सूखे पर सरकारों का शुतुरमुर्गी रवैया

गाँव कनेक्शन | Sep 16, 2016, 16:15 IST
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नई दिल्ली (भाषा)। सुप्रीम कोर्ट ने “इच्छा शक्ति की कमी” जैसे शब्दों से केंद्र को फटकार लगाते हुए तीन महीने में ‘राष्ट्रीय आपदा राहत कोष’, छह महीने में ‘राष्ट्रीय आपदा मोचन बल’ व जल्द से जल्द ‘राष्ट्रीय आपदा प्लान’ तैयार करने को कहा। यह सभी वर्ष 2005 से लागू ‘आपदा प्रबंधन एक्ट’ में प्रस्तावित हैं।‘स्वराज अभियान’ की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने बिहार, गुजरात और हरियाणा को समय से सूखा घोषित न करने के रवैये को “शुतुर्मुग जैसा” बताते हुए कृषि मंत्रालय को आदेश दिया कि राज्यों के साथ स्थिति का आंकलन करने के लिए एक सप्ताह के अंदर बैठक करें। कोर्ट ने कहा कि लोगों से जुड़े मुद्दे पर आखिरी जिम्मेदारी केंद्र की ही होती है।

न्यायमूर्ति एमबी लोकुर की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र को आदेश दिया कि वह आपदा प्रबंधन कानून के प्रावधानों का कार्यान्वयन करें और सूखे को तय कर उसकी घोषणा करने के लिए वैज्ञानिक आधारों पर समय सीमा तय करें। याचिका में कहा गया था कि देश में सूखा घोषित करने में किसी तरह के वैज्ञानिक अधिकार का प्रयोग नहीं किया जाता। न्यायालय ने आपदा से प्रभावित किसानों को कारगर राहत देने के लिए केंद्र को सूखा प्रबंधन नियमावली की समीक्षा करने और संकट से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय योजना बनाने के लिए भी कहा।

कृतिक आपदा से प्रभावित किसानों को कम मुआवजे पर न्यायालय ने चिंता जताई और कहा कि इसके चलते कुछ किसानों ने आत्महत्या की।अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने 26 अप्रैल को पीठ को बताया था कि केंद्र सूखा प्रभावित इलाकों में हालात पर नज़र रखे हुए है और राज्य प्राकृतिक आपदा से प्रभावित इन इलाकों में किसानों को हरसंभव राहत मुहैया कराने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

पूर्व में, उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से सवाल किया था कि क्या राज्यों को यह चेतावनी देने की जिम्मेदारी उसकी नहीं है कि निकट भविष्य में सूखे जैसे हालात उत्पन्न हो सकते हैं।याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन स्वराज अभियान ने समीक्षा के बाद दाखिल अपने आग्रह में केंद्र को मनरेगा कानून के प्रावधानों से संबद्ध एक आदेश देने तथा सूखा प्रभावित इलाकों में रोज़गार देने के लिए इसका उपयोग किये जाने का अनुरोध किया था।

बुधवार को कोर्ट द्वारा सुनाया गया फैसला, सम्पूर्ण फैसले का एक भाग है। आने वाले दो दिनों में फैसले के अन्य भागों को भी सुनाया जा सकता है। फैसले के अगले भागों में अतिरिक्त अनाज, मनरेगा, मिड-डे मील, पशुचारा, फसल नुकसान का मुआवज़ा और कर्जो के पुनर्निधारण के मुद्दों को शामिल किया जा सकता है।गैर सरकारी संगठन द्वारा दाखिल जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि 12 राज्यों- उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, झारखंड, बिहार, हरियाणा और छत्तीसगढ के कई हिस्से सूखे से प्रभावित हैं, और प्राधिकारी पर्याप्त राहत नहीं मुहैया करा रहे हैं।

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