उत्तर प्रदेश: प्लास्टिक के पहाड़ खत्म करने की नई मुहिम

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए आमजन और युवाओं के अभिनव प्रयोगों और मॉडल का लिया जाएगा सहारा, प्रदूषण एवं पर्यावरण नियंत्रण विभाग ने शुरू कराई अनोखी प्रतियोगिता

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उत्तर प्रदेश: प्लास्टिक के पहाड़ खत्म करने की नई मुहिम

लखनऊ। प्लास्टिक के पहाड़ों को खत्म करने और पर्यावरण को बचाने के लिए अब युवा और आम जन के विचारों का भी सहारा लिया जाएगा।

प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्कूल, कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र/छात्राओं के अभिनव विचारों को आमंत्रित करते हुए हैकेथॉन() की शुरुआत की है। इसके लिए शुरू की गई ऑनलाइन प्रतियोगिता में लोग अपने मॉडल या आइडिया को बता सकते हैं, दस सवश्रेष्ठ अभिनव विचारों को पुरस्कृत भी किया जाएगा।

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"हमने सोचा कि प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए सिर्फ वैज्ञानिकों के भरोसे न रहकर आम लोगों की सहभागिता सुनिश्चित की जाए। यह अभिनव विचारों को एक पटल पर लाने का अनोखा प्रयास है," कल्पना अवस्थी, प्रमुख सचिव पर्यावरण विभाग ने बताया।

केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के अनुसार भारत में हर साल 25 हजार टन प्लास्टिक अपशिष्ट निकलता है, जिसका मात्र 60 प्रतिशत रिसाइकिल (फिर से उपयोग में लाना) होता है। प्लास्टिक कचरे के उत्पादन में दिल्ली सबसे ऊपर है, उसके बाद चेन्नई का नंबर आता है।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण विभाग की वेबसाइट पर पंजीकरण के बाद कोई भी अपने मॉडल को अपलोड कर सकता है। पंजीकरण और अभिनव मॉडल को अपलोड करने की आखिरी तारीख 26-9-2018 है। उसके बाद एक पैनल द्वारा चुने गए 10 लोगों को मॉडल के प्रस्तुतीकरण के लिए अंतिम रूप से बुलाया जाएगा।

"इसका असल मकसद नई सोच को बाहर लाना है, गाँव और कस्बों में कितने ही युवा समस्याओं के निपटारे का व्यवहारिक ज्ञान रखते हैं लेकिन मंच नहीं मिल पाता, इससे उन दूर-दराज स्थित लोगों को सामने लाने में मदद मिलेगी," दारा सिंह चौहान, वन एवं पर्यावरण मंत्री ने कहा।

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भारत हर साल 62 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट पैदा करता है, जिसमें से 43 मिलियन टन इकट्ठा कर लिया जाता है, 12 मिलियन टन को निस्तारित किया जाता है, बाकी पड़ा रहता है। वर्ष 2050 तक 436 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट पैदा होने का अनुमान है।

इस हैकेथॉन में पांच टॉपिक पर सभी से उनके विचार मांगे गए हैं-1. प्लास्टिक कचरे का ऊर्जा और अन्य उतपादों में फिर से उपयोग, 2. प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण, 3. प्लास्टिक थैलों, बोतल आदि के स्थान पर अन्य चीजों का उपयोग, 4. प्लास्टिक कचरे के उपयोग का नवोन्वेषी तरीका, 5. प्लास्टिक कचरे के सुरक्षित निपटारे के लिए असंगठित क्षेत्र की भूमिका।

"इस प्रतियोगिता का मकसद है कि प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए नई सोच को आगे लाया जाए। वैज्ञानिकों की नहीं, छात्र/छात्राओं के विचारों को प्राभावी तरीके से लागू किया जाए," वन एवं पर्यावरण विभाग के विशेष सचिव आशीष तिवारी ने बताया।


     

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