11 साल की उम्र और शरीर पर सिगरेट से दागने के निशान: बच्ची से उत्पीड़न मामले में अब तक क्या हुआ?

वाराणसी के रोहनिया थाना इलाके में रहने वाले एक शख्स ने आरोप लगाया कि उनकी 11 साल की बच्ची जिस घर में रहकर काम करती थी वहां उसका शारीरिक उत्पीड़न हुआ। पुलिस ने पिता की शिकायत पर रिपोर्ट दर्ज कर एक महिला समेत 2 लोगों को 20 जुलाई को जेल भेज दिया था। जानिए क्या है पूरा मामला...

ShashwatShashwat   26 July 2021 1:59 PM GMT

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11 साल की उम्र और शरीर पर सिगरेट से दागने के निशान: बच्ची से उत्पीड़न मामले में अब तक क्या हुआ?

19 जुलाई को पिता की ने दी थी शिकायत 20 जुलाई को पुलिस ने  आरोपी महिला और उसके पति को भेजा जेल।

वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। बनारस में 11 वर्षीय बालिका के साथ शारीरिक उत्पीड़न मामला तूल पकड़े हुए है। पीड़िता का बीएचयू (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) परिसर स्थित ट्रॉमा सेंटर से इलाज चल रहा है। पुलिस ने इस मामले में धारा 342, धारा 323 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम) 2015 की धारा 75 के तहत मुकदमा दर्ज कर दो लोगों को जेल भेजा है। पीड़िता के पिता ने दुष्कर्म की आशंका जताई है, जिससे पुलिस ने इनकार किया है। पीड़िछावर्ग आयोग ने भी मामले में रिपोर्ट मांगी थी।

क्या है पूरा मामला

पीड़िता, उत्तर प्रदेश के बनारस में रोहनिया थाना क्षेत्र अंतर्गत मुड़ादेव इलाके की रहने वाली है। 19 जुलाई 2021 को ये मामला सामने आया। परिजनों के अनुसार पीड़िता पिछले 6 माह से डाफी इलाके में स्थित अपने मां की एक परिचित सरिया के घरेलू नौकर की तरह रहती थी। जहां बीते एक माह से परिवार के लोग संपर्क में नहीं थे। पिता का आरोप है, "इसी दौरान उक्त महिला ने उनकी बेटी से मारपीट और उसके बेटे ने पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया। पिता का कहना है कि उसके शरीर पर सिगरेट के निशान हैं। पैरों और प्राइवेट पार्ट्स पर चोटे हैं।"

पूरे मामले पर बात करते हुए पिता ने गांव कनेक्शन से कहा, 'हमको कुछ दिन पहले सरिता ने फोन पर कहा कि तुम्हारी बेटी सीढ़ी से गिर गई है, ले जाओ इलाज कराओ। सप्ताह भर घर से ही दवा देने पर आराम नहीं हुआ तो हम उसे कबीरचौरा अस्पताल ले आए।"

कबीरचौरा में प्राथमिक उपचार और जांच के बाद पीड़िता को 19 जुलाई को ही बीएचयू के ट्रामा सेंटर भर्ती में कराया गया जहां, पर दो दिन के बाद उसे 21 जुलाई की शाम खतरे से बाहर बता कर डिस्चार्ज कर दिया गया, लेकिन हंगामा होने पर पीड़िता को दोबारा भर्ती किया गया, जिसके बाद से 26 जुलाई को खबर लिखे जाने तक वो वहीं भर्ती है। पीड़िता के पिता ईश्वर चरण (बदला हुआ नाम) फर्निचर का काम करते हैं। पीड़िता का परिवार पिछ़ड़ा वर्ग से तालुक रखता है।

पुलिस का बयान

एफआईआर में नहीं है सेक्सुअल असॉल्ट का जिक्र

पिता ने 19 जुलाई को वाराणसी के लंका थाना प्रभारी को तहरीर दी है। पिता का कहना है कि पीड़िता के साथ मारपीट और दुष्कर्म की घटना हुई है। वहीं पुलिस का कहना है कि पिता के द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर एफआईआर दर्ज कराई गई है। इस मामले में धारा 342, धारा 323 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम) 2015 की धारा 75 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। पुलिस ने इस दौरान अपना स्टेटमेंट भी सार्वजनिक किया है। जिसमें पुलिस का कहना है, पीड़िता की तरफ से दी गई पिता की तहरीर में यौन शोषण की कोई बात नहीं है। इस आधार पर मुकदमा पंजीकृत किया गया।

बयान में पुलिस ने कहा है, 'पीड़िता की मां द्वारा अपने ही परिचित के यहां अपनी लड़की को पिछले 5 माह से रखा गया था, जहां लड़की के साथ मारपीट की घटना हुई। बाद में चोट गम्भीर हो जाने पर उसने अपनी मां को देर से बताया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पीड़िता के पिता से वार्ता की गई एवं पीड़िता से मुलाकात भी की गई।" पुलिस ने इस मामले में आरोपी महिला और उसके पति को 19 जुलाई की रात ही गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।

इस मामले को लेकर गांव कनेक्शन ने अतिरिक्त डीसीपी काशी जोन विकास चंद्र त्रिपाठी से बात की। उन्होंने कहा, 'इस मामले में पीड़ित पक्ष की तरफ से जो तहरीर दी गई है उस आधार पर एफआइआर दर्ज की गई है। मामले में 2 लोगों को जेल भी हुई है।'

