क़ैदी से अब 'कलाकार' बन रही हैं इस जेल की महिलाएँ

उत्तर प्रदेश के बस्ती में एक सरकारी स्कूल टीचर महिला क़ैदियों को हुनरमंद बना रहे हैं। उनकी इस मेहनत से जेल के बाहर की औरतों में भी अब ख़ुद के दम पर कुछ बड़ा करने का हौसला बढ़ रहा है।

Ambika TripathiAmbika Tripathi   2 Aug 2023 6:36 AM GMT

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क़ैदी से अब  कलाकार बन रही हैं इस जेल की महिलाएँ

बस्ती कारागार बस्ती में महिलाओं को नए हुनर सीखने को मिलते हैं, इसमें आलोक शुक्ला उनकी मदद करते हैं।

ममता सिंह को जब चार महीने के लिए जेल हुई तो उन्हें कतई यकीन नहीं था कि वो वहाँ से बाहर निकलने के बाद शायद कोई काम कर पाएँगी, लेकिन जेल से रिहा होने के बाद जब उन्होंने दीवाली पर पुराने अखब़ार से लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ बनाने काम शुरू किया, फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 205 किलोमीटर दूर बस्ती जेल में ममता जैसी कई क़ैदी हैं जिन्हें आलोक शुक्ल ने हुनरमंद बना दिया है। आलोक ज़िले के उच्च प्राथमिक विद्यालय कवलसिया-गौर में कला एवं शिल्प शिक्षक हैं।

आलोक शुक्ला जिले की स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी तमाम हुनर सीखा चुके हैं जिससे उन्हें आमदनी का जरिया मिल गया है।


आलोक गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "पिछले कई साल से मैं जेल की महिलाओं को राखी, होली के गुलाल, पुराने अखबार से देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाने जैसे काम सिखा रहा हूँ। साल 2021 में ममता सिंह भी जेल में थी, उन्होंने भी दूसरी महिलाओं के साथ ही मूर्तियाँ बनाना सीखा। यहाँ से निकलने के बाद दिवाली में उन्होंने मूर्तियाँ बनाकर बेची, वो कुछ न कुछ काम करती रहती हैं।"

वो आगे कहते हैं, "पहली बार जब कैदी महिलाओं के साथ मिलकर न्यूज़ पेपर से मूर्ति बनायी थी, तो शुरुआत में महिलाएँ काफी डरी हुई थीं। उन्हें लग रहा था, कि हम बना भी पाएँगे या नहीं। लेकिन मैंने उन्हें समझाया हो जाएगा।"

"पहले सभी महिलाओं ने न्यूज़ पेपर को कूटना शुरु किया और साथ में भजन गाते गाते पूरी मूर्ति तैयार कर दी। सभी का इतने कम समय में ये सीखना मेरे लिए हैरत की बात थी।" आलोक ने ख़ुशी से कहा।


आलोक शुक्ला ने लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेंट भी की। महिला क़ैदियों को उनकी कला के लिए डीएसपी ने सम्मानित किया।

आलोक को ये ज़ि़म्मेदारियाँ कोविड महामारी में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान दी गईं थीं। लॉकडाउन के समय जब स्कूल बन्द चल रहे थे, तब उन्हें स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को आर्ट एंड क्राफ्ट सिखाने का काम दिया गया। अब तक वो हज़ारों महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुके हैं।

जिला कारागार बस्ती आरक्षी जतिन तोमर गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जब महिलाओं को पता चला कि उन्हें कोई सिखाने वाले टीचर आने वाले हैं तो वे काफी उत्साहित दिखी। जेल की महिलाएँ कुछ नया जानने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं, ज़्यादातर महिलाएँ पढ़ी-लिखी नहीं होती हैं, बहुत सारे लोग कुछ न कुछ सिखाने आते रहते हैं, लेकिन आलोक जितना लगन से किसी ने उन्हें नहीं सिखाया।"

