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कश्मीर में हर साल अनोखे जलस्रोत को साफ़ करने के लिए क्यों इकट्ठा होते हैं लोग
कश्मीर में हर साल अनोखे जलस्रोत को साफ़ करने के लिए क्यों इकट्ठा होते हैं लोग

By Mudassir Kuloo

दक्षिण कश्मीर में हर कोई दूसरे कामों से फुर्सत निकाल कर पंजथ नाग से कीचड़ और खरपतवार निकालने के लिए इकट्ठा होता है। ये रस्म सदियों से चली आ रही है। माना जाता है पंजथ गाँव से डेढ़ किलोमीटर के दायरे में 500 झरने हैं जहाँ यह सालाना उत्सव मनाया जाता है।

दक्षिण कश्मीर में हर कोई दूसरे कामों से फुर्सत निकाल कर पंजथ नाग से कीचड़ और खरपतवार निकालने के लिए इकट्ठा होता है। ये रस्म सदियों से चली आ रही है। माना जाता है पंजथ गाँव से डेढ़ किलोमीटर के दायरे में 500 झरने हैं जहाँ यह सालाना उत्सव मनाया जाता है।

शहर में रहते हैं? बिना मिट्टी के छत या बालकनी में उगाइए सब्ज़ियाँ
शहर में रहते हैं? बिना मिट्टी के छत या बालकनी में उगाइए सब्ज़ियाँ

By Mudassir Kuloo

श्रीनगर में अपने आंगन में आशिक हुसैन पालक, धनिया, पुदीना और दूसरी सब्जियाँ उगाते हैं, जिनमें से अधिकांश 45 दिनों में तैयार हो जाती हैं। कश्मीर घाटी में हाइड्रोपोनिक्स या मिट्टी रहित खेती की तरफ लोगों का रुझान बढ़ रहा है।

श्रीनगर में अपने आंगन में आशिक हुसैन पालक, धनिया, पुदीना और दूसरी सब्जियाँ उगाते हैं, जिनमें से अधिकांश 45 दिनों में तैयार हो जाती हैं। कश्मीर घाटी में हाइड्रोपोनिक्स या मिट्टी रहित खेती की तरफ लोगों का रुझान बढ़ रहा है।

शहर में रहते हैं? बिना मिट्टी के छत या बालकनी में उगाइए सब्ज़ियाँ
शहर में रहते हैं? बिना मिट्टी के छत या बालकनी में उगाइए सब्ज़ियाँ

By Gaon Connection

श्रीनगर में अपने आंगन में आशिक हुसैन पालक, धनिया, पुदीना और दूसरी सब्जियाँ उगाते हैं, जिनमें से अधिकांश 45 दिनों में तैयार हो जाती हैं। कश्मीर घाटी में हाइड्रोपोनिक्स या मिट्टी रहित खेती की तरफ लोगों का रुझान बढ़ रहा है।

श्रीनगर में अपने आंगन में आशिक हुसैन पालक, धनिया, पुदीना और दूसरी सब्जियाँ उगाते हैं, जिनमें से अधिकांश 45 दिनों में तैयार हो जाती हैं। कश्मीर घाटी में हाइड्रोपोनिक्स या मिट्टी रहित खेती की तरफ लोगों का रुझान बढ़ रहा है।

मुनाफे का नया ज़रिया बनने से खेती की तरफ रुख कर रहे हैं कश्मीर के युवा
मुनाफे का नया ज़रिया बनने से खेती की तरफ रुख कर रहे हैं कश्मीर के युवा

By दिति बाजपेई

कश्मीर के युवा इन दिनों दूसरे राज्यों के लिए मिसाल बन गए हैं। पोस्ट ग्रेजुएट यानि एमए या एमएससी डिग्री वाले यहाँ के कई युवाओं ने, बागवानी, मधुमक्खी पालन और मसालों की खेती में कमाल कर दिखाया है। वे न सिर्फ इससे खुद आत्मनिर्भर बन रहे हैं, बल्कि दूसरों के लिए रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।

कश्मीर के युवा इन दिनों दूसरे राज्यों के लिए मिसाल बन गए हैं। पोस्ट ग्रेजुएट यानि एमए या एमएससी डिग्री वाले यहाँ के कई युवाओं ने, बागवानी, मधुमक्खी पालन और मसालों की खेती में कमाल कर दिखाया है। वे न सिर्फ इससे खुद आत्मनिर्भर बन रहे हैं, बल्कि दूसरों के लिए रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।

मुनाफे का नया ज़रिया बनने से खेती की तरफ रुख कर रहे हैं कश्मीर के युवा
मुनाफे का नया ज़रिया बनने से खेती की तरफ रुख कर रहे हैं कश्मीर के युवा

By Gaon Connection

कश्मीर के युवा इन दिनों दूसरे राज्यों के लिए मिसाल बन गए हैं। पोस्ट ग्रेजुएट यानि एमए या एमएससी डिग्री वाले यहाँ के कई युवाओं ने, बागवानी, मधुमक्खी पालन और मसालों की खेती में कमाल कर दिखाया है। वे न सिर्फ इससे खुद आत्मनिर्भर बन रहे हैं, बल्कि दूसरों के लिए रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।

