कभी कच्ची शराब बनाने वाली महिलाएं आज गांव में बना रहीं दीये और मोमबतियां, पुलिस के सहयोग से बदली ग्रामीणों की किस्मत

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के चैनपुरवा गाँव में महिलाएं कभी कच्ची शराब बनाती थीं, मगर सिर्फ एक सार्थक पहल से आज गाँव की यही महिलाएं गाँव में दीये और मोमबत्तियां बनाकर अच्छी कमाई भी कर रही हैं।

Virendra SinghVirendra Singh   6 Nov 2020 7:34 AM GMT

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बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। गांव भी वही है और महिलाएं भी वहीं हैं, हर घर के बाहर भट्टियाँ भी जल रही हैं, लेकिन इन भट्टियों पर अब कच्ची शराब नहीं बनाई जा रही है, बल्कि मोम को पिघलाया जा रहा है ताकि मोमबत्तियां बनाई जा सकें।

यह गांव है उत्तर प्रदेश की राजधानी से सटे बाराबंकी जिले का चैनपुरवा गांव, जहां एक अरसे से गाँव की महिलाएं कच्ची शराब बनाने और बेचने का काम करती आ रही थीं, लेकिन अब यहां सब कुछ बदल चुका है और यह सब बदलाव जिले के कप्तान अरविंद चतुर्वेदी के पहल से हुआ है।

सिर्फ एक पहल से गाँव के लोग अब न सिर्फ कच्ची शराब बनाने का काम छोड़ चुके हैं, बल्कि दीये और मोमबत्ती बनाने का काम मिलने से ये महिलाएं आज अच्छा पैसा भी कमा पा रही हैं।

बाराबंकी के रामनगर थाना क्षेत्र में आने वाले इसी चैनपुरवा गाँव की सुंदरा (55 वर्षीय) बताती हैं, "पहले हमारे गांव में अक्सर गलत आदमी ही सुबह-शाम दारू लेने आते थे, कुछ दिनों पहले एसपी साहब ने गांव में चौपाल लगाई जहां हम सब को बुलवाया और पूछा कि क्या आप सब लोग कच्ची शराब बनाने का काम करती हैं?"

"हम लोगों ने सही-सही कहा कि हां हम शराब बनाते हैं साहब, कोई काम रोजगार नहीं है तो घर का खर्चा कैसे चले तो एसपी साहब ने हम लोगों को मोमबत्ती बनाने की सलाह दी और फिर धीरे-धीरे करके आज पूरे गांव की महिलाएं-बच्चे सब मोमबत्ती बना रहे हैं।"

बाराबंकी के चैनपुरवा गाँव में दीये बना रहीं ग्रामीण महिलाओं के साथ चर्चा करते जिले के कप्तान अरविन्द चतुर्वेदी। फोटो : वीरेंद्र सिंह

गाँव में रोजगार मिलने से अब ये महिलाएं काफी खुश हैं। कभी कच्ची शराब बनाने के काम में लगे गाँव के लोग पुलिस का छापा पड़ने पर भाग जाते थे, मगर आज यही ग्रामीण पुलिस को देख कर खुश हो जाते हैं।

गांव की ही 35 वर्षीय वीरमति बताती हैं, "अक्सर हमारे यहां सुबह तड़के या देर रात तक शराबी आते थे और दारू पीकर गाली-गलौज करते थे। पुलिस को देख कर तो हम सब भाग जाते थे, खेतों में लेटे रहते थे लेकिन आज वही पुलिस जब गांव में आती हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई अपना आया है।"

अक्सर हमारे यहां सुबह तड़के या देर रात तक शराबी आते थे और दारू पीकर गाली-गलौज करते थे। पुलिस को देख कर तो हम सब भाग जाते थे, खेतों में लेटे रहते थे लेकिन आज वही पुलिस जब गांव में आती हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई अपना आया है।

वीरमति, ग्रामीण, चैनपुरवा गाँव

एसपी अरविंद चतुर्वेदी ने करीब डेढ़ माह पहले चैनपुरवा गांव को कच्ची शराब मुक्त बनाने के साथ ही यहां की महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की पहल शुरू की थी। गांव की 25 महिलाओं को जोड़ कर पांच समूह बनाए। इसके बाद इन महिलाओं को बीवैक्स, मिट्टी के दीया, धागा जैसी सामग्री न सिर्फ उपलब्ध कराई, बल्कि दीपावली पर मोमबत्ती का अच्छा व्यापार देख 'कैंडल दीया' बनाने की ट्रेनिंग भी दी है। 'कैंडल दीया' तैयार कर रहीं इन महिलाओं को एक रुपये प्रति दीया कमाई भी कर पा रही हैं।

गांव में सभी महिलाओं के दीयों का हिसाब-किताब रखने वाली सुधा बताती हैं, "हम सभी को दीया मोमबत्ती सब कुछ पहुंचाते हैं, अभी एक महिला दिन भर में करीब 600 मोमबत्तियां बना लेती है, एक मोमबत्ती पर एक रुपए के हिसाब से दिन भर में 600 रुपये का काम कर लेती है।"

