By Dr SB Misra
भारत की खेती 10,000 साल पुरानी है, लेकिन आज किसान अपने ही खेत में असहाय खड़ा है। कैसे विकास के गलत मॉडल, रसायनिक खेती और नीतिगत खैरात ने किसान को आत्मनिर्भर से आश्रित बना दिया।
भारत की खेती 10,000 साल पुरानी है, लेकिन आज किसान अपने ही खेत में असहाय खड़ा है। कैसे विकास के गलत मॉडल, रसायनिक खेती और नीतिगत खैरात ने किसान को आत्मनिर्भर से आश्रित बना दिया।
By Shirish Khare
किसानों के लिए समय सबसे महत्वपूर्ण होता है, जब खरीफ फसलों के लिए बुवाई के लिए बैल खरीदते हैं, लेकिन कोराना के चलते महाराष्ट्र में लगे लॉकडाउन ने इनकी मुसीबत बढ़ा दी है, क्योंकि लॉकडाउन के चलते पशु बाजार बंद हो गए हैं। जबकि किसानों के लिए अप्रैल-मई महीने सबसे अहम होते हैं।
किसानों के लिए समय सबसे महत्वपूर्ण होता है, जब खरीफ फसलों के लिए बुवाई के लिए बैल खरीदते हैं, लेकिन कोराना के चलते महाराष्ट्र में लगे लॉकडाउन ने इनकी मुसीबत बढ़ा दी है, क्योंकि लॉकडाउन के चलते पशु बाजार बंद हो गए हैं। जबकि किसानों के लिए अप्रैल-मई महीने सबसे अहम होते हैं।
By Akash Singh
By Rajeev Shukla
By Ashwani Nigam
By Gaon Connection
बेहद कठिन और शुष्क वातावरण में जीवित रहने की क्षमता वाले केनकठा नस्ल के बैल अब अपने ही इलाके में ख़त्म हो रहे हैं। ख़ेती के साथ बोझा ढोने में उपयोगी यह ताकतवर नस्ल केन नदी के किनारे वाले इलाकों में पाई जाती है। लेकिन ख़ेती का मशीनीकरण होने से यह नस्ल ख़त्म होने की कगार पर है।
बेहद कठिन और शुष्क वातावरण में जीवित रहने की क्षमता वाले केनकठा नस्ल के बैल अब अपने ही इलाके में ख़त्म हो रहे हैं। ख़ेती के साथ बोझा ढोने में उपयोगी यह ताकतवर नस्ल केन नदी के किनारे वाले इलाकों में पाई जाती है। लेकिन ख़ेती का मशीनीकरण होने से यह नस्ल ख़त्म होने की कगार पर है।
By Arun Singh
बेहद कठिन और शुष्क वातावरण में जीवित रहने की क्षमता वाले केनकठा नस्ल के बैल अब अपने ही इलाके में ख़त्म हो रहे हैं। ख़ेती के साथ बोझा ढोने में उपयोगी यह ताकतवर नस्ल केन नदी के किनारे वाले इलाकों में पाई जाती है। लेकिन ख़ेती का मशीनीकरण होने से यह नस्ल ख़त्म होने की कगार पर है।
बेहद कठिन और शुष्क वातावरण में जीवित रहने की क्षमता वाले केनकठा नस्ल के बैल अब अपने ही इलाके में ख़त्म हो रहे हैं। ख़ेती के साथ बोझा ढोने में उपयोगी यह ताकतवर नस्ल केन नदी के किनारे वाले इलाकों में पाई जाती है। लेकिन ख़ेती का मशीनीकरण होने से यह नस्ल ख़त्म होने की कगार पर है।
By Dr SB Misra
By Diti Bajpai
By Divendra Singh