कश्मीर के युवा इन दिनों दूसरे राज्यों के लिए मिसाल बन गए हैं। पोस्ट ग्रेजुएट यानि एमए या एमएससी डिग्री वाले यहाँ के कई युवाओं ने, बागवानी, मधुमक्खी पालन और मसालों की खेती में कमाल कर दिखाया है। वे न सिर्फ इससे खुद आत्मनिर्भर बन रहे हैं, बल्कि दूसरों के लिए रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।

कूड़ा बीनने से लेकर पढ़ाई तक - जम्मू में एक रिटायर्ड शिक्षिका ला रही बच्चों की ज़िंदगी में बदलाव
कूड़ा बीनने से लेकर पढ़ाई तक - जम्मू में एक रिटायर्ड शिक्षिका ला रही बच्चों की ज़िंदगी में बदलाव

By Mubashir Naik

जम्मू में एक रिटायर सरकारी स्कूल टीचर कंचन शर्मा अपने स्कूल संघर्ष विद्या केंद्र में कूड़ा बीनने वाले बच्चों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा प्रदान करती हैं। लेकिन क्या उनके 14 साल पुराने स्कूल को जारी रखने की अनुमति देने के लिए अधिकारियों से अनापत्ति प्रमाणपत्र मिलेगा?

जम्मू में एक रिटायर सरकारी स्कूल टीचर कंचन शर्मा अपने स्कूल संघर्ष विद्या केंद्र में कूड़ा बीनने वाले बच्चों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा प्रदान करती हैं। लेकिन क्या उनके 14 साल पुराने स्कूल को जारी रखने की अनुमति देने के लिए अधिकारियों से अनापत्ति प्रमाणपत्र मिलेगा?

अपनी गर्माहट खो रही है कश्मीरी कांगड़ी
अपनी गर्माहट खो रही है कश्मीरी कांगड़ी

By Mudassir Kuloo

सदियों से फिरन के अंदर छिपी कश्मीरी कांगड़ी ने लोगों को कश्मीर की कड़कड़ाती ठंड से बचने में मदद की है। लेकिन कांगड़ी का इस्तेमाल कम हो रहा है।

सदियों से फिरन के अंदर छिपी कश्मीरी कांगड़ी ने लोगों को कश्मीर की कड़कड़ाती ठंड से बचने में मदद की है। लेकिन कांगड़ी का इस्तेमाल कम हो रहा है।

कश्मीर में हाथ के बने कोयले से दी जाती ठंड को मात
कश्मीर में हाथ के बने कोयले से दी जाती ठंड को मात

By Farzana Nisar

कश्मीर के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं पतझड़ के मौसम में पेड़ों से गिरने वाली पत्तियों और टहनियों को इकट्ठा करती हैं और उन्हें कांगड़ी में जलाने के लिए पुन तसेनी (कोयले) में बदल देती हैं। ये कोयला उन्हें न सिर्फ सर्दियों के दौरान गर्म रखने में मदद करता है, बल्कि इसे बेचकर वो कुछ पैसे भी कमा लेती हैं।

कश्मीर के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं पतझड़ के मौसम में पेड़ों से गिरने वाली पत्तियों और टहनियों को इकट्ठा करती हैं और उन्हें कांगड़ी में जलाने के लिए पुन तसेनी (कोयले) में बदल देती हैं। ये कोयला उन्हें न सिर्फ सर्दियों के दौरान गर्म रखने में मदद करता है, बल्कि इसे बेचकर वो कुछ पैसे भी कमा लेती हैं।

Bid goodbye to the winters with these sweet and sour Dogra recipes of Jammu
Bid goodbye to the winters with these sweet and sour Dogra recipes of Jammu

By Shikha Jamwal

Winter and spring in Dogra households in Jammu are incomplete without the smokey 'kimb' chaat. Kimb is a citrus fruit that is locally grown there. The sweet mitthe chol adds to celebrations in Dogra weddings and festivals.

Winter and spring in Dogra households in Jammu are incomplete without the smokey 'kimb' chaat. Kimb is a citrus fruit that is locally grown there. The sweet mitthe chol adds to celebrations in Dogra weddings and festivals.

जम्मू-कश्मीर में घुमंतू जनजाति बकरवाल के युवा क्यों छोड़ रहे हैं पूर्वजों का काम
जम्मू-कश्मीर में घुमंतू जनजाति बकरवाल के युवा क्यों छोड़ रहे हैं पूर्वजों का काम

By Aditi Kashyap and Nameera Anjum

जम्मू के पास एक गाँव में, खानाबदोश बकरवाल जनजाति के लोग अपने पशुओं के साथ कश्मीर के ऊपरी इलाकों की यात्रा करने की तैयारी करते हैं। लेकिन उनमें से सभी ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि बहुत से युवा अपने खानाबदोश अतीत से अलग होकर कहीं और बेहतर आजीविका की तलाश करने लगे हैं।

जम्मू के पास एक गाँव में, खानाबदोश बकरवाल जनजाति के लोग अपने पशुओं के साथ कश्मीर के ऊपरी इलाकों की यात्रा करने की तैयारी करते हैं। लेकिन उनमें से सभी ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि बहुत से युवा अपने खानाबदोश अतीत से अलग होकर कहीं और बेहतर आजीविका की तलाश करने लगे हैं।

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