"ये सारी चीजें सीख कर महिलाएँ जेल से बाहर जाकर अपने लिए कुछ कर सकती हैं। अपने लिए किसी प्लेटफार्म की उन्हें ज़रूरत नहीं होगी, उन्हें वो सारी चीजें आती हैं। " जतिन तोमर ने आगे कहा।


राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक देश की लगभग 1,300 जेलों में से 31 महिला जेलें हैं, जहाँ की क़ैदियों में से ज़्यादातर के मामले विचाराधीन (अंडर -ट्रायल) हैं जबकि दोषसिद्ध अपराधियों की तादाद बेहद कम है। कुछ राज्यों ने महिला जेल के अंदर क़ैदियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, बच्चों के अलग कमरे और शिक्षा का इंतज़ाम किया है, फिर भी अधिकतर जेलों में अब भी काफी कुछ किया जाना बाकी है।

कई जेलों में क़ैद महिलाएँ सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, फ़ैशन ज्वैलरी, जूट उत्पाद और लिफ़ाफ़ा बनाने से लेकर दीया, मोमबत्ती, नमकीन, अगरबत्ती, अचार, पापड़, पेंटिंग, हर्बल पैक, आर्टिफ़िशएल फूलों और मिट्टी के बर्तन बनाने तक रचनात्मक गुर सीख रही हैं।

आलोक अपने स्कूल के बच्चों को बहुत याद करते हैं, लेकिन महिला कैदियों के इस काम को भी पूरी ज़िम्मेदारी से निभाते हैं। हर रोज जेल आना फिर उन महिलाओं के पास जाने के लिए कड़ी जांच से गुजरना अब रोज की बात हो गई है। जेल के अंदर जाने से पहले उन्हें फोन तक जमा करना पड़ता है।

आलोक कहते हैं, "कितनी भी इमरजेंसी हो और अगर कोई अधिकारी दौरे पर आते हैं, तो उनके साथ मेरी भी तलाशी ली जाती हैं। सुई, कैंची जैसी चीजें उनके हाथ में नहीं होनी चाहिए, लेकिन ऐसे काम में तो ये चीजें इस्तेमाल होती हैं। इसलिए हर एक महिला क़ैदी के साथ कांस्टेबल होती हैं, जो उनपर नज़र रखती हैं।"


आलोक बंदी महिलाओं के अलावा जेल के बाहर ज़िले की स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी हुनरमंद बना रहे हैं। बस्ती जिले के साहूपार गाँव की 35 साल की अनीता ने भी आलोक से नेचुरल गुलाल बनाना सीखा है। तीन साल से स्वयं सहायता समूह से जुड़ी अनीता गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "पहले हमारे पास कोई काम नहीं था, लेकिन जब से समूह से जुड़ी हूँ, अब चीजें आसान हो गई हैं। हमने अपने खेत में पालक, गुलाब के फूल, और चुकंदर उगाया था और उन्हीं से आलोक सर ने हमारे ग्रुप की महिलाओं को होली के गुलाल बनाना सिखाया।"

वो आगे कहती हैं, "10 दिन की ट्रेनिंग में हम सभी महिलाओं ने मिलकर 2 क्विंटल गुलाल तैयार किया था, जिससे काफी मुनाफा हुआ था। हमारे पास काफी ऑनलाइन आर्डर आये थे, लेकिन उसे पूरा करने का समय नहीं था। आलोक सर ने हमें बहुत अच्छे से सिखाया और हमने मेहनत की तो हम सब की मेहनत रंग लाई।"


आलोक शुक्ला ने मन्दिर के फूलों से होली के लिए गुलाल तैयार किया जिसे काफी पसंद किया गया। इसकी माँग लखनऊ, दिल्ली, तमिलनाडु, कोयंबटूर, भोपाल से आयीं थी।

आलोक बताते हैं, "इतनी ज़्यादा माँग आ गई थी, लेकिन समय बहुत कम था इसलिए हमने अगले साल के लिए बोल दिया। महिलाओं को ऐसी चीजे बनाने का इंतज़ार रहता हैं।"

बस्ती के बाद अब आलोक शुक्ला की तैयारी बरेली जाने की है। वहाँ वे स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण देने वाले हैं।

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