपयोग होता है। पढ़ाई के दौरान ही मैंने मधुमक्खी पालन के बारे में सीखना शुरु कर दिया था।"वो आगे बताते हैं, "बीटेक के आखिरी साल में मुझे लगा कि पढ़ाई के बाद नौकरी करके इतना फायदा नहीं होगा जितना मैं मधुमक्खी पालन करके कमा सकता हूं।"

नमित लखनऊ और उसके आसपास के कई जिलों के मधुमक्खी पालकों से भी मिले। लेकिन कोई भी कुछ भी बताने को तैयार नहीं था। इंटरनेट से थोड़ी बहुत जानकारी लेने के बाद वो पंजाब, केरल और तमिलनाडु में भी मधुमक्खी पालन करने वाले लोगों से मिले। वहां पर उन्हें इतनी जानकारी मिल गई जिससे वो मधुमक्खी पालन शुरु कर सकें।

दो साल पहले रॉयल हनी बी फार्मिंग नाम से एक सोसाइटी बनाई है और उसे उत्तर प्रदेश सरकार के तहत रजिस्टर्ड करवा लिया। अब नमित कुमार सिंह अपने फार्म पर बनने वाले शहद को पैक कर के बेच भी रहे हैं। नमित शहद को बिना प्रसंस्करण के शुद्ध ही देते हैं।

नमित अपनी मधुमक्खियों को छह महीने सीतापुर जिले और छह महीने कुशीनगर जिले में रखते हैं। नमित बताते हैं, "छह महीने हम अपनी मधुमक्खियों के बॉक्स सीतापुर रखते हैं जहां पर यूकेलिप्टस और सरसो के फूलों से मधुमक्खियां शहद बनाती हैं और अगले छह महीने में कुशीनगर में रखते हैं जहां पर लीची केढेरसारे बाग हैं।"

आजकल जहां लोग अपनी जानकारी किसी के साथ से साझा नहीं करना चाहते हैं, वहीं पर नमित दूसरे लोगों को भी मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दे रहे हैं। नमित कहते हैं, "मैं चाहता हूं जो परेशानी मुझे हुई, वो बाकी लोगों को न हो। इसलिए मैं लोगों को मुफ्त में ही ट्रेनिंग देता हूं। जिन लोगों को ट्रेनिंग चाहिए उनको अपने फार्म पर ही ट्रेनिंग देता हूं। अगर 30-40 लोगों का ग्रुप बने, तो मैं उनको इलाके में जाकर ही ट्रेनिंग देने का तैयार रहता हूं।”

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

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