By Gaon Connection
टाटा स्टील फाउंडेशन के ‘संवाद’ सम्मेलन में युवा आदिवासी फिल्म निर्माता मैरी संध्या लाकरा की लघु फिल्म को साझा किया गया था। यह फिल्म आदिवासी प्रवासी श्रमिकों की ज़िंदगी में आने वाली मुश्किलों को सामने लाने का उनका एक प्रयास है।
टाटा स्टील फाउंडेशन के ‘संवाद’ सम्मेलन में युवा आदिवासी फिल्म निर्माता मैरी संध्या लाकरा की लघु फिल्म को साझा किया गया था। यह फिल्म आदिवासी प्रवासी श्रमिकों की ज़िंदगी में आने वाली मुश्किलों को सामने लाने का उनका एक प्रयास है।
By Pankaja Srinivasan
टाटा स्टील फाउंडेशन के ‘संवाद’ सम्मेलन में युवा आदिवासी फिल्म निर्माता मैरी संध्या लाकरा की लघु फिल्म को साझा किया गया था। यह फिल्म आदिवासी प्रवासी श्रमिकों की ज़िंदगी में आने वाली मुश्किलों को सामने लाने का उनका एक प्रयास है।
टाटा स्टील फाउंडेशन के ‘संवाद’ सम्मेलन में युवा आदिवासी फिल्म निर्माता मैरी संध्या लाकरा की लघु फिल्म को साझा किया गया था। यह फिल्म आदिवासी प्रवासी श्रमिकों की ज़िंदगी में आने वाली मुश्किलों को सामने लाने का उनका एक प्रयास है।
By Satish Malviya
महाराष्ट्र के नंदुरबार ज़िले में उदई नदी के किनारे करीब 12 हज़ार भील आदिवासी भगवान भरोसे हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार तो दूर उनकी आवाज़ तक सुनना मुश्किल है। प्रशासन के लिए भी उन तक पहुँचना टेढ़ी खीर है। वजह है नदी पार के लिए पुल का नहीं होना।
महाराष्ट्र के नंदुरबार ज़िले में उदई नदी के किनारे करीब 12 हज़ार भील आदिवासी भगवान भरोसे हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार तो दूर उनकी आवाज़ तक सुनना मुश्किल है। प्रशासन के लिए भी उन तक पहुँचना टेढ़ी खीर है। वजह है नदी पार के लिए पुल का नहीं होना।
By Gaon Connection
राजस्थान के उदयपुर के आदिवासी गाँव डाँग में राजीव ओझा ने एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया है, जहाँ ये सीजनल फ्रूट्स आदिवासी महिलाओं से अच्छे दाम पर खरीद लेते हैं और फिर उन्हीं फलों को प्रोसेस करके अलग-अलग प्रोडक्ट बना कर बाज़ार में उतार देते हैं।
राजस्थान के उदयपुर के आदिवासी गाँव डाँग में राजीव ओझा ने एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया है, जहाँ ये सीजनल फ्रूट्स आदिवासी महिलाओं से अच्छे दाम पर खरीद लेते हैं और फिर उन्हीं फलों को प्रोसेस करके अलग-अलग प्रोडक्ट बना कर बाज़ार में उतार देते हैं।
By Manvendra Singh
राजस्थान के उदयपुर के आदिवासी गाँव डाँग में राजीव ओझा ने एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया है, जहाँ ये सीजनल फ्रूट्स आदिवासी महिलाओं से अच्छे दाम पर खरीद लेते हैं और फिर उन्हीं फलों को प्रोसेस करके अलग-अलग प्रोडक्ट बना कर बाज़ार में उतार देते हैं।
राजस्थान के उदयपुर के आदिवासी गाँव डाँग में राजीव ओझा ने एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया है, जहाँ ये सीजनल फ्रूट्स आदिवासी महिलाओं से अच्छे दाम पर खरीद लेते हैं और फिर उन्हीं फलों को प्रोसेस करके अलग-अलग प्रोडक्ट बना कर बाज़ार में उतार देते हैं।