By Brijendra Dubey
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव के 21 वर्षीय रोहित यादव ने नेशनल जेवलियन प्लेयर बनने के लिए मुश्किलों का सामना किया, ट्रेनिंग के लिए इक्विपमेंट तक नहीं थे। उन्हें हाल ही में अमेरिका में ओरेगॉन में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दसवां स्थान दिया गया था और यूनाइटेड किंगडम के बर्मिंघम में चल रहे राष्ट्रमंडल खेलों (कॉमनवेल्थ गेम्स) में कुछ गौरव हासिल करने के लिए तैयार हैं।
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव के 21 वर्षीय रोहित यादव ने नेशनल जेवलियन प्लेयर बनने के लिए मुश्किलों का सामना किया, ट्रेनिंग के लिए इक्विपमेंट तक नहीं थे। उन्हें हाल ही में अमेरिका में ओरेगॉन में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दसवां स्थान दिया गया था और यूनाइटेड किंगडम के बर्मिंघम में चल रहे राष्ट्रमंडल खेलों (कॉमनवेल्थ गेम्स) में कुछ गौरव हासिल करने के लिए तैयार हैं।
By Manoj Choudhary
राँची में आयोजित महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी 2023 में, भारतीय महिला हॉकी टीम लगातार जीत के बाद खिताब अपने नाम करने में कामयाब रही है। यहाँ तक पहुँचने के लिए टीम को कड़ी मेहनत और संघर्ष से गुजरना पड़ा है। झारखंड के तीन महिला खिलाड़ियों की ज़िंदगी और भी मुश्किल भरी थी, जिन्होंने यहाँ तक पहुंचने के लिए काफी मशक्कत की है। गाँव कनेक्शन ने उनके परिजनों से बात की।
राँची में आयोजित महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी 2023 में, भारतीय महिला हॉकी टीम लगातार जीत के बाद खिताब अपने नाम करने में कामयाब रही है। यहाँ तक पहुँचने के लिए टीम को कड़ी मेहनत और संघर्ष से गुजरना पड़ा है। झारखंड के तीन महिला खिलाड़ियों की ज़िंदगी और भी मुश्किल भरी थी, जिन्होंने यहाँ तक पहुंचने के लिए काफी मशक्कत की है। गाँव कनेक्शन ने उनके परिजनों से बात की।
By गाँव कनेक्शन
By Ankit Kumar Singh
Deepak Rawat had hoped his participation in the Santosh Trophy would be enough to get a job. But that didn't happen. So, he put his talent to the next best use – train kids and youths in his village and mould them into national-level players
Deepak Rawat had hoped his participation in the Santosh Trophy would be enough to get a job. But that didn't happen. So, he put his talent to the next best use – train kids and youths in his village and mould them into national-level players
By Neetu Singh
पूनम तिवारी के लिए गांव की पगडंडियों से निकलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारोत्तोलन खेल को खेलना इतना आसान नहीं था। ख्याति पा चुकी पूनम गांव के दर्जनों बच्चों को भारोत्तोलन खेल का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। इस खिलाड़ी से प्रशिक्षण पाकर कई बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। सीरीज में आगे पढ़िए पूनम तिवारी के जिंदगी से जुड़े कई अनछुए पहलुओं के बारे में ...
पूनम तिवारी के लिए गांव की पगडंडियों से निकलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारोत्तोलन खेल को खेलना इतना आसान नहीं था। ख्याति पा चुकी पूनम गांव के दर्जनों बच्चों को भारोत्तोलन खेल का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। इस खिलाड़ी से प्रशिक्षण पाकर कई बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। सीरीज में आगे पढ़िए पूनम तिवारी के जिंदगी से जुड़े कई अनछुए पहलुओं के बारे में ...
By Chandrakant Mishra
कुछ समय पहले तक इन लड़कियों के पास खेलने के लिए न तो खुद के हॉकी स्टिक थे और न पहनने के लिए जूते। लेकिन संसाधनों की कमी इन खिलाड़ियों के इरादों को डिगा नहीं पाए। गाँव में खेल मैदान न होने पर खेत की पगड़डियों पर करती हैं प्रैक्टिस। गाँव की करीब एक दर्जन से ज्यादा लड़कियां देश के लिए हॉकी का सपना संजोए हुए हैं।
कुछ समय पहले तक इन लड़कियों के पास खेलने के लिए न तो खुद के हॉकी स्टिक थे और न पहनने के लिए जूते। लेकिन संसाधनों की कमी इन खिलाड़ियों के इरादों को डिगा नहीं पाए। गाँव में खेल मैदान न होने पर खेत की पगड़डियों पर करती हैं प्रैक्टिस। गाँव की करीब एक दर्जन से ज्यादा लड़कियां देश के लिए हॉकी का सपना संजोए हुए हैं।
By O P Singh
किसी पंचर बनाने वाले की बेटी राष्ट्रीय स्तर पर फुटबाल खेलेगी? किसी दिहाड़ी मजदूर की बेटी स्टेट लेवल पर गोल्ड जीतेगी? कुछ साल पहले तक बिहार में ऐसा सपने में सोचना मुश्किल ही था, आज भी खेल के मामले में बिहार में पंजाब-हरियाणा जैसा माहौल नहीं, लेकिन सिवान में कुछ ऐसा हो रहा है, जहां गांव के खलिहान जैसे मैदान से महिला खिलाड़ी निकल रही हैं।
किसी पंचर बनाने वाले की बेटी राष्ट्रीय स्तर पर फुटबाल खेलेगी? किसी दिहाड़ी मजदूर की बेटी स्टेट लेवल पर गोल्ड जीतेगी? कुछ साल पहले तक बिहार में ऐसा सपने में सोचना मुश्किल ही था, आज भी खेल के मामले में बिहार में पंजाब-हरियाणा जैसा माहौल नहीं, लेकिन सिवान में कुछ ऐसा हो रहा है, जहां गांव के खलिहान जैसे मैदान से महिला खिलाड़ी निकल रही हैं।
By Amarpal Singh Verma
For four decades, a volleyball coach has trained hundreds of players in Hanumangarh district in Rajasthan, who have won medals both nationally and internationally. Coach Basant Singh Mann’s ancestral village Silwala Khurd is known as Khel Gaon.
For four decades, a volleyball coach has trained hundreds of players in Hanumangarh district in Rajasthan, who have won medals both nationally and internationally. Coach Basant Singh Mann’s ancestral village Silwala Khurd is known as Khel Gaon.
By Mithilesh Dhar
By गाँव कनेक्शन