बाराबंकी के चैनपुरवा गाँव में दीये बनाती ग्रामीण महिलाएं। फोटो : वीरेंद्र सिंह

इस गाँव में कभी कच्ची शराब बनने से यह गाँव काफी बदनाम हुआ करता था, मगर अब गाँव का कायाकल्प होने से इस गाँव के बच्चे भी काफी खुश हैं।

गांव की ही 15 वर्षीय नेहा बताती हैं, "पहले जब हम स्कूल जाते थे तो लोग हमें चिढ़ाते थे, कहते थे अरे यह उसी गांव की है जहां पर दारू बनती है, हमें यह बताने में भी शर्म लगती थी कि हम चैनपुरवा के रहने वाले हैं।"

वहीं उजाला, जो अपने परिवार के साथ दीयों को पेंट करने का काम करती हैं, कहती हैं, "पहले हमारे यहां कोई अच्छा आदमी नहीं आता था, हमारे रिश्तेदार भी कभी हमारे गांव नहीं आते थे, लेकिन अब जब बड़े-बड़े अधिकारी गाँव में आते हैं और सबको काम करते देखते हैं, तो आज हमारे गाँव की चर्चा पूरे जिले में हो रही हैं।"


इसी चार नवम्बर को जिले के एसपी अरविंद चतुर्वेदी ने गांव पहुंच कर 'कैंडल दीया' बनाने का काम कर रही पांच समूहों की 25 महिलाओं और दीया पेंट करने वाले 30 बच्चों को पहले चरण में एक रुपए प्रति दीया के हिसाब से 90 हजार की धनराशि दी। यह धनराशि पाकर महिलाओं और बच्चों के चेहरे खिल उठे।

मोमबत्ती और दीये बनाने के काम में महिलाओं के साथ-साथ बच्चे भी अपने परिवार का साथ दे रहे हैं और मोमबत्ती और दीयों के रंगरोगन का जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। पेंट करने वाले गाँव के 30 बच्चों को भी 30 हजार रुपये की धनराशि दी गई।

गाँव में अब तक 80 हजार 161 'कैंडल दीया' तैयार किए जा चुके हैं। जबकि एक लाख 21 हजार दीयों की बच्चों द्वारा पेंटिग की गई है। हालाँकि बाजारों में 'कैंडल दीया' की डिमांड काफी है। इसके लिए गांव की 15 अन्य महिलाओं और बच्चों को भी इस काम में लगाया गया है। इस बार करीब डेढ़ लाख चैनपुरवा ब्रांड के 'कैंडल दीया' की सप्लाई होने का अनुमान है।

निमित सिंह, समूह संचालक

गाँव में महिलाओं के इन समूहों की जिम्मेदारी संभाल रहे निमित सिंह 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "गाँव में अब तक 80 हजार 161 'कैंडल दीया' तैयार किए जा चुके हैं। जबकि एक लाख 21 हजार दीयों की बच्चों द्वारा पेंटिग की गई है। हालाँकि बाजारों में 'कैंडल दीया' की डिमांड काफी है। इसके लिए गांव की 15 अन्य महिलाओं और बच्चों को भी इस काम में लगाया गया है। इस बार करीब डेढ़ लाख चैनपुरवा ब्रांड के 'कैंडल दीया' की सप्लाई होने का अनुमान है।"

वहीं इस गाँव के लोगों को रोजगार से जोड़ने की पहल करने वाले एसपी अरविन्द चतुर्वेदी 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "त्योहारों को देखते हुए मिशन कायाकल्प के जरिये चैनपुरवा गाँव की महिलाओं को अभी मोमबत्ती बनाने के रोजगार से जोड़ा गया है। पहले हमें एक लाख दीयों का आर्डर मिला था, लेकिन बढ़ती डिमांड को देखते हुए हमें लगता है कि दीपावाली तक यह तीन लाख पार कर जाएगा।"

"हमारी कोशिश है कि गाँव की महिलाओं और पुरुषों को भविष्य में मधुमक्खी पालन के कामों से जोड़ा जाए, साथ ही स्वयं सहायता समूह से भी महिलाओं को जोड़ा जा रहा है, ऐसे में गाँव के लोग अब सार्थक दिशा में काम कर सकेंगे," एसपी चतुर्वेदी कहते हैं।

तब जलेंगे 51 हजार दीये

एसपी अरविंद चतुर्वेदी के मुताबिक, दीपावली से पहले 'उम्मीद संस्था' की ओर से बाराबंकी के जीआईसी ग्राउंड में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के दौरान संस्था और व्यापारियों की ओर से कार्यक्रम वाले दिन शाम को करीब 51 हजार चैनपुरवा ब्रांड के 'कैंडल दीपों' को जलाया जाएगा जिसमें इसी गाँव में बने दीयों का उपयोग किया जाएगा। इस कार्यक्रम से ग्रामीणों को और भी प्रोत्साहन मिल सकेगा।

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