टीचर्स डायरी: एक शिक्षक के प्रयासों से बदल गई डिग्री कॉलेज की तस्वीर
लखनऊ का एक डिग्री कॉलेज अपराधिक गतिविधियों के कारण बदनाम हो गया था। पिछले 21 वर्षों से यहां पढ़ाने वाले एक शिक्षक ने न केवल कॉलेज में आपराधिक गतिविधियों को खत्म किया है बल्कि इसके बेहतर अकादमिक प्रदर्शन में भी योगदान दिया है।
Danish Iqbal 24 March 2023 9:35 AM GMT

प्रदीप शर्मा साल 2002 में लखनऊ के शिया पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में लेक्चरर के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने देखा कि कॉलेज में पढ़ाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
कॉलेज असामाजिक तत्वों का गढ़ होने के कारण बदनाम हो चुका था। वहां के तत्कालीन प्राचार्य एमएस नकवी की मदद से उन्होंने कॉलेज के बदलाव की शुरूआत की। सबसे पहले हमने मेंटरशिप प्रोग्राम चलाया, जिसमें पता लगाया की बच्चे का बैकग्राउंड और आईक्यू लेवल क्या है। फिर उसके आधार पर उन्होंने दो कैटेगरी बनाई।
एक तो स्लो लर्नर और दुसरा एडवांस लर्नर। अब हम एडवांस लेवल वालों को इतना सिखा देते थे कि बतौर ट्युटर वो स्लो लर्नर को भी सिखा सके। सबसे खास बात ये थी कि ज्यादातर बच्चे पार्ट-टाईम जॉब भी करते थे और ये सब बच्चे बहुत कमजोर वर्ग से आते थे।
इस कॉलेज का रिजल्ट 2010 से 2016 तक मात्र 47 प्रतिशत था। 2016 के बाद से रिजल्ट लगभग 86 प्रतिशत हो गया है। साल 2018 में 20 एडऑन कोर्स चलाए जो 30 घंटे का होता थे। और किसी भी बच्चे से इन कोर्स के चार्ज नहीं लिया जाता है, कोविड के समय हमने अपना युनिवर्सिटी डाटा रिसोर्स सेल बना लिया, जिसका में अभी डायरेक्टर भी हूं। जो हमारे लिए पहला और दूसरा लॉकडाउन में काफी मददगार रहा। चाहे वो ऑनलाइन क्लास हो या फिर अध्यापक के साथ मीटिंग करनी हो और 190 वेबिनार भी किया। कॉलेज को NAAC के द्वारा भी A ग्रेड दिया गया है।
कॉलेज की तरफ से 72 दिन तक सामुदायिक रसोई चलाया जो कॉलेज के साथियों द्वारा चलाया गई और न ही हमने किसी कि मदद ली। हमारे कॉलेज के द्वारा कम्युनिटी कनेक्ट कैंपेन चलाया जिसमें ग्रामीण जगहों पर जाकर फ्री लीगल सलाह देते हैं।
प्रदीप शर्मा ने ग्रीन इनिशिएटिव कैंपेन भी चला रहे हैं, जिसमें एक मोबाइल ऐप भी बनाया गया। इस ऐप पर जैसे कोई कार से कहीं जा रहा तो अपडेट कर देगा, इसी तरह शनिवार को कोई भी कार से नहीं आता है।
यही नहीं उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने एक कैंपेन चलाया था पढ़े लखनऊ, बढ़े लखनऊ तो उसमें भी कॉलेज ने कई इनाम जीते हैं। कोविड के समय जिस भी बच्चे ने अपने माता-पिता को खोया है, उसको कॉलेज गोद लेगा और जहां तक वो पढ़ना चाहे उसका कॉलेज मैंनेजमेंट पूरा खर्च उठाएगा।
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