गाजर घास जागरूकता उन्मूलन सप्ताह का आयोजन
गाँव कनेक्शन 21 Aug 2017 8:54 PM GMT
लखनऊ। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ की ओर से सोमवार को गाजर घास जागरूकता उन्मूलन सप्ताह का आयोजन किया गया। पार्थेनियम हिस्टोफोरस जिसे आम भाषा में कांग्रेस घास, गाजर घास, चटक चांदनी और कड़वी घास के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा खरपतवार है जो कि फसलों के उत्पादन में गिरावट लाने के साथ ही साथ जानवरों से लेकर मनुष्यों के लिए भी बहुत नुकसानदेय है। इससे एग्जिमा, खुजली और एलर्जी हो जाती है। यह बहुत तेजी से बढ़ती है।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के निदेशक, डा. ए.डी. पाठक ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा की पार्थेनियम सभी फसलों, उद्यानों और वनों के लिए समस्या बन गई है। उन्होंने बताया कि देश में 1955 में सर्वप्रथम इसे देखा गया था। इस अवसर पर डा. राकेश कुमार सिंह ने बताया कि यह विदेशी खरपतवार 350 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैल कर मनुष्यों में एग्जिमा, एलर्जी एवं बुखार जैसे रोग उत्पन्न कर रहा है। इसके खाने से पशुओं के मुह में सूजन आ जाती है एवं दुधारू पशुओं के दुग्ध में एक विशेष प्रकार की गंध भी आने लगती है।
ये भी पढ़ें : आईआईएम के टॉपर ने पहले दिन बेची थी 22 रुपए की सब्जियां, आज करोड़ों में है टर्नओवर
कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. एस.एन. सिंह ने गाजर घास की पत्तियों एवं सफेद छोटे-छोटे फूलों वाले पौधो की पहचान बताई। उन्होंने बताया कि ग्लाईफोसेट खरपतवारनाशी दवा को जल में घोल कर पुष्प आने से पहले छिड़काव कर देना चहिए और सामुदायिक प्रयासों से बारिस से पहले फूल आने से पहले जड़ से उखाड़ कर गढ्ढे में दबा देना चाहिए। इस अवसर पर कृषि विज्ञान केन्द्र लखनऊ के विशेषज्ञ, डा. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने गाजर घास सप्ताह का सफल आयोजन और आए हुए अतिथियों को धन्यवाद दिया।
ये भी पढ़ें : कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह का लेख- कृषि के 7 दशक और 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का लक्ष्य
More Stories