मामले में 22 जुलाई को सलाहकार राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने पुलिस से रिपोर्ट मांगी थी, जिसके जवाब में दिए जवाब में अपर पुलिस आयुक्त वाराणसी ने कहा कि जांच में सामने आया कि आरोपीगण बच्ची को घर में बंद करके काम करवाते थे, सरिया और राड से मारा पीटा जाता था, जिससे पीड़िता को काफी चोटे आईं थी। मामले में कार्रवाई करते हुआ आरोपी गण को 20 जुलाई को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया था जहां से कोर्ट ने उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया है। पीड़िता और पीड़िता के परिवार की सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं। जांच जारी है।

FIR में दर्ज धाराएं।

अस्पताल प्रशासन पर ठीक से इलाज न करने का आरोप

पिता का आरोप है कि पीड़िता का इलाज भी ढंग से नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा,'यहां दवा सुई कर के कह रहे ले जाओ। बच्ची चल नहीं पा रही है। हम कैसे ले जाएं।' 21 जुलाई की देर रात यह मामला तब तूल पकड़ने लगा जब पिता और परिजन अस्पताल प्रशासन से जबरदस्ती डिस्चार्ज करने का आरोप लगाने लगे। शाम से ही राजनीतिक लोगों पहुंचने लगे और रात आठ बजे नारेबाजी की नौबत आ गई। देर रात पीड़िता को दोबारा ट्रामा सेंटर में भर्ती कर लिया गया।

2 दिन बाद ही डिस्चार्ज क्यों किया जा रहा था इस मामले में ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज डॉ. सौरभ सिंह ने कहा, "परीक्षण के बाद ही पीड़िता को डिस्चार्ज किया गया था। पीड़िता को मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा से यहां 19 जुलाई को लाया गया था। वहां से दी गई रिपोर्ट में कहीं भी मेंशन नहीं किया गया है कि यह सेक्सुअल असॉल्ट का केस है। हमारे यहां डॉक्टर्स की टीम ने जांच की, ट्रामा सेंटर में पीड़िता का इलाज किया गया। बीएचयू ट्रामा सेंटर से उचित इलाज के बाद हमने पुन: जिला चिकित्सालय के लिए रेफर कर दिया था। परीक्षण के बाद ही पीड़िता को डिस्चार्ज किया गया था। फिलहाल उसे डॉक्टरों की निगरानी में रख लिया गया है।'

इस पूरे मामले पर गांव कनेक्शन ने माया अग्रहरी से बात की। माया, पीड़िता की वकील थीं और उन्होंने ही सबसे पहले पीड़िता के उपचार आदि में मदद की। उन्होंने बताया कि पीड़िता के पिता अब लगातार बयान बदल रहे हैं जिस कारण से वह मामले से हट गईं हैं।

उन्होंने बताया, " जब मुझे मालूम चला तो मैंने मानवता के नाते बच्ची को अस्पताल पहुंचाया। ईलाज में मदद की। लेकिन अब उसके पिता ही कई तरह की बात कर रहे। कभी कह रहे एक महीने से नहीं मिले थे, कभी कह रहे 15 दिन' हमने दोबारा पीड़िता के पिता से बात करने की कोशिश की मगर बात नहीं हो सकी।" माया ने प्रशासन पर भी गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने गांव कनेक्शन से बातचीत में कहा, 'प्रशासन इस पूरे मामले को रफा-दफा करने में लगा है। पीड़िता चल नहीं पा रही थी लेकिन डिस्चार्ज कर दिया और मेडिकल रिपोर्ट भी नहीं दी गई। ऑटो में पीड़िता को कबीरचौरा अस्पताल लाया गया वहां भर्ती कराने में ही 6 घंटा लगा, फिर वहां से यहां रेफर कर दिया। यहां भी आनन-फानन में बाहर कर दिया गया। न मेडिकल रिपोर्ट मिली न एफआइआर की कॉपी।'

अग्रहरी ने बताया कि उन्होंने इस दौरान 1090 और 112 पर भी कॉल किया, जिसके बाद पुरूष पुलिसकर्मियों ने बयान दर्ज कराया। अग्रहरी ने कहा, 'हमने 1090 पर कॉल किया तो दो पुलिसकर्मी आए, बयान लेकर कहा आप जाकर लंका थाने में शिकायत कीजिए तब कार्रवाई शुरू होगी।' कबीरचौरा अस्पताल में पुरूष मजिस्ट्रेट आकर बयान ले रहे थे। बताइये कहां इस तरह से व्यवहार किया जाता है'।

जुलाई 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार ने वीमेन हेल्पलाइन नंबर को पुलिस हेल्प लाइन नंबर 112 से जोड़ दिया है। इससे पहले तक उत्तर प्रदेश में 181 डायल करने पर वीमेन हेल्पलाइन से सहायता मिलती थी। फिलहाल वीमेन हेल्पलाइन 181 बंद है और इसके 350 से अधिक कर्मचारियों की सैलरी एक साल से नहीं मिली है। जुलाई 2020 से अब जिस नंबर का इस्तेमाल पुलिस को इमर्जेंसी कॉल के लिए किया जाता है उसी को वीमेन हेल्पलाइन की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है।

फिलहाल इस मामले को लेकर सियासत भी जारी है। कई राजनीतिक दलों के नेता ट्रामां सेंटर पहुंच चुके हैं। 20 जुलाई को पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता अजय राय पहुंचे तो 23 जुलाई को अंबेडकरनगर के बसपा विधायर रामअचल राजभर भी पहुंचे। राजभर को ट्रामा सेंटर परिसर में ही रोक लिया गया। जिसके बाद वह धरने पर बैठ गए। इससे पूर्व भी पीड़िता को डिस्चार्ज कर देने पर भीम आर्मी औऱ यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने ट्रामा सेंटर पर धरना दिया था। ट्रामा सेंटर में पुलिस तैनात